विमला – हिंदी कहानी
वही रोज के ताने, कहाँ है री….आँगन में बैठी सास जोर से आवाज़ लगा रही थी। विमला अपने कमरे से बाहर निकलकर बोली बच्चे को सुला रही थी माँ जी, कहिये क्या काम है। सास नें आँखें दिखाते हुए कहा – अरे काम पूछती है तुझे दिखाई नहीं देता की घर में कितना काम पड़ा है। चल जाके हंसुआ और खुरपी लेकर आ द्वार पे गईया भी भूख से आवाज़ लगा रही है; जरा खेतों में जाकर उसके लिए घास काट लाऊ। सास बाहर जाते-जाते बोली – सुन, मेरे आने तक सारे जूठे पड़े बर्तन साफ़ हो जाने चाहिए और ये भी देख तूने अब तक आँगन में झाड़ू तक नहीं लगायी। सास बुदबुदाते हुए बहार निकली….जाने कहाँ से करमजली घर में आ गयी न काम की न काज की दुश्मन अनाज की।
विमला के लिए यह प्रतिदिन की बात थी पर वो कहे किससे। शाम के 4 बजने को थे पर विमला नें अब तक अपने मुँह में अनाज का एक दाना तक नहीं डाला था। खैर, सास की आज्ञानुसार वह झट से कामकाज में लग गई यह सोचते हुए कहीं वह जल्दी आ गयीं तो फिर से डांट लगायेंगी। देखते ही देखते विमला नें सारे आँगन, कमरों अथवा द्वार को अच्छे से बहार दिया फिर वो गंदे बर्तनों को धोने लगी। घर के बर्तन को धोने के बाद विमला नें सोचा की कुछ खा ले; इतने में सास आ ही गई। ये क्या, तू खाने में लगी है; अरे कुछ तो सोच की मैं बाहर जाकर कितना काम करके आ रही हूँ और तुझे खाना दिखाई दे रहा है। तनिक ये न सोचा की मेरे लिए चाय ही बना के रखती। मुश्किल से 1 रोटी खायी विमला नें तुरंत चूल्हे पर चाय बैठायी इतने में सोया बच्चा भी जाग गया और विमला उसे गोद में उठाकर बाहर आंगन में ले आयी। विमला की सास खड़ूस थी मगर उसके बच्चे को बहुत मानती थी आखिर वो उनका नाती जो था। अभी चाय बनकर आयी ही थी कि सास नें फिर एक नई आज्ञा दी, जा मेरे लाल के लिए दूध तो गरम करके ला।
सदियों से चली आ रही इतनी कठिन दिनचर्या पर विमला नें कभी रोष व्यक्त नहीं किया। विमला के ससुर माखन लाल अब इस दुनियां में नहीं थे पर वे ही ऐसे व्यक्ति थे जो विमला को अपने घर की बहू बनाकर लाये थे। गुजरा दौर था वो जहाँ स्त्रियों का विवाह केवल उनकी सुंदरता और घरेलू कामकाज के आधार पर होता था। विमला तनिक भी पढ़ी लिखी न थी पर सुंदरता में वह अच्छी शहरी लड़कियों को भी पीछे छोड़ दे। यही खासियत देख माखन लाल नें उसका विवाह उस ज़माने में बी.ए पास किये हुए अपने लड़के संतोष से कर दिया। विमला और संतोष के विवाह के कुछ ही महीने के बाद ससुर माखन लाल दिवंगत हो गए। सास अपने पति की मौत का जिम्मेदार विमला को ही मानती थी; उसका ऐसा मानना था कि ये करमजली के नक्षत्र ही ख़राब थे जिसके आते ही माखन लाल चल बसे। माखन लाल की मृत्यु के पश्चात तो सास विमला को घर में रखने तक को तैयार न थी पर संतोष पढ़ा लिखा था इसलिए उसनें अपनी माँ की बातों को अनसुना कर दिया और दूर शहर चला गया कमाने। पर संतोष का यूँ शहर चले जाना भी सास को रास न आया और वह फिर यह कहने लगी की देख तेरे आते ही मेरा पति और बेटा सब मुझसे दूर चले गए। सास की प्रतिदिन बढ़ती बेरुखी और पति संतोष की जुदाई विमला के लिए असहनीय थी, पर वो लाचार नारी हर प्रताड़ना को सहन करते हुए अपने जीवन का निर्वाह करती रही।
संतोष सालभर में 2 बार छुटियों पर आता, ऐसे में विमला और संतोष के मिलाप से 1 बेटे का जनम भी हुआ। बेटे के जनम के पश्चात् सास का व्यवहार थोड़ा नरम जरूर हुआ पर ख़तम नहीं। विमला के जीवन में सास द्वारा मिलने वाले ताने आम हो चुके थे, उसे तो केवल इस बात का सुकून था की कम से कम पति तो ताने नहीं देता। दिन महीना और साल निकलते गए, विमला नें एक बच्ची को भी जनम दिया पर वो जीवित न बच सकी। मरी बच्चे के ताने भी विमला नें खूब सुने। समय का प्रहार तो तब अधिक गहरा गया जब संतोष की नौकरी चली गयी। उदासी और मासूमियत के साथ संतोष पुनः घर को आ गया, उसके आने से विमला तो प्रसन्न थी पर संतोष चिंतित था की अब वह अपने परिवार का भरण-पोषण कैसे करेगा। सालों जमा किये हुए पैसों से संतोष गांव में अपना और परिवार का खर्च तो चलता रहा पर अब वो बचे हुए पैसे भी समाप्ति की ओर थे। एक रात संतोष नें अपनी पत्नी विमला से कहा – प्रिये, मेरा सारा धन अब समाप्त हो चुका है; मैं पुनः शहर को जाना चाहता हूँ। विमला नें प्रश्न किया – आप कहाँ जायेंगे ? संतोष बोला – मैं यहाँ से दूर एक साधू आश्रम में जा रहा हूँ। सुना है उनके पास कई व्यक्ति काम करते हैं; मैं रुपये कमा कर यहाँ भेजता रहूँगा। विमला नें भीगी पलकों से अपने पति को निहारते हुए जाने की आज्ञा दे दी। अगले दिन संतोष कुछ साधुओं के साथ उनके आश्रम की ओर हो लिया।
एक वो दिन था जब संतोष उन साधुओं के साथ रुखसत हुआ था और आज एक दिन है जहां विमला दूसरों के घर का काम कर अपने बेटे व् परिवार का निर्वाह कर रही है। संतोष को गए पूरे 8 बरस हो चुके थे, शुरूआती महीनों में तो पैसे संतोष भेजता रहा पर जैसे जैसे साल गुजरे संतोष का कुछ पता न चला। न पति की खबर न पैसे, ऐसे में घर कैसे चलता। विमला नें यह दयनीय स्थिति को देखते हुए हार मान कर पड़ोसी घरों में नौकरानी का काम शुरू कर दिया। सास अब पहले जैसी नहीं रह गयी थी, अब न उनकी जुबान चलती न पैर। विमला के लिए बेटे और सास दोनों को संभालना आवश्यक था; हालांकि बेटा अब बड़ा हो गया था परन्तु वह ऐसी स्थिति में नहीं था की घर को चला पाए। कभी अपनी लम्बी जुबान और ताने मारने वाली सास को अब विमला की अहमियत समझ में आ गई थी। समय ओझल होता रहा, देखते ही देखते अगले 8 बरस और निकल गए। अब कुल 16 बरस हो गए थे संतोष को गए; सास भी बेटे के मिलन को तरसती हुयी जीवन से हार गयी।
यहाँ केवल एक ही बात विमला के लिए राहत देने वाली रही कि बेटा अब लगभग 20 बरस से अधिक का हो चुका था। वह गांव में ही कुछ लोहारों के साथ लोहे का काम किया करता था। एक दिन विमला बहुत थकी हुयी थी, बेटे नें कहा – माँ तू अब दूसरों के यहाँ काम करना छोड़ दे, मैं तो बहुत पैसे कमा यहाँ हूँ; तेरी देखभाल अच्छे से करूँगा। बेटे की कही बात नें विमला की आँखों में आँसू ला दिए; वह रोते हुए बोल पड़ी – हां….बेटा अब तू ही तो मेरा सहारा है।
रात गहरी नींद में थी, बेटा अपनी माँ के बगल वाले कमरे में ही सो रहा था पर विमला की आँखों में नींद कहाँ। वह चारपाई पर जागी बैठी थी, जाने क्या सोच रही थी। विमला कभी अपने हाथों को निहारती तो कभी पैरों को तो कभी झट से खड़ी हो आईने के सामने जाती फिर चारपाई पर बैठ जाती। विमला के मन में होने वाला उथल-पुथल यह साफ़ दर्शा रहा था की वह अभी भी अपनी सौंदर्यता को तलाश रही है जिसे जाने कितनी कामुक निगाहों नें दूषित कर दिया था। उन मुश्किल दिनों में दूसरों के घरों में काम करने के दौरान उसे अनगिनत बार दूषित निगाहों और दूषित मानसिकता के लोगों का सामना करना पड़ा था। भला एक माँ अपने बेटे से इन बातों को कहे भी तो कैसे।
अगले दिन की सुबह जैसे ही विमला नें घर से बाहर काम पर जाने की तैयारी की बेटे नें उसके पैर पकड़ लिए और रोकते हुए कहा – माँ अब नहीं। अपने बेटे की ज़िद्द और क्षीड़ होते अपने शरीर को देख विमला नें उसका मान रख लिया। अब बेटा ही घर से बाहर काम करता और अपनी माँ की देखभाल करता; बेटे के इस कर्तव्य को देख आस-पास की औरतें यह कहने लगीं – देख विमला तेरी मेहनत रंग लाई, तेरा बेटा तेरे सारे दुःख दूर कर देगा। तेरी सास और तेरा पति संतोष तो छोड़ के चले गए पर बेटा तेरे साथ है, अब तू इसे ही सौभाग्य समझ।
समय तो अपने पंख लगाए उड़ता चला जा रहा था। विमला को अब देरी थी तो केवल अपनी बहू के आने की, शाम जैसे ही बेटा घर को आया; अपनी माँ को मुस्कुराता देख बोला – माँ तेरे चेहरे पर हंसी अच्छी लगती है यूँ ही हंसा कर। सदियों बीत गए थे विमला को मुस्कुराये पर आज वो प्रसन्नता का वास्तविक अनुभव कर रही थी। यूँ ही हँसते खिलखिलाते विमला नें बेटे को कहा – क्यों रे…अब मुझे बूढ़ा ही मार देगा क्या ? जवान हो गया है – तनिक मुझे बहू का सुख भी तो दिला दे। ना जाने राम कम अपने पास बुला ले, जाते जाते मैं भी तो दादी बन जाऊं।
माँ के सवाल का जवाब बेटे ने देते हुए कहा – हां माँ जरूर देखेगी तू अपने नाती पोतों को, पर ये बता तेरे बेटे से शादी करेगा कौन ? अरे ऐसा क्यों कह रहा है विमला नें जोर से कहा। तेरे जैसा पति तो किसी भाग्यशाली लड़की को ही मिलेगा; देख मैं कैसे कैसे रिश्ते लाती हूँ तेरे लिए। विमला का बेटा बहुत ही सुशील था, उसने कहा – माँ तू जिससे बोलेगी शादी कर लूंगा, लड़की मेरी नहीं तेरी पसंद की होनी चाहिए।
चंद महीनों की खोज के बाद विमला को एक रिश्ता पसंद आया। लड़की के गुण में विमला नें उसकी शिक्षा को प्राथमिकता दी जिससे वह स्वयं वंचित रही। विमला का बेटा अधिक शिक्षित तो नहीं था परन्तु जैसे तैसे उसे कक्षा 8वीं तक विमला नें शिक्षित कर दिया था। विमला का यह मानना था कि लड़की भी कम से कम उसके बेटे जितनी शिक्षित हो। पड़ोस के 2 गांव को छोड़ तीरसे गांव में विमला नें अपने बेटे की शादी पक्की कर दी। पंडित के माध्यम से दोनों लड़का व लड़की पक्ष नें विवाह के लिए पूस (दिसंबर) का महीना ही चुना।
आज का दिन बेहद खास है, विमला जिस घर में स्वयं कभी बहू बनकर आयी थी आज वो सास बनने जा रही है। गरीब ही सही पर उसकी ख़ुशी हर अमीरी को फीकी कर देने वाली जान पड़ती थी। विमला का बेटा दूल्हा बनने वाला था; घर में मेहमान के रूप में आस-पड़ोस की महिलाएं, बच्चे, नौजवान और बुजुर्ग शामिल थे। जिन घरों में विमला कभी काम किया करती थी वहां भी उसने निमंत्रण बांटे थे; उसी प्रकार बेटा जिन लोगों के साथ लोहे का काम किया करता था वहां से भी काफी व्यक्ति व् नौयुवक पधारे थे। कभी बेहद छोटा सा जान पड़ने वाला विमला का घर न जाने कितने लोगों को अपने अंदर समेटे हुए था जैसे वह घर भी ख़ुशी के मारे फूल गया हो। दिवार पर लटकी सासू माँ और ससुर की तस्वीर भी विमला के अपार हर्ष का स्वागत कर रहीं थीं; बेशक सास नें विमला को कितने ही ताने क्यों न दिए हों पर विमला उनकी तस्वीर को प्रतिदिन साफ़ करती थी। दोनों ही तस्वीरों के सम्मुख खुद को और अपने बेटे को खड़ा कर विमला मांजी-पिताजी को आशीर्वाद देने को कह रही थी। अपनी माँ का यह रूप देख बेटा काफी गौरवांवित महसूस कर रहा था, वह जान गया था की उसकी माँ विमला कितनी आदर्श नारी है।
बारात जाने की तैयारी पूरी हो चुकी थी, बेटा सेहरा बांधे घर से आगे कदम बढ़ा ही रहा था, तभी – विमला….विमला….विमला….की आवाज़ लगाता हुआ एक व्यक्ति विमला के सामने आया। पारस भैया आप – इतना काहे हांफ रहे हैं ? सब ठीक तो है, और ये जोर जोर से विमला….विमला की आवाज़ काहे दे रहे थे ? पारस गांव का ही व्यक्ति था जिसे विमला अपना भाई मानती थी; वह बोला – विमला….आज तू सच में सबकुछ पा गयी रे….सबकुछ पा गयी। का हुआ ? का मिल गया हमको ? पारस रुकते हुए बोला…..संतोष….संतोष भैया ज़िंदा हैं।
संतोष शब्द विमला के कान में पड़ते ही वह आतुर हो उठी उसे देखने को; कपकपाते होंटों से बोली….वो ज़िंदा हैं….कहाँ है वो ? किधर हैं वो ? ले चलो तनिक उनके पास….पारस भैया ले चलो उनको पास। ढोल-नगाड़ों का शोर थम गया, बेटा भी ठीक माँ की तरह अपने पिता संतोष के दर्शन को व्याकुल हो उठा। माँ बेटे के अलावा पारस और समस्त गांव के लोग चल पड़े उस ओर जहाँ संतोष एक पुराने फटे लिबास में लिपटा, सदियों से न नहाया हुआ, लम्बी दाढ़ी अथवा बड़े सफ़ेद बाल लिए बेजान सा ज़मीन पर गिरा पड़ा था। उसे केवल विमला और पारस के आँखें ही पहचान सकतीं थीं क्योंकि दोनों ही संतोष के काफी करीब रहे थे।
संतोष की हालत देख यह कहा जा सकता था कि उसे इतने कष्ट तक पहुँचाने में कितने दुष्ट व्यक्तियों का हाँथ होगा। जो संतोष अपनी पत्नी और बच्चे से बेहद प्यार करता हो वो उन्हें अचानक छोड़कर कैसे जा सकता था। निश्चित ही उसे किसी नें बहुत सताया है, संतोष जीवित भर था; पर वह अपनी विमला, बेटे और मित्र पारस को नहीं पहचान पाया। समय भी कितना बलवान है, पल में जुदाई तो करा दी पर मिलाने में सदियाँ लगा दीं। आज की बारात सच में मिलन की बारात थी, एक तरफ विमला को उसका खोया हुआ पति संतोष मिल गया और दूजी तरफ बेटे को दुल्हन। अपार खुशियों से भरी बारात का दृश्य देख सभी को उस असीम परमात्मा पर विश्वास और बढ़ गया जो दुःख देता है तो सुःख भी देता है। बेटे की बारात ही सही मगर विमला अपने पति के साथ उस सजे हुए घर में दुल्हन की तरह ही आयी। विमला अब जीना चाहती थी….सबकुछ मिल गया उसे जिसकी उसे तलाश थी।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा
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रवि प्रकाश शर्मा
मैं रवि प्रकाश शर्मा, इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी से ग्रेजुएट। डिजिटल मार्केटिंग में कार्यरत; डिजिटल इंडिया को आगे बढ़ाते हुए हिंदी भाषा को नई ऊंचाई पर ले जाने का संकल्प। हिंदी मेरा पसंदीदा विषय है; जहाँ मैं अपने विचारों को बड़ी सहजता से रखता हूँ। सम्पादकीय, कथा कहानी, हास्य व्यंग, कविता, गीत व् अन्य सामाजिक विषय पर आधारित मेरे लेख जिनको मैं पखेरू पर रख कर आपके समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूँ। मेरे लेख आपको पसंद आयें तो जरूर शेयर कीजिये ताकि हिंदी डिजिटल दुनियां में पिछड़ेपन का शिकार न हो।