#Metoo Hashtag – मी-टू महज एक हैशटैग नहीं !

मी-टू MeToo, महज़ एक हैशटेग नहीं बल्कि अपने आप में एक दर्द की गर्दिश में छुपी हुई दुनिया है।
जी हाँ आज हम एक बहुत ही संजीदा मुद्दे पर बात करने जा रहे हैं। मैं जानती हूँ कि इस विषय पर बात करना कितना ज्यादा जरूरी है, अतः मैं आपसे Metoo के प्रभाव के बारे में बात नहीं करने जा नहीं जा रही हूँ और ना ही मैं आपको इस Hashtag से जुड़ा हुआ कोई इतिहास बताना चाहती हूँ। मैं सिर्फ और सिर्फ आपको यह बताना चाहती हूँ कि “Metoo” सिर्फ Hashtag नहीं बल्कि अनगिनत लोगों की ज़िन्दगी का एक सबसे बेरंग सच है।

2017 में इस Metoo Hashtag को पहली बार सोशल मीडिया पर उपयोग में लाया गया और उसके बाद मानो उन करोड़ो दिलों को हिम्मत की एक किरण नज़्र आ गई, जो ना जाने कब से अंधेरी रात में दबकर बैठी हुई थी। मी-टू एक सैलाब है जिसके अंदर बहुत सी ऐसी चीखें हैं जो कभी किसी को सुनाई नहीं दीं या फिर यूँ कहें कि वह कभी हलक से बाहर ही नहीं आ पाई।



MeToo-Hashtag-Social-Media-kya-hai-metoo मी-टू महज एक हैशटैग नहीं

मेरा उद्देश्य ‘मी-टू’ जैसे गंभीर विषय पर बात करके सहानुभूति बटोरना नहीं है। ऐसा नहीं है कि वह लोग जो कि मी-टू का प्रयोग कर रहे हैं वह सहानुभूति के पात्र नहीं बल्कि मेरी नज़रों में वे लोग घिन्न का पात्र हैं जिन्होंने उन्हें इस हैशटेग की कतार में लाकर शामिल कर दिया।

कौन हैं वो लोग, ना जाने कहाँ से उनकी मानसिकताओ में इतना ज़हर भर जाता है कि उस जहर के चलते एक इंसान अपनी पूरी जिंदगी जीते जी मरता रहता है। कितनी अजीब बात है कि आज के दौर में औरतें ही नहीं बल्कि ऐसे कई मासूम लड़के भी हैं जो इस पीड़ा को सहन कर चुके हैं। एक सर्वे के मुताबिक औसतन हर तीसरा शख्स ऐसा है जिसने अपनी जिंदगी में कभी ना कभी, किसी ना किसी रूप में मॉलेस्टेशन (molestation) को सहा है।

मैं आपका ध्यान Metoo हैशटैग पर एकत्रित करना बिल्कुल नहीं चाहती, मैं चाहती हूँ की हम उन कारणों पर बात करें जो इस Hashtag के पीछे छुपी घुटन की ज़िंम्मेदार है। क्या मानवीय शरीर इतना विवश है कि वह है खुद पर काबू भी नहीं कर सकता ? और यदि ऐसा है तो मुझे नहीं लगता कि इससे अधिक शर्मनाक कुछ और हो सकता है। मेरी सोच में एक बलात्कारी तब ही बलात्कारी बन जाता है जब वह बलात्कार करने की सोच के प्रति अग्रसर हो जाता है। क्या आपको नहीं लगता कि इस तरीके के इंसान होने से तो अच्छा जानवर होना बेहतर है ! एक और वजह जो कष्ट के पीछे ज़िम्मेदार है, वह है खामोश रहना। अपराधी को लगता है की उसका अपराध कभी उजागर नहीं होगा और वे लोग जो समाज के खोखले दबाव के चलते इसे छुपाते हैं वह भी तो अपराधी ही हुए।

रही सही कसर तब पूरी हो जाती है जब लोग सामने आने का साहस दिखाते हैं लेकिन कानून व्यवस्था उनका साथ नहीं दे पाती।
इसलिये अब वो वक्त आ चुका है जब हमें मिलकर आगे बढ़ना होगा।
मैं पुनः कहना चाहूँगी, #metoo महज़ एक Hashtag नहीं !!

लेखिका:
वैदेही शर्मा