महाशक्ति का दावेदार कौन – भारत या चीन ?

फ्रांस को पछाड़ते हुए भारत दुनियां की छठवीं सबसे बड़ी इकॉनमी में शामिल हो गया है। अगर जी.डी.पी के आंकड़ों पर गौर फरमायें तो यह $2.45 Trillion के करीब है, इस लिहाज से भारत GDP के आधार पर दुनियां में तीसरे पायदान पर है। हालिया गुजरे वर्षों में भारत नें लार्जेस्ट इकॉनमी के पथ पर अपनी गति तेज़ की है जिसका नतीजा यह देखने को मिला है कि भारत दुनियां की सबसे तेज़ दौड़ती अर्थव्यवस्था में शुमार हो चला है।

चीन, जिसे न हम अपना मित्र कह सकते हैं न पूरा दुश्मन वह अभी बेशक हमसे आगे है पर ऐसा आंकलन किया जा रहा है कि भारत सन 2022 तक अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से चौथे पायदान पर काबिज़ हो जायेगा। भारत का चौथे पायदान पर काबिज़ होने का अर्थ ‘यूनाइटेड किंगडम’ और ‘जर्मनी’ जैसे सशक्त राष्ट्र को पछाड़ देना है। यहाँ मैं एक बात और कह दूँ कि ‘यूनाइटेड किंगडम’ और ‘जर्मनी’ को पछाड़ देने के बावजूद भी भारत चाइना से दूर ही रहेगा जो कि फिलहाल अमेरिका के बाद दूसरे नंबर पर बैठा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि 2014 में सरकार परिवर्तन के बाद हिन्दुस्तान नें अपने आप को विश्वमंच पर ज्यादा प्रबल और मजबूत बनाया है। भारत की हाँ में हाँ मिलाने वाले विश्व के प्रतिष्ठित राष्ट्र जैसे – अमेरिका, फ़्रांस, जापान, रूस, यूनाइटेड किंगडम व् जर्मनी इस बात का संकेत दे रहे हैं की भारत सच में अब एक उभरता हुआ महाशक्ति है।

BRICS सम्मलेन होने से पहले हमने देखा कि कैसे भारत और चाइना “डोका ला” विवाद को लेकर आपस में झगड़ रहे थे। असल में वह विवाद चाइना नें ही पैदा किया था जैसा की वह हमेशा करता आया है। क्या था डोका ला विवाद? चीन का दुस्साहस तो देख लीजिये की वह कैसे जबरन उस इलाके में Road Construction को लेकर अडिग था। भारत, भूटानी सरजमीं पर चीन की जबरदस्ती का लगातार विरोध करता रहा पर वहीँ चाइना भारत के विरोध को हल्के में लेकर सड़क निर्माण की प्रक्रिया पर काम करता रहा। सिक्किम और भूटान से सटा हुआ यह इलाका भारत की सुरक्षा के लिहाज से अहम् है ऐसे में भला चीन वहां अपनी सड़क कैसे बना सकता है। साधारण शब्दों में किये गए विरोध को चीन ने कोई तवज्जो नहीं दी, तब जाकर भारत को भी अपनी सेनाएं Doka La इलाके में खड़ी करनी पड़ी। चीन और भारत की सेनाओं के बीच बढ़ती धक्का-मुक्की एकबार को ऐसे जान पड़ रही थी कि कहीं एक बार फिर से India China War न हो जाये।

इंडिया चाइना का यह ताज़ा प्रकरण देखने लायक था यह पहली बार था कि भारत चीन पर हावी हुआ। यह वही भारत है जिसने अतीत में अपने कई चोले बदले और हर समस्या का हल अमेरिका की गोद में बैठकर निकालना चाहा। पर इसबार भारत नें अमेरिका को भी हस्तछेप करने का मौका भी नहीं दिया, पूरा विश्व Doka La मुद्दे पर दूर खड़ा केवल यह देख रहा था की भारत अब कितना बदल गया है। यह भारत की सामरिक निति में ताज़ा किये गए बदलाव का ही संकेत है कि चीन को डोका ला स्थित सड़क निर्माण की ज़िद्द को छोड़ना पड़ा।

पुरानी सरकार की बात करें तो जब सन 1962 में भारत चीन से युद्ध के दौरान परास्त हुआ तो संसद में बैठे तमाम नेताओं नें यह कसम खाई की चीन द्वारा कब्ज़ा की हुई जमीन को एक बार पुनः छीन लेंगे। सन 1962 में चीन से पराजय को ध्यान रख पुरानी सरकार नें निःसंदेह भारत को सैन्य मोर्चे पर अधिक बलवान तो बनाया पर वे चीन का सीधा सामना करने से कतराते रहे, जिसका नतीजा ये रहा कि चीन उस दौर में लगातार आगे बढ़ता रहा और भारत अमेरिका की गोद में बैठ शिकायतें करता रहा। जब जब भारत, चीन से कुछ कहने की हिम्मत करता तो चाइना उनको 1962 की तारिख याद करने को कह देता था। परन्तु इसबार के हालत वैसे नहीं थे ! अरुण जेटली का यह बयान “भारत अब 1962 जैसा नहीं रहा” चीन के लिए एक संक्षिप्त उत्तर था, दूसरी ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी ये लगातार कहते रहे कि हर समस्या का समाधान बातचीत के जरिये निकालने के लिए हम सदैव राजी हैं। सीमा पर सैनिक, रक्षामंत्री का बयान, विदेश मंत्रालय की कूटनीति और नरेंद्र मोदी की सरल शब्दावली से चीन को Doka La में कब्ज़ा ज़माने से वंचित कर दिया । यहाँ यह कहना होगा कि भारत अब विश्व मोर्चे पर ज्यादा आत्मविश्वास के साथ खड़ा है; अब सामने कोई भी हो हम अपनी बात न सिर्फ रखने बल्कि उसे मनवाने में भी निपुण हो चुके हैं

महाशक्ति सिर्फ एक शब्दावली नहीं है ! महाशक्ति कहलाना आपके हौसले, जज़्बे, कृत्य और विश्व में आपकी धौंस को दर्शाता है। मैं ये जरूर कहना चाहूंगा कि बेशक यह कोई पहला मौका नहीं है कि भारत नें थोड़ी अडिगता दिखाई हो पर यह एक पहला मौका जरूर है की इस अडिगता को पूरा विश्व और देश साफ़ साफ़ देख रहा हो। पूर्वर्ती सरकारों ने भी सीमा पर मजबूती दिखाई है, सीमा रक्षा व् उसके संरक्षण के लिए कार्य किये हैं। सन 1967 याद होगा आपको, इसी भारत नें ‘नाथू ला’ के समीप हुई झड़प में सैकड़ों चीनी सैनिकों को मारा था; परन्तु वह दौर था जब भारत इसकी भनक किसी को नहीं लगने देता था। मन में बैठा यह डर की कहीं विश्व हमारे कृत्य को जान गया तो हमें उसका बड़ा खामियाजा भुगतना होगा। भारत का यह डर उसे महाशक्ति बनाने की राह में काफी पीछे धकेलता गया जिसका फायदा अमेरिका नें काफी उठाया।

अब माहौल बहुत जुदा है, नरेंद्र मोदी की अगुआई में देश नें डर के साथ जीना छोड़ दिया है। म्यांमार में आतंकवादियों के खिलाफ की गई कार्रवाई हो, पाकिस्तान पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक हो या फिर चीनी सैनिकों से ताज़ा झड़पें; अब हर परिस्थिति को भारत खुले तौर पर सबके सामने रख रहा है। न सिर्फ भारतवासी बल्कि समूचा विश्व भारत के इस हौसले को सलाम करता है। इससे पहले अपनी साहस का परिचय कुछ ही राष्ट्र दे पाते थे !! पर अब भारत नें भी महाशक्ति की तरह बर्ताव करना सीख लिया है। भारत का ये बदलता व्यवहार उसके पुराने दुश्मनों (पाकिस्तान और चीन) के लिए चिंता का सबब है क्योंकि इससे उनकी शाख भी दांव पर लगी है। भारत नें चीन के महत्वाकांक्षी ‘ओबोर’ प्रोजेक्ट को विफल करने के बाद यह भी आशंका जताई की वह ब्रिक्स सम्मलेन से भी दूरी बना सकता है जो चाइना के लिए हितकर साबित नहीं होता। भारत के अड़ियल रवैये को भांप चीन नें खुद को नरम किया ताकि बीजिंग में होने वाली BRICS Meeting पर कोई बुरा असर ना पड़े। वर्तमान सरकार द्वारा चीन के लिए बनाई गई रणनिति कारगर साबित हुई; भारत नें नरम और गरम दोनों व्यवहार से चीन को पठखनी दी। यही सफल हुकूमत की पहचान है, सीमा पर सैनिकों के दस्ते उतार देना ही बहादुरी नहीं; पहले कूटनीतिक मोर्चों पर भी अच्छे से गौर फरमा लेना चाहिए ताकि जीत पक्की हो सके।

गुजरे तमाम प्रकरणों पर ध्यान दिया जाय तो अब भारत पहले से ज्यादा उत्साहित और आत्मविश्वास से भरा है जो महाशक्ति कहलाने की पहली निशानी है। आज़ादी की 75वीं वर्षगांठ की ओर अग्रसर भारत अब सच में एक नया भारत है जिसे पूरा विश्व जानता है।