काश इस जीवन की फिर शुरुआत हो जाए – हिंदी कविता

बचपना कुछ ऐसा होता है कि हम बूढ़े होकर भी उसे भुला नहीं पाते। हम सभी का बचपन तमाम किस्से व् कहानियों से भरा होता है जिसे हम जीवन के हर मोड़ पर याद किया करते हैं। बेशक बढ़ती उम्र हमारे बचपने को ढकती चली जाती है पर फिर भी कहीं न कहीं दिल में छुपे वो मासूमियत के गुबार फूट पड़ते हैं और फिर ये मन अनायास की कह उठता है की काश वो दिन फिर लौट आते। मेरी यह कविता उन्हीं बचपन के दिनों और शरारतों की पुनः याद दिलाती है।

काश इस जीवन की फिर शुरुआत हो जाए।
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

कभी आँगन, कभी छत, कभी गलियों में भीगना ;
यहाँ से वहाँ दौड़ना व चीखना ;
खोये हुए दिन और रात मिल जाए ;
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

सफ़ेद कुर्ते पर गीली मिट्टी के छींटे ;
एक काग़ज़ की नाव, सारे बच्चे उसके पीछे ;
बिछड़े दोस्तों से फिर यूँ मुलाक़ात हो जाए ;
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

रिमझिम बारिश की फुहार ;
वो बागीचा, जिससे हम करते थे प्यार ;
मीठे जामुन के गुच्छों पर वही बौछार हो जाए ;
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

भीगे मैदानों पर गिरते फिसलते हम ;
जहाँ न कोई परवाह न कोई ग़म ;
खुले आकाश में इंद्रधनुष उभर आए ;
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

काश इस जीवन की फिर शुरुआत हो जाए।
मैं बच्चा बनूँ और बरसात हो जाए।।

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा