अगर मैं अब्बा होती

Agar Main Abba Hoti-Short-Hindi-Story

अब्बा मैं यह जानती हूँ कि तुम अब्बा हो फिर भी तुम यह जान लो कि अगर मैं अब्बा होती तो मैं यूँ ना करती।
हाँ, तमाम शिकायत है मुझे तुमसे शायद महज़ इसलिए कि तुम अब्बा हो।

अगर मैं अब्बा होती तो यूँ कभी ना करती कि तुम्हारे कपड़े आ जाने से खुद के लिए कुछ भी खरीदने की गुंजाईश को पूरी तौर से खत्म कर देती।



अगर मैं अब्बा होती तो मैं अम्मी से तुम्हारे ख़ातिर बेसबब ना झगड़ती,
अगर मैं अब्बा होती तो मैं तुम्हारे बेमतलब से शौक के लिए अपनी तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा तो हरगिज़ कुर्बान ना करती,
अगर मैं अब्बा होती तो मैं अब्बा होने की अज़मत उठाते हुए टी.वी का रिमोट छीनकर अपनी मर्ज़ी का न्यूज़ चैनल तो बिल्कुल नहीं लगाती,

अब्बा तुम जान लो की अगर मैं अब्बा होती मेरे हिस्से की मिठाई यकीन मानो मैं खुद ही खाती,
अगर मैं अब्बा होती तो तुम्हारी गलती के बाद भी हर दफ़ा भाई पर नहीं चिल्लाती,

अगर मैं अब्बा होती तो वह रंग-बिरंगे दस्ताने हर सर्दी में सबसे पहले खुद के लिए लाती और तुम्हें घुमाने की बात कहकर गली का एक चक्कर लगाकर घर तो कभी नहीं छोड़ कर जाती।




अब्बा !
मैं अब्बा होती तो मैं उस सुर्ख लाल कमीज़ को खरीदने से पहले हजार दफा ना सोचती,
हाँ वही लाल कमीज जो तुम्हें कल शाम पसंद आई थी,
अगर मैं अब्बा होती तो सालाना ही सही लेकिन जी भर के रोने के लिए घर के बेज़ार कोने में तो कभी नहीं बैठती,
और यकीन मानो कि अगर मैं अब्बा होती तो एक बेहतरीन स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हुए उन सभी तकलीफों को तुम्हारे साथ समान रूप से शेयर करती।

अगर मैं अब्बा होती तो,
शायद तुम्हारी हर एक ख्वाइश को अपनी हर इक ख्वाइश के आगे हमेशा ना रखती,
अगर मैं अब्बा होती तो,
लोगों से मुतासिर होकर शायद तुम्हें अपने ख्वाबों को बाहों में भरने से रोक दिया करती,

शायद,
शायद कुछ हो जाने के ख़ौफ़ से तुम्हें कुछ भी ना करने देती,
अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो हर एहसास को तुमसे दिल खोल कर कहती,
अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो तुम्हे पढ़ने को हर वक़्त ना कहती,
लेकिन अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो तुमको ज़रूर बताती की अब्बा होना होता क्या है,
तुमको दूर जाने देना मुझे भी उतना ही दर्द देता है,
तुमसे बात ना हो पाने पर यह दिल ठहर जाता है,
तुम्हारे ना होने पर यह घर मुझसे कुछ कहता है की वो तमाम शहर खामोश रहता है, तुम्हारा छुट्टियों पर लौट आना कितना ख़ास होता है।

लेकिन अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो बताती की अब्बा का दिल भी बेटी सा कमज़ोर होता है,
लेकिन अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो कह देती वो सब तुमसे जो तुम मुझसे ना कह पाए या ना कहना चाहा या नहीं कह पाते,
लेकिन अब्बा अगर मैं अब्बा होती तो तुम्हें बताती की अब्बा का होना ही सबकुछ का होना होता है ।

लेकिन अब्बा !
अगर मैं अब्बा होती तो फिर कभी अब्बा होने की ज़िद ना करती।

लेखिका:
वैदेही शर्मा