पहली मुलाक़ात..(आंशिक) – हिंदी कहानी
आज पहली बार मिले थे शिव और शिवा, ख़ुशी अपने चरम पर थी…
राधा कृष्ण जी के दर्शन करने के बाद दोनों वहीं एक पेड़ के नीचे बैठ गए..।
आप कुछ बताने वाली थीं…शिव ने शिवा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार पूछा !
जी क्या बताएँ, कुछ भी नहीँ बस; शिवा ने बात का प्रतिउत्तर दिया।
अरे ऐसे कैसे, मैं इतनी दूर से सुनने आया हूँ, बताइये क्या बात, क्या तकलीफ है…शिव ने फिर पूछा !
शिव के अपनेपन को महसूस करती हुई शिवा बता देना चाहती थी अपनी सारी तकलीफें, अपनी हर उलझन, इतना रोना चाहती थी की दुख के सारे आंसू ही खत्म हो जाएँ, वो चाहती थी शिव के कंधे पर सिर रख कर घंटों शांति से चुपचाप बैठना। पर वक़्त उसके साथ नही था; कुछ ही देर का तो था ये साथ, जिसकी प्रतीक्षा दिन रात की थी दोने नें..।
शिव की आँखों में कुछ पल देखकर शिवा ने चेहरा दूसरी ओर घुमा लिया, उसे डर था कि उसके सब्र का बांध न टूट जाएँ; यह ख़ामोशी उसे अभी न जाने कब तक कायम रखनी है…इसका फैसला उसने वक़्त पर छोड़ रखा है।
अपने जज्बातों को दिल में वापस कैद करते हुए…वही मुस्कुराहट चेहरे पर सजाये शिवा फिर से एक बार तैयार थी शिव के सवालों का जवाब देने के लिए उसके स्पर्श को महसूस करते हुए उसके करीब आकर सिमट जाने के लिए।
बताइये न, यार क्या बात थी;
शिव ने फिर पूछा, कुछ नहीं बस हो जाता है कभी-कभी, कुछ-कुछ शिवा ने जवाब दिया..।
वो बताती भी तो क्या बताती, कैसे बताती…की जो जिंदगी ऊपर से इतनी खुश दिख रही वो असल में अनेक पीड़ाओं को एक साथ सह रही है। जिनमे से कुछ तो उसके अपनों के द्वारा ही उसे सौगात के रूप में हर रोज़ मिल जाती हैं। कभी-कभी तो उसे ऐसा लगता है की उसकी सांसों पर भी पहरा हो किसी का , उसे साँस लेने के लिए भी इजाजत लेनी पड़ेगी..!
उसे फ़िक्र है की ऐसे में उसके प्रेम का क्या होगा..! उसे तो अधिकार ही नही था किसी से प्यार करने का, सभी को तो लगा था कि उसके पास दिल ही नहीँ, उसकी नियति तो तय कर चुके थे सभी पहले ही…और वो नियति थी कि उसे शादी नहीं करनी…!! पर क्यों ? क्या उसे अधिकार नहीं अपने जीवन साथी के साथ जीवन का सफर तय करना का !! हर बार उसके सपनों को तोडा गया था, स्नेह के आवरण तले उसकी ख्वाहिशों का दम घोट दिया गया था…वो सेवा करने से दुखी नहीं थी, उसे तो आनंद आता है सेवा में..! पर उसके प्रेम आदर और समर्पण को सिर्फ स्वार्थ के लिए ही पूछा जा रहा था…।
उसे कैद करने वाले ने सोने के पिंजडे में कैद किया था…जहाँ शिवा की नजरों से देखा जाये तो सिर्फ और सिर्फ घुटन थी…पर कैद करने वालों की नजरों में तो उसने संसार का सारा सुख दे रखा था उसे…! हाँ इतना सुख कि वो दो पल सुकून से बैठ नहीं सकती थी…दर्द होने पर भी रो नही सकती थी…चाह कर भी किसी से मिल नहीं सकती थी…वो सोने के पिंजडे में कैद उस चिड़िया की तरह थी जिसे उड़ने की चाह में बार-बार बिजली के झटके सहने पडे थे….और अब वो इस कदर सहम चुकी थी कि पिंजड़ा खुला होने पर भी उसकी हिम्मत नहीं होती उड़ान भरने की।
..हाँ वैसी ही रही शिवा, तेज आवाज से डर लगने लगा था उसे…भीड़ से डरती है वो…5 मिनट भी लेट होने की इजाजत नहीं है उसे; इसलिए इतनी जल्दी में चलती है कि हर बार ठोकर खाती है और उसे सम्हाल लेने के लिए कोई नहीं होता..।
उसे बस इस्तमाल किया जा रहा है…कभी प्यार से, स्नेह से, तो कभी डाँट कर धमका कर…! और ये बात वो अच्छे से जानती है समझती भी है…पर फिर भी उसके त्याग और समर्पण में जरा सी भी कमी नही है…! उसे उम्मीद है की एक दिन उसके शिव उसे अपने साथ ले जायेगें ,वहाँ जहां सिर्फ उन दोनों का निस्वार्थ प्रेम होगा…आज तक किसी ने उसे समझने की कोशिश ही नहीं की…पर उसे यकीन है कि उसके शिव उसे जरूर समझेगें….!
उसकी हर अनकही बात वो आँखों से ही समझ लेंगे….भीड़ में उसे कभी अकेला नहीं छोड़ेंगे जब-जब उसे ठोकर लगेगी उसके हाथ को और कस कर थाम लेंगे….! हाँ इसी उम्मीद पर चल रही हैं शिवा की सांसे…और आखिरी साँस तक वो अपनी उम्मीद बरकरा रखेगी..।
फिलहाल वो शिव को इस सब से अनजान रखना चाहती थी….नहीँ बताना चाहती कुछ भी….शिव के साथ में कुछ पल के लिए वो भूल जाना चाहती थी अपना हर दर्द, देख लेना चाहती थी वो अपने शिव को एकदम करीब से…खो जाना चाहती थी उनकी गहरी आँखों में…!
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लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा