कितना बदल गया इंसान

देख तेरे संसार की हालत क्या हो गयी भगवान्
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान
सूरज न बदला, चाँद न बदला, न बदला रे आसमान
कितना बदल गया इंसान, कितना बदल गया इंसान।

ऊपर अंकित पंक्तियाँ सुप्रसिद्ध लेखक , कवि व गीतकार “प्रदीप” की हैं जिसे उन्होंने सन 1954 में हिंदी फिल्म ‘नास्तिक’ के लिए लिखा था। कवि प्रदीप का मूल नाम ‘रामचंद्र द्विवेदी’ था, जिनका जन्म मध्य प्रदेश स्थित बड़नगर में 6 फ़रवरी 1915 को हुआ था। यह तो एक संछिप परिचय है महान कवि प्रदीप जी का जिनको भारत सरकार नें उनके द्वारा लिखे यादगार हिंदी गीतों के लिए वर्ष 1997-98 में सिनेमा जगत के सर्वोच्च सम्मान “दादा साहब फ़ाल्के पुरस्कार” से सम्मानित किया।

“Kitna Badal Gaya Insaan” यह पंक्ति यूँ तो 1954 में लिखी गई परंतु यह आज भी एक कटु सत्य की तरह जान पड़ती है। ऐसी ही रचनाएं जिवंत लेख का तमका हासिल करतीं हैं जिसका गौरव कवि प्रदीप को प्राप्त है। Dekh Tere Sansar Ki Halat kya Ho Gayi Bhagwan यह ईश्वर से एक गुहार है की जरा वो अपनी निगाहें इस धरा पर फेरे कि जिस मनुष्य नामक अपनी कृति पर वो इतना इतरा रहा है उसी मनुष्य नें उसके द्वारा रचित इस बेहद खूबसूरत संसार की क्या हालत कर दी है।

Kitna Badal Gaya Insaan कितना बदल गया इंसान

पशुओं पक्षियों और वनस्पतियों को नुक्सान पहुँचाने के बाद इंसान अब इंसान को नुक्सान पहुँचाने के लिए हरपल व्याकुल है। भारतवर्ष, जो अपनी संस्कृति , कला , ज्ञान , व्यवहार , समाजवाद आदि जैसे कारणों के लिए जाना जाता था, आज वो ये सब भूल बैठा है। देश में बढ़ती वर्चस्व की राजनीति , पूंजीवाद व्यवस्था , सबकुछ हासिल कर लेने की असीम होती महत्वकांक्षाओं नें मानव की चेतना , वेदना , भावना , आदर्श व सिद्धांतों की बलि दे दी है। सच में कितना बदल गया इंसान ! क्या ये वही देश है जहाँ माता पिता को ईश्वर तुल्य समझा जाता था , क्या ये वही देश है जहाँ स्त्री को देवी स्वरुप माना जाता था , क्या ये वही देश है जहाँ बेटी को लक्ष्मी माना जाता था , क्या ये वही देश है जहाँ भाभी को माँ का दर्जा हासिल था , क्या ये वही देश है जहाँ घर की बहू को बेटी समझा जाता था , क्या ये वही देश है जहाँ अतिथि को देव की उपाधि दी जाती थी ? ये अनगिनत सवाल हैं जिनका उत्तर आज किसी के पास नहीं।

Kitna Badal Gaya Insaan हाँ सच में बदल गया है इंसान, जिसे कभी न मिटने वाली भूख है। वो भूख है धन की , ताकत की , हुकूमत की , स्त्री की , किसी के खून की , किसी के इज़्ज़त की , किसी से सबकुछ छीन लेने की। Dekh Tere Sansar Ki Halat काश भगवान् यह सब देख पाता की सच में उसके द्वारा निर्मित मानव आज पूर्णतः दानव बन चुका है। धर्म , पुण्य , सत्य , अच्छाई आज मानव के शब्दकोष से बाहर के शब्द हो चुके हैं, बल्कि इन शब्दों का इस्तेमाल करने वाला कोई सज्जन व्यक्ति किसी मुर्ख प्राणी की तरह प्रतीत होता है। समाज में रहने वाला अन्य मानव ऐसे सज्जन व्यक्तियों का निरंतर उपहास करते हैं जैसे की अच्छा होना कोई पाप हो।

नैतिकता व शिष्टाचार तो अब बीती बात हो गयी, शायद कहीं किताबों में दिख जाय परन्तु मानवीय व्यवहार में अब उसके अंश मौजूद नहीं। यह 21वीं सदी का मानव है, चाँद और मंगल पर अपना आशियाना तलाश रहा है पर जरा अपनी धरा पर इस मानव के कृत्य तो देखो – सिर शर्म से झुक जायेगा। एक तरफ हम काली, दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी के रूप में स्त्रियों का पूजन करते हैं तो दूजी तरफ उनके तन पर भी गन्दी नज़र रखते हैं। अपनी संस्कृति की दुहाई देने वाला ये भारतवर्ष जहाँ रोज एक स्त्री की आबरू लूटी जाती है वो भी 21वीं सदी में रहने वाले खुद को पढ़े लिखे कहने वाले मानवों के द्वारा। काश की उनकी भूख यहीं मिट जाती पर वहशी नजरें तो 4 साल की बच्ची में भी जिस्म लताश लेतीं हैं। कवी प्रदीप नें ठीक ही तो कहा Kitna Badal Gaya Insaan, अब क्या ये मानव नन्हें बच्चों को भी अपना शिकार बनाता रहेगा या फिर कुछ सुधार की गुंजाईश है।

भगवान् राम , भगवान् गणेश को मानने वाला भारत देश जहाँ वृद्धाश्रमों की संख्या में प्रतिदिन इजाफ़ा होता जा रहा है। क्या यही शिष्टाचार है ? कौन सी पीढ़ी है ये ? क्या यही 21वीं सदी का ज्ञान है ? एक दौर ऐसा भी था जब एक व्यक्ति के पास रहने को पक्का मकान नहीं था, कमाने का उचित साधन नहीं था, जीवन कृषि पर आधारित था, रोग और पीड़ा का निदान नहीं था, आवश्यकताओं को पूरा करने का साजो सामान नहीं था ऐसे विषम परिस्थितियों में भी उस दौर की पीढ़ी नें अपने माता पिता का साथ नहीं छोड़ा। परन्तु आज – पक्का मकान है , हर साजो सामान है फिर भी 21वीं सदी का बेटा बेईमान है। सच में कितना बदल गया इंसान !! कहाँ जा रहे हैं हम क्यों जा रहे हैं क्या प्राप्त करना चाहते हैं !! किसी को कुछ नहीं पता।

बात केवल बेटों की नहीं है बेटियों नें भी सीमाओं को पार कर दिया है, अपने घर व माता पिता से ज्यादा किसी और से दिल जोड़ लिया है; 21वीं सदी की बेटियां है। एक दौर था जब बहू बेटी को घर से बाहर निकल कुछ करने का अवसर प्राप्त नहीं था, किन्तु पुरुष समाज नें अपने विचार बदले और यह तय किया की बेटी पढ़ाओ – बेटी बचाओ, यदि हो सके तो इनको अपने पैरों पर खड़ा कर जाओ। बहुत ज्यादा तो नहीं पर आज लड़कियां पढ़ रहीं हैं , नौकरी कर अपना भरण पोषण कर रहीं हैं पर एक गलती वो आज कर रहीं हैं की जिसने उनको अतीत के दलदल से निकाल आगे बढ़ने का मौका दिया उसे बदले में सब नहीं तो कुछ बेटियों ने बहुत धोखा दिया। अक्सर ऐसी घटना सुन दिल दहल जाता है जब बेटी का प्यार बाप के गले पर वार कर जाता है। किसी ने शाजिश से मारा, किसी नें छत से धक्का दे दिया, किसी नें किसी से क़त्ल करवा दिया। क्या यही 21वीं सदी के बेटी है ? क्या यही 21वीं सदी का प्यार है ? अपनी आज़ादी की मांग करने वाली लड़कियां यह ध्यान दें की आज़ादी जीने का नाम है खून बहाने का नहीं।

पैसा , व्यापार और बाजार; बस यही है 21वीं सदी का सार। पेट में भूख है पर पैसा नहीं तो फिर मर जा, यहाँ कोई सेठ ऐसा नहीं जो तुझे खाना दे। हिन्दुस्तान जहाँ कभी दान में भी लोग दाल चावल दे दिया करते थे आज वे बेहद कंगाल हैं। Global Hunger Index में India को 100वां स्थान प्राप्त है। यह विकराल स्थिति तब है जब Hindustaan अपनी आज़ादी के 75वें वर्षगांठ की ओर अग्रसर है। खूब मनाई आज़ादी हमने की देश के लोगों का पेट भी न भर सके और खुद को कृषि राष्ट्र बताते हैं। 21वीं सदी का यह भारत भूख ग़रीबी बेरोजगारी और अपराध जैसे भूतों से घिरा है। आज़ादी के बाद अबतक कुल 18 Prime Minister हमने बदल डाले पर भूख और ग़रीबी अब तक न बदली जा सकी। Dekh Tere Sansar Ki Halat kya Ho Gayi Bhagwan, Kitna Badal Gaya Insaan हाँ बहुत बदल गया है इंसान जिसे सिर्फ पैसा और व्यापार दिखाई देता है किसी का दर्द नहीं।

India in 2050, ऐसा सुनने में आ रहा है की 2050 तक भारत विश्व की महाशक्ति के रूप में उभरेगा। गौरव होता है ऐसी बातें सुनकर किन्तु यह गौरव और दोगुना बढ़ जायेगा जब हिन्दुस्तान महाशक्ति होने के अतिरिक्त महासंपन्न भी कहलायेगा। यह गलत नहीं है की भारत आर्थिक मोर्चे पर आगे बढ़ा है पर सामाजिक ढांचा पहले के मुकाबले अब ज्यादा गिरा है। अगर देश में भूख ग़रीबी अपराध अधर्म यूँही मुँह फैलाते रहे तो महाशक्ति बनना तो महज एक ख्वाब होगा, देश में हर जगह अपराध होगा।

पर उम्मीदों पर दुनियाँ कायम है – आप और हम यही कामना करें की भारत जल्द से जल्द भ्रष्टाचार मुक्त देश बने और प्रगति करे।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा