भारत में आरक्षण का इतिहास, जातिगत आरक्षण कैसे हुई शुरुआत

भारतीय राजनीती और जातिवाद इन दोनों का बहुत पुराना और गहरा रिश्ता है जो बदलते भारत के साथ – साथ अपनीं जड़ें और भी मजबूत करता चला गया। हिंदुस्तान की आज़ादी को पूरे 70 साल हो गये मगर इन 70 सालों में भी जातिवादिता हमारे समाज में विद्द्मान रही या यूँ कहें कि जातिवादिता नें हिन्द समाज को अंदर ही अंदर खोखला बना दिया है। जहाँ एक ओर भारत को विभिन्न मजहबों, जाती एवं भाषाओं का गौरव हासिल है वहीँ एक ओर ये अभिशाप भी बन बैठा है जो आगे कब तक रहेगा इसका उत्तर किसी भी भारतीय के पास नहीं।

आरक्षण का इतिहास जातिगत आरक्षण

15 August सन 1947 जब हमनें अंग्रेजी हुकूमत के चंगुल से भारत को आज़ाद कराया उस वक़्त किसी ने ये सपनें में भी ना सोचा होगा कि एक दिन भारत फिर ग़ुलामी की जंज़ीरों से बंध जायेगा जिसका नाम होगा जातिवाद। वैसे तो जातिवाद का इतिहास बहुत पुराना रहा है पर ये विशेष रूप तब सामने आया जब इसने भारतीय संविधान में अपनी जगह सुनिश्चित की “Reservation” के नाम से, जिसके करता धरता आदरणीय भीमराव रामजी आंबेडकर जी थे जिन्होंने हमारे भारतीय संविधान कि आधारशिला भी रखी। तब reservation का प्रमुख उद्देश्य था भारत में सभी जातियों को आर्थिक रूप से एक सामान बनाना ताकि कोई एक दुसरे को हेय के दृष्टिकोण से ना देखे।

एक नजर आरछण के इतिहास पर :

Hunter Commission in 1882 जिसके माध्यम से पहली बार हिंदुस्तान में आरछण कि मांग रखी गयी। “महात्मा ज्योतिराव फूले” जो कि एक भारतीय समाज सुधारक थे उन्होनें मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा कि मांग के साथ योग्यता के अनुरूप सरकारी रोजगार देने कि बात को भी कहा। सन 1901 में सबसे पहले महाराष्ट्र में साहू जी महाराज के माध्यम से reservation को लागू किया गया, जिसमें गैर ब्राह्मण और अन्य पिछड़ी बिरादरियों को शामिल किया गया। सन 1902 में एक notification “State of Kolhapur” के द्वारा जारी किया गया जिसमें पिछड़ी बिरादरी को रोजगार में 50 % तक का आरछण था। कुछ समय के बाद 1908 में इसे ” Indian Councils Act 1909 or Morley-Minto Reforms ” का नाम दिया गया। मगर इसमें एक बड़ी खामी थी और ये थी की इसे केवल जातिगत राजनीति के आधार पर तैयार किया गया था ना कि पिछड़ों को मदद के उद्द्श्य से।

अगस्त सन 1933 में Muslims, Sikhs, Christians, Anglo-Indians, Europeans and Dalit. के लिए “Communal Award” अभ्यावेदन पेश किया गया। इसमें एक महत्वपूर्ण बात यह थी कि जो सीट जिस कम्युनिटी के लोगों के लिए आरछित थी उसमें उसी कम्युनिटी के लोग वोट कर सकते थे। इस “Communal Award” सिस्टम का देश के प्रमुख राजनेताओं नें विरोध किया मगर अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने इसका पुजोर समर्थन किया। इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए “Poona Pact” पर हस्ताक्छर किये गए। यहीं से पहली बार दलित सीट reservation की बात सामने आयी and the term “Scheduled Caste” Government of India Act of 1935 में पहली बार इस्तेमाल किया गया।

सन 1942 के बाद जब भारतीय संविधान का आलेखन तैयार किया जा रहा था जिसकी जिम्मेदारी भीमराव आंबेडकर जी को प्रदान की गयी थी जहां उन्होंने अनुसूचित जाती कि सेवा और हितों को ध्यान रखकर 1943 में आरछण को सुरछित किया। शुरू में इस आरछण कि अधिकतम अवधि 10 साल सुनिश्चित की गयी, तब से लेकर इसमें लगातार संशोधन किये जाते रहे और धीरे धीरे इसकी अवधी को भी बढ़ाकर 2010 तक कर दिया गया। भारतीय संविधान का 95th संशोधन जो 2010 में किया गया जिसमें SC’s and ST’s का आरछण लोकसभा व राज्य विधानसभा के लिए और बढ़ाकर 2060 तक कर दिया गया। इसके अलावा ये भी ध्यान देने वाली बात है कि शिक्षा छेत्र, सरकारी नौकरी और अन्य पब्लिक सेक्टर्स में दिए जानें वाले आरछण की कोई समय अवधी तय नहीं की गयी है, ये कब तक और आगे जारी रहेगा इसका कोई खाका नहीं बनाया गया।

लौटते हैं अपने मूल बिंदु पर :

जैसा हमनें ऊपर आरछण से जुड़े पुराने विषय के बारे में जाना कि कब क्या और कैसे हुआ पर अब तो आरछण एक पूरी तरह से राजनितिक लाभ का विषय बन गया है जिसका कोई भी राजनितिक दल विरोध करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता क्योंकि अब ये पूरी तरह से Vote Bank का हिस्सा बन चुका है।

वक़्त के साथ साथ भारत में राजनितिक दलों की संख्या भी बढ़ती गयी जिसनें Reservation System को और हवा दे दी; मौजूदा हालात ऐसे हैं कि कुछ राजनितिक पार्टियां तो आरछण का खुला समर्थन करतीं है और उनकी मंशा भी है इसको आगे बढ़ाते रहनें की।

भारत में चुनाव के दौरान जात पात एक खास विषय होता है बल्कि ये कहें कि हिंदुस्तान में चुनाव विकास के मुद्दे पर नहीं जात पात के मुद्दे पर लड़ा जाता है; जो भी राजनितिक दल पिछड़े वर्गों व अनुसूचित जातियों में अपनी पैठ बना ले जाता है सरकार उसी की बनती है। ऐसे में आरछण को खतम करनें की हिम्मत भला कौन जुटाये। बदलते भारत कि तस्वीर ऐसी है कि पढ़े लिखे लोग भी जातिवाद से ग्रसित हैं उन्हें भी देश कि तरक्की से कोई लेना देना नहीं है बस जाती ही उनके लिये सबकुछ है। जातिवादिता हिंदुस्तान में कब तक व्याप्त रहेगी ये कहना फ़िलहाल मुश्किल है, हां मगर ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो एक दिन देश के हर वर्ग और समुदाय को reservation प्रदान करना होगा क्योंकि कि आरछण व्यवस्था किसी को ऊपर उठा रही है तो किसी को निचे भी गिरा रही है। मेरा ख़याल तो ये कहता है कि अगर आरछण को बंद नहीं किया जा सकता तो कम से कम अब इसको जाती नहीं आर्थिक स्थिति के आधार पर दिया जाए। खैर ये मेरी एक व्यक्तिगत सोच है जो कोई खास मायने नहीं रखती।