सोशल मीडिया तुम मेरी जिंदगी का हिस्सा हो, मेरी जिंदगी नहीं !
क्या आपको याद है, कि कल शाम को बड़ी ही तन्मयता से जब आप अपने फोन में व्यस्त थे तब माँ आपके पास आई थी, वह आपसे कुछ ज़रूरी बात करना चाहती थी लेकिन आपको अपनी एक अलग दुनिया में डूबा हुआ देखकर उन्होंने आपसे कुछ ना कहना ही बेहतर समझा। लेकिन इसमें कौन सी बड़ी बात है, ऐसा तो होता है ना !! जाने कितनी दफा आप सोशल मीडिया की दुनिया में खोए हुए रहते हैं आपको इस बात का एहसास भी नहीं होता कि आप अपनी जिंदगी के कितने कीमती पलों को खो रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि हमें कभी भी एहसास नहीं होता, लेकिन जब तक होता है तब तक बेहद देर हो जाती है। इसलिए मैं यहाँ स्पष्ट कर देना चाहती हूँ कि सोशल मीडिया तुम तो मेरी जिंदगी का एक हिस्सा हो लेकिन मेरी पूरी जिंदगी कतई नहीं। इस बात में कोई शक नहीं की सोशल मीडिया ने हमारी संवेदनाओं को बेहद छोटा बना दिया, कोई भी दूरी अब दूरी सी नहीं लगती। तभी तो किसी के लंबे वक्त बाद मिलने के बाद भी जो वाजिद रौनक हमारे चेहरे पर होनी चाहिए वह कहीं गुम सी हो गई है। मैं यह नहीं कहूंगी कि यह बुरा है! लेकिन यह बात हमारे जज़्बातों पर एक मुखौटा पहनाने में ज़रुर सक्षम है।
कितनी अजीब बात है कि जिसको हमने कभी देखा नहीं, जिसकी आवाज़ भी शायद हमने कभी सुनी नहीं जो अपनी जिंदगी में कब कहाँ और क्या करता है हमें इसकी कोई खबर नहीं उसके बावजूद हम उस शख्स को अपनी जिंदगी में हमेशा मौजूद रहने वाले शख्स से कहीं ज्यादा अहमियत देने लगते हैं।
मैं आपसे बस एक बहुत छोटी सी बात पूछना चाहती हूँ की जब आप बीमार हो जाते हैं तो क्या यह दोस्त जो आपकी हर तस्वीर पर लाखों लाइक्स और कमेंट्स का सैलाब ला देते हैं क्या वह आपके सर पर धीमे से हाथ रखने आते हैं ?
क्या जब आप सो रहे होते हैं तो आपकी आँखों में आँखें डालकर कहते हैं कि तुम घबराओ नहीं सब ठीक हो जाएगा।
क्या वह आपकी सुबह की पहली चाय बनाकर आपके हाथ में थमाते हैं ?
क्या आपकी एक मुस्कान के लिए अनगिनत प्रयास करते हैं ?
आप भी जानते हैं कि मेरे इन सभी सवालों का जवाब सिर्फ ना है !!
इस दुनिया में मौजूद हर एक चीज़ के दो पहलू होते हैं, उसी तरीके से सोशल मीडिया का वर्चस्व भी हमारे लिए अनेक सुविधाएँ लेकर आता है। लेकिन हम ना जानें यह बात क्यों भूल जाते हैं कि “हमें सोशल मीडिया का उपयोग करना है, सोशल मीडिया को हमारा नहीं“।
बेहतर होगा कि हम एक बेबुनियाद ख़्वाब के चलते अपनी हक़ीक़त को नज़रअंदाज़ ना करें। उन धुंधलाते हुए इमोजीज़ (emoji icons) के मुकाबले हमारी सच्ची मुस्कान बेहद खूबसूरत है। इसे बरकरार रखिये, क्योंकि Social Media पर खुश दिखने में और यकीनन खुश होने में बेहद फर्क है।
अब इस बात का फैसला सिर्फ आपके ऊपर है कि सोशल मीडिया की जिंदगी का एक हिस्सा है या आपकी पूरी ज़िंदगी ?
मुझे पूरा भरोसा है कि आप इस सवाल का जवाब ज़रूर तलाशेंगे।
लेखिका:
वैदेही शर्मा