नारीवाद के असल मायने
नारीवाद कोई उपलब्धि नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी है। जी हाँ नारीवाद आजकल के दौर में एक ऐसा शब्द बन गया है जो हर एक सशक्त नारी का एक वाजिद अस्त्र और शस्त्र है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि दुनिया को आगे ले जाने के लिए नारीवाद का अपने पैरों पर खड़ा होना बेहद आवश्यक है और उसे पैरों पर खड़े होने के लिए पर्याप्त बल नारियों के संपूर्ण रूप से कामयाब होने से ही प्राप्त हो सकता है। लेकिन नारीवाद का सीधा सीधा रास्ता जनकल्याण से है जनकल्याण से नहीं तो नारी कल्याण से तो जरूर है लेकिन नारीवाद का झंडा ऊँचा करने से पहले इस शब्द के मायने पूरी तरह से समझ लेना बहुत जरूरी है। ऐसा नहीं है कि मैं नारीवाद के खिलाफ हूँ ज़ाहिर सी बात है कि मैं खुद एक लड़की हूँ तो मेरा इस बात के खिलाफ जाने का कोई सवाल नहीं उठता और मैं दावे के साथ कहती हूँ कि यदि मैं कोई पुरुष होती तो भी मैं नारीवाद के खिलाफ खड़ी नहीं होती। हाँ यहाँ मेरा सीधा सा उद्देश्य सिर्फ आपको फेमिनिज्म की पूरी परिभाषा को स्पष्ट कर देने से है। क्योंकि जब तक हम किसी बात को पूरी तरीके से जानेंगे नहीं तो उस बात का अनुसरण करना तो हमारे लिए और भी मुश्किल हो जाएगा।
तो चलिए इस मुद्दे से जुड़ी हुई एक रोचक घटना मैं आपको सुनाती हूँ या यूं कहें कि पढ़ाती हूँ।
एक दिन हुआ यूँ कि मेरे पिताजी का स्वास्थ्य कुछ गड़बड़ था तो मैं उन्हें लेकर अस्पताल गई। वहाँ पर पुरुषों और महिलाओं की कॉमन क्यू थी हम काफी देर से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे इतने में ही मेरी हम उम्र एक मोहतरमा आई और उन्होंने मेरे पिता से कहा कि मुझे आगे लग जाने दीजिए इस बात को सुनकर मुझे थोड़ा क्रोध आया और यह जायज भी था पहली बात तो यह कि पिताजी से जुड़ी मेरी आत्मीयता अवश्य रुप से ज़्यादा थी और दूसरी बात यह कि उन मोहतरमा के पास आगे बढ़ने का कोई भी मूलभूत कारण नहीं था। तो मैंने उनसे कहा कि हम यहाँ पर आप से पहले से इंतज़ार कर रहे हैं बेहतर होगा कि आप अपनी जगह हमारे पीछे ग्रहण करें इस बात पर मोहतरमा मुझसे नाराज़ होकर ऊँची आवाज़ में बोली कि तुम्हारी जैसी लड़कियों के कारण ही तो फैमिनिज़्म आगे नहीं बढ़ पा रहा है। तो मैंने उनसे बड़ी विनम्रता से अनुरोध किया कि बेहतर होगा यदि आप पहले फेमिनिज्म के असल मायने समझ लें।
नारीवाद का अर्थ यह नहीं कि नारी को नारी होने के लिए कोई खास उपलब्धि मिले। नारीवाद का मतलब यह है कि उसे नर के सामने खड़े होने के लिए संपूर्ण सहयोग किया जाए व उसकी उचित शिक्षा हो। उसे अपने हिस्से की खुशियों को चुनने का अवसर मिले और किसी भी तरह से उन्हें नर की अपेक्षा कम ना आका जाए, लेकिन यह मुकाम भी तो नारी को खुद ही बनाना है। फिर चाहे उस रास्ते में नारी को कितना भी संघर्ष ना करना पड़े यदि वह नारीवाद को आगे ले जाना चाहती है तो उन्हें नारी होने पर गर्व होना चाहिए ना कि उन्हें किसी भी प्रकार से किसी फ़ायदे का पात्र बनना चाहिए।
नारीवाद अमर रहें।
लेखिका:
वैदेही शर्मा