माँ – मातृ दिवस, 11 मई मदर्स डे विशेष
“माँ” जितना छोटा है यह शब्द उतना ही बड़ा है इसका अर्थ, समेटे है अपने अंदर सारे ब्राह्मण को इस सारी सृष्टि को, सुनने में इसकी आवृति जितनी छोटी है , उतनी ही बड़ी है इसकी महत्ता इसकी सार्थकता। एक अद्भुत कृति है ईश्वर की, आनंद और ममता से परिपूर्ण, निश्छल भावों को हृदय में पिरो कर उसने सदा ही देना सीखा है। कितनी निस्वार्थ है माँ, कभी कुछ नहीँ माँगा उसने, हर दुख खुद पर सह जाती है, पर अपने बच्चों पर आँच नहीँ आने देती हैं।
कभी देखा है भरी धूप में उसे बच्चे को स्कूल से लाते हुए, सारा बोझ खुद उठाये आँचल में बच्चे को छुपाये वो तैयार है हर बला अपने सिर लेने के लिए। न जाने कितनी रातें जगी है वो हम बच्चों की नींद के लिए, न जाने कितने त्याग कितना समर्पण किया है उसने, मूरत है वो त्याग की ममता की, हाँ वो जीता जागता स्वरूप् है ईश्वर का।
सब कुछ सहन हो सकता है पर उस ईश्वर रूपी माँ के आँखों में आँसू नहीं..निवेदन है यह सभी से की ऐसा कुछ न कीजियेगा जिससे आपकी माँ को कष्ट हो उसकी आँखे नम हों, जिसने अपना सब कुछ एक मुस्कान के खातिर बलिदान कर दिया, उस माँ की मुस्कान की रक्षा का दायित्व हम बच्चों का भी है। मेरी कोशिश है की माताएँ खुश रहें, हमारे द्वारा कभी उनका दिल न दुखे न हमारी माँ का न किसी और की माँ का, क्योंकि माँ तो केवल माँ होती है चाहे किसी की भी हो…जिसे प्यार से पुकार लेगी वो ही उसका अपना हो जायेगा…वो तुलसी है जहाँ भी रहेगी पावनता ले आएगी, वो गंगा है जिसकी ममतामयी एक बूँद मोक्ष दिलवाएगी।।
माँ को समर्पित कुछ पंक्तियाँ-
मुझे सब कुछ दिया माँ नें
कमी होने नहीं देती।
रही भूखी, मुझे भूखा
कभी सोने नहीं देती ।।
ओढ़ा कर चीर ममता का
मुझे मेहफ़ूज़ रखती है ।
छिपा लेती है माँ खुद में,
मुझे खोने नहीं देती ।।
हुई जो नम कभी पलकें,
तो आँसू पोछ लेती है ।
भिगाती नैन है अपने,
मुझे रोने नहीं देती ।।
कभी जो डगमगाऊं मैं,
तो बढ़कर थाम लेती है ।
फसल मेरी तबाही के,
मुझे बोने नहीं देती ।।
कभी जब आँधियाँ गम की
मुझे झकझोर देतीं हैं ।
बोझ दिल पर ग़मों का
देर तक ढोने नहीं देती ।।
बला सारे मेरे सिर के,
वो खुद के सिर सम्हाले है ।
कोई जादू, कोई टोना
मुझे होने नहीं देती ।।
माँ आपने ही मुझे लिखा है आपके लिए लिख सकें कुछ इतना सामर्थ मेरी लेखिनी में कहाँ है…!
मातृ दिवस की अनेक शुभकामनाएँ सहित हर माँ को नमन।
लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा