भारत की अमूल्य लोक कलाएँ
भारत एक ऐसा देश है जहां पर सबसे अधिक लोक कलाओं (Lok Kala) का जन्म हुआ है। यदि हम गौर करें तो हमें बहुत सी ऐसी कलाएँ देखने को मिलेंगी जिनके बारे में हम भारतवासी होने के बावजूद भी नहीं जानते और इन कलाओं का स्वरूप इतना विराट है कि यह किसी तरह के के परिचय की मोहताज नहीं हैं। तो चलिए आज हम आपको बताते हैं ऐसी लोक कलाओं के बारे में जो अमूल्य हैं। मुझे उम्मीद है कि इनके बारे में जानकर आपको अत्यंत प्रसन्नता होगी।
Tanjore Art तंजौर कला:
तंजौर कला का जन्म मूलतः दक्षिण भारत से हुआ। तंजौर कला का इतिहास भी बेहद लंबा है। तंजौर कला मुख्यतः एक चित्रकारी का रूप है जिसमें स्वर्ण, कीमती पत्थरों और कांच का प्रयोग किया जाता है इस कला को मुख्यतः इन तीन चीज़ों के सहारे अति सुंदर बनाया जाता है। इस कला का जन्म 16वीं शताब्दी के मध्य में हुआ था इस कला में ज्यादातर भगवान के स्वरूप का वर्णन किया जाता है।
Kalamkari Art कलमकारी कला:
कलमकारी इस शब्द का नाम दो शब्दों के मेल से बना है जिसमें पहला शब्द है ‘कलम’ और दूसरा शब्द है ‘कारी’। इस कला के अनुसार इसमें कलम का अर्थ है चित्रकारों के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली कलम जो कि बंबू के मदद से बनाई जाती है और कारी का मतलब है वह कार्य जिसको हम कला के रूप में जानते हैं। इस लोक-कला में मुख्य तौर से सब्जियों के रस का प्रयोग किया जाता है और उन सब्जियों के रस में डुबाकर कलम में रंग भरा जाता है। यह लोक-कला भारत की विरासत को और भी समृद्ध बनाती है।
Gond Art गोंड कला:
गोंड कला मध्य भारत कि एक लोक कला है जिसका जन्म 17वीं सदी के मध्य में हुआ था। गोंड कला मुख्य रूप से गोंड आदिवासियों से जुड़ा हुआ है जो कि उनके हुनर को बखूबी पेश करता है। गोंड कला में बिंदुओं के सहारे चित्रकारी की जाती है, गोंड कला में आदिवासियों का प्रकृति के प्रति लगाव साफ देखने को मिलता है यही वजह है कि इस चित्रकला में सबसे ज्यादा पेड़-पौधे पहाड़ साथ ही साथ जानवर देखने को मिलते हैं। गोंड कला को सीधे रूप से बेहतर भाग्य से भी जोड़ा जाता है।
Warli Art वर्ली कला:
वर्ली कला का दक्षिण भारत के आदिवासियों की ही देन है इस कला को भारत में 16वीं शताब्दी के मध्य में पहली बार देखा गया इस कला में मुख्यतः त्रिकोण और गोल आकार के चित्र बनाए जाते हैं जिसमें आदिवासियों के जिंदगी के कई रंग शामिल होते हैं। वर्ली कला भारत की सभ्यता का एक अनूठा हिस्सा है जो कि भारत को और भी अलग रूप में प्रदर्शित करता है।
Madhubani Art मधुबनी कला:
मधुबनी कला को आमतौर से मिथिला कला के रूप में भी जाना जाता है मधुबनी कला में अलग अलग प्रकार के आकारों के द्वारा चित्रकला को पूर्ण किया जाता है। इस कला का जन्म राजा जनक के जीवन काल के दौरान हुआ था मधुबनी कला आज भी भारत के गौरव को अखंडता के शिखर पर ले जाने में कामयाब है।
भारत कलाओं का भवन है और हमेशा रहेगा।
लेखिका:
वैदेही शर्मा