उलझा उलझा रहता है मन, जाने क्यूं !

उलझा उलझा रहता है मन, जाने क्यूं
हरदम कुछ कहता है मन, जाने क्यूं

Uljha Uljha Rehta Hai Mann Janein Kyun उलझा उलझा रहता है मन, जाने क्यूं

ज़िन्दगी की कैद में
अरमानों का पंछी है
उम्मीदों के पंख लिए
जिसकी हसरतें मचलती हैं
उड़ जाने का करता है मन, जाने क्यूं

ये कैसा मायाजाल है
जिसने हमको घेरा है
हर तरफ बस ख्वाहिशों का पहरा है
जीवन के इस आज से बचकर
कल में जानें को करता है मन, जाने क्यूं

उलझा उलझा रहता है मन, जाने क्यूं
हरदम कुछ कहता है मन, जाने क्यूं

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा