कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ

हमारा जीवन सच में कितना गहरा है , क्या हम खुद को भली भाँति जानते हैं। जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जहाँ मनुष्य कुछ पल के लिए स्वयं में ही विलीन हो जाता है। ऐसी अवस्था में जाकर हम स्वयं से ही प्रश्न पूछ बैठते हैं कि आखिर कौन हैं हम। नीचे लिखी हुयी कुछ पंक्तियाँ मेरे अंदर उठने वाले सवाल हैं जिनका उत्तर मेरे पास नहीं है।

 

कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !!

क्या सबकी सुनूँ , क्या करूँ अपने दिल की ;
यह बात है जरा मुश्किल सी ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

कोई है मुझमें समाया ;
जिसे मैं अब तक न जान पाया ;
मैं एक नहीं अनेक हूँ ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

रह-रह कर गूँजती है मेरे अंदर एक आवाज़ ;
भीतर जाने छुपा है कौन सा राज ;
हर तरफ शोर है , पर मैं मौन हूँ ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

एक अजीब सी हलचल है ;
किसी समंदर की तरह ;
मैं यूँ ठहरा बेजान , किसी पत्थर की तरह ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

टकरातीं हैं लहरें मुझसे आ-आ कर ;
मानों जैसे वो मुझे जगा रहीं हों ;
पर मैं अटल-अडिग हूँ ;
बहुत शांत व् सिथिल हूँ ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

ना कश्ती है ना किनारा है ;
जाने किस ओर मुझे जाना है ;
न डूबना , न मैं तैरना जानूँ ;
कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !

कौन हूँ मैं क्या जानूँ , कैसे खुद को पहचानूँ !!

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा