इतना हाहाकार क्यों है जनाब ?

सोशल मीडिया के दौर में लोग कितनी जल्दबाज़ी में हैं। फेसबुक, व्हाट्सएप , ट्वीटर और यूट्यूब इत्यादि पर हर क्षण कुछ न कुछ अपडेट होते रहते हैं। पल पल अपडेट होनें वाली चीज़ों में वीडियो , फोटो और लेख प्रमुख रूप से आते हैं जो पूर्णतः स्वजनित होते हैं उसी व्यक्ति द्वारा जिसका वह अकाउंट है। ऐसा माना जाता था कि सोशल मीडिया 21वीं सदी के चंद बेहतरीन अविष्कारों में से एक है। पर क्या वास्तव में सोशल मीडिया एक आविष्कार है ? सोशल मीडिया अकाउंट पर प्रस्तुत व् दिखाए जाने वाले ज्यादातर विषय मनगढंत अथवा बेबुनियादी होते हैं।

आम लोगों के साथ साथ सरकारी कामकाजों पर भी सवाल खड़ा करना सोशल मीडिया की नियति बनती जा रही है। क्या देश की सरकार को सोशल मीडिया के आधार पर चलना होगा ? सरकार को लेकर बेबुनियादी बातें , बिना मतलब की खबरें सोशल मीडिया में प्रतिदिन शेयर की जाती हैं। मैं विभू राय इसी विषय पर एक कविता साझा कर रहा हूँ। आलोचना करना बुरा नहीं है पर तथ्य के आधार पर और मर्यादित शब्दों के साथ हो तो अच्छा।

 

गली-गली, नुक्कड़-नुक्कड़ क्या चिल्लाते हो ,
संसद में डांकू बैठे हैं यह किसको बतलाते हो !!

तुम्हारे अंगूठे की ताकत है,
जो वो आज वहां पर बैठा है;
जो कल तक गले काटता था,
वो आज देश का नेता है !!

चुना जिसको तुमने खुद उसके ही खिलाफ जाते हो,
थोड़ा अपने में झांक कर देखो;
उसी के पीछे जय हो, जिंदाबाद, तुम चिल्लाते हो !!

संविधान ने जो ताकत दी उसका तुम मोल लगाते हो,
चंद रुपयों के खातिर अपना वोट बेच कर आते हो;
याद रखो कुछ नहीं होगा इन हाहाकारों से,
ये आम आदमी युहीं रोता रहेगा,
जब तक जात पात के नाम पर बटन दबाओगे;
देश का नसीब युहीं सोता रहेगा !!

 

लेखक:
विभू राय