मज़दूर गाथा: लॉक डाउन, पलायन और हक़ीक़त

देश की राजधानी दिल्ली का कुल क्षेत्रफल 573 वर्ग मील है अर्थात 1,484 स्क्वायर किलोमीटर। जिसमें से 302 वर्ग मील भाग ग्रामीण और 270 वर्ग मील भाग शहरी माना जाता है। आँकड़े को प्रतिशत में बदलें तो करीब 52.71% हिस्सा ग्रामीण और 47.12% हिस्सा शहरी नज़र आता है। ध्यान रहे, 47.12% के शहरी हिस्से में दिल्ली के पॉश इलाके भी शामिल हैं। आपको जानकर हैरानी होगी कि दिल्ली के अंदर कुल 6343 मलिन बस्तियां हैं जिनको अर्बन एवं रूरल स्लम्स के अंदर रखा जाता है।

ये है देश की राजधानी दिल्ली की ज़मीनी हक़ीक़त जिसमें 60% से ज्यादा का हिस्सा केवल ग्रामीण और मलिन बस्तियों का है। इन्हीं ग्रामीण एवं मलिन बस्तियों में 500,1000, 1500 व 2000 किलोमीटर दूर से निवास करने उत्तर प्रदेश एवं बिहार के लोग आते हैं। दिल्ली के निहायती पॉश इलाकों में यूपी, बिहार के लोग न के बराबर मिलेंगे किन्तु साधारण शहरी क्षेत्र, अर्बन स्लम्स, ग्रामीण इलाके, रूरल स्लम्स में 55-60% आबादी यूपी, बिहार के लोगों की है; बाकि 40-45% हरयाणा पंजाब राजस्थान सहित चंद रेफ्यूजी शरणार्थियों की है।

क्या है मज़दूरों की हक़ीक़त ?

भोला..
ए..भोला..
गांव के रघुनाथ ठाकुर ‘भोला मिस्त्री’ के द्वार पर खड़े होकर आवाज़ लगा रहे थे।
..भोला बाहर निकला तो ठाकुर साहब बोले, कलिहा सबेरे घरे आई जाते, ऊपर 2 कमरा बनाये का है। आके देखि लो, अउर बताओ की केतना बालू, सिरमिट, ईटा और छड़ लगिगा ! ..हम पहिले मंगा के रख लें। ..भोला, वादा करते हुए बोला…ठीक है ठाकुर साहब कल हम पक्का सबेरे 8 बजे तक आई जाबे।

उधर बच्चू पटेल, बनिहार को अपना खेत दिखाते हुए कहे कि…देखो ई कुल 12 बीघा है। धान रोपना भी तुम्हीं लोगन के है और जब धान उग के पक जाय तब काटना भी तुम्हीं लोगन के है। …अब आपन कुल मेहनत मजूरी सोच समझ के बताई दो, ताकि हम कल से काम लगावें। बनिहार…बोला ठीक है पटेल जी, कल बताउब आपके, आज तो खेत देख लिया हम।

रघुनाथ ठाकुर, भोला मिस्त्री के दरवाज़े से लौट ही रहे थे कि अचानक रास्ते में ‘मुन्ना सेठ‘ मिल गए।
चेहरे का भाव देखकर रघुनाथ जी ने मुन्ना सेठ से सवाल किया – बड़ा परेशान दिखाई दे रहे हैं मुन्ना बाबू। का कहें भईया, साला मजूरन के पईसा दो, दिन का भोजन दो फिर कम से कम दुई बार चाय पानी करवाओ…तबहुं ई मजूरा सब समय से काम नहीं करते।
अब का बताई, घर में हैंड पंप लगावे का है; जब हम गुड्डू प्लंबर को बोले तो उ ससुरा एक दिन आवा और घर में गड्ढ़ा खोद के गायब होई गवा। अउर त अउर 10,000 रूपिया भी दिए हैं वो भी लेके बईठा है। कह रहा है पहिले चौधरी जी के काम निपाट दें तब आयेंगे।

ऊपर जो लिखा है वो सब एक हक़ीक़त है। उत्तर प्रदेश, बिहार सरीखे राज्य में मज़दूर स्तर का काम है पर वहां पर रहने वाले मज़दूर मजाल है किसी का काम सही समय से पूरा कर दें। स्थिति तो ये है की अब लोग ही मज़दूरों से डरने लगे हैं; सबको ये डर होता है कि आज काम पर आया मज़दूर कल फिर दुबारा समय से काम पर आयेगा या नहीं ? ..ये रोज़ाना आयें और तय समय से कार्य समाप्त कर दें उसके लिए लोग इनको पूरी दिहाड़ी नहीं देते।

अब रघुनाथ ठाकुर को ही ले लीजिये, शम्भू मज़दूर के एक दिन की दिहाड़ी 400 रुपिया है, पर रघुनाथ उसको 200 रुपिया देके बोले…अरे बाकि कल लेना, आओगे न काम करने। ओ…भोला मिस्त्री, तुमको भी 400 रुपिया दे रहे हैं !! तुम भी थोड़ा काम खींचो, हम पईसा किसी का रोकेंगे नहीं।

मज़दूरों के संदर्भ में यूपी बिहार की स्थिति एक जैसी है। अब वो जुग व जमाना तो रहा नहीं जईसे ज़मींदारी प्रथा, बंधुआ मज़दूर प्रथा आदि। अब तो मज़दूर ही मालिक को बंधुआ बनाकर रख रहा है; अर्थात मालिक को भी मज़दूर के साथ दिन भर लगे रहना पड़ता है। उसके अतिरिक्त इनके पान, तंबाकू, बीड़ी और हो सके तो शाम को 1 पऊआ का भी इंतेज़ाम करना पड़ता है; इतने मान मनव्वल के बाद ये काम करते हैं।

दिल्ली से पुनः अपने घर यूपी बिहार की ओर प्रस्थान करते मज़दूरों को देखकर आँसू बहाने की जरूरत नहीं। बल्कि इनसे ये पूछना चाहिए का बे अपने गांव, शहर में रहकर पईसा कमाने में तुमको दिक्कत है क्या ? दिल्ली में दिहाड़ी 1000 रुपिया नहीं है ! यहां भी इनको दिहाड़ी 400 ही मिल रही है; लेकिन ये वर्ग अपने गांव में नहीं काम करना चाहता।

मैं उनकी आलोचना नहीं कर रहा हूँ जो दिल्ली बंबई राजस्थान गुजरात में आकर कोई टेक्निकल वर्क कर रहे हैं। जैसे; कल-कारखानों व छोटी बड़ी फैक्ट्रियों के अलावा प्रिंटिंग प्रेस, उद्योग में काम करने वाले मज़दूरों का आना स्वाभाविक है क्योंकि यूपी बिहार में टेक्निकल वर्क की उपलब्धता नहीं है।

किन्तु वे जो बोझा ढो रहे हैं, गारा माटी कर रहे हैं, ठेला खींच रहे हैं, खेतों में बनिहार हैं, राज मिस्त्री हैं, ईंट पत्थर व गिट्टियां तोड़ रहे हैं या फिर वेल्डिंग आदि का काम कर रहे हैं इनपे आप आंसू न बहायें तो ठीक; क्योंकि ये मात्र अपने गांव में रोब झाड़ने के लिए दिल्ली बंबई आ रहे हैं। ये गांव घर पर अपने बूढ़े माँ बाप के साथ रहना ही नहीं चाहते। 14 साल का लड़का है वो भी दिल्ली में, 18 साल का वो भी दिल्ली में और 25 से 35 साल वाला भी दिल्ली में और गांव पे केवल अपने बुढ़वा माँ बाप को छोड़ रखा है सब।

आज एक महामारी आयी तो ये गांव भाग रहे हैं ! क्यों…काहें, अब रुके न यहां पे !!
पूरे सड़क पे नौटंकी मचा रखे हैं कि हम ग़रीब हैं और भूखे हैं। रोज 400-500-600 रुपिया कमाते हो…कहां गया बे सारा पईसा तुम्हारा ?
यदि 2 हफ्ते का राशन रखने की औक़ात नहीं है तुम लोगों की तो दिल्ली बंबई में कर क्या रहे हो। ये सब दिल्ली बंबई में भी कुछ नहीं कर रहे; 14 साल से 35 साल वाले की जेब में आप हाँथ डालें तो आपको 1 बंडल बीड़ी, 10 पाउच गुटका, देसी खैनी, रेडीमेड खैनी मिल जायेगी और यदि कुछ दिहाड़ी बच गयी तो रात को 1 क्वाटर बोतल ख़रीद कर पियेगा और अपनी औरत को गरियायेगा।

इसके अलावा अपनी कमाई से लाल रंग का चाइना मोबाइल, पीले रंग का जूता, नीले रंग का चश्मा, एकदम टिम-टिमाता नकली हीरे का चैन, हरे रंग का शर्ट और काला पैंट चढ़ाकर गुड्डू रंगीला, खेसारी लाल, निरहुआ और कलुआ बना घूमता रहता है। न इनको अपनी पत्नी को सुरक्षा देने की फिकर है और ना ही अपने बच्चों को भविष्य…ये बस आजीवन खानदानी मज़दूर बनकर रहना चाहते हैं।

..आज कोरोना वायरस नाम की महामारी को देखकर इनको नानी का घर याद आ रहा है।
अबे तुम तो मज़दूर हो, आज लॉक डाउन खतम होगा तो कल से तुमको फिर काम मिल जायेगा; मगर उसका क्या जो यहां किसी प्राइवेट कंपनी में जॉब कर रहा है और 30 हज़ार, 40 हज़ार, 50 हज़ार या 1 लाख तक की तनख्वा पा रहा है ! उसका क्या होगा जो यहाँ फ्लैट का 25 हज़ार महीना लोन भर रहा है ? उसका क्या जो यहाँ महीना 15 हज़ार रुपये का किराया दे रहा है और उसका क्या जो अपने बच्चे की तिमाही 15 से 20 हज़ार फीस भर रहा है। …वो तो न भाग रहा है और न आँसू बहा रहा है; मगर वो किसी मज़दूर से कहीं ज्यादा चिंतित है। उसकी नौकरी रहेगी या जायेगी उसे नहीं पता…!

कईयों के तो ऐसे हाल मिलेंगे आपको कि दारू पीने के चक्कर में अपना खेत खलिहान तक बेच दिया है। जब सब कुछ उजाड़ दिया तो निकला है दिहाड़ी करने दिल्ली बंबई में। अतः इनपर दया न करें किन्तु इनकी पत्नी बच्चों पर ज़रूर तरस खायें।

लेकिन आप कितना भी तरस खा लें मज़दूरों की यह गाथा ऐसी ही बनी रहेगी।
लो..अब, बच्चू पटेल का धान रोपने भी कउनो बनिहार नहीं जा रहा ! कह रहा है की 12 बीघा धन रोपेंगे तो 1 बीघा का धान हमको भी चाहिए।

…ये हक़ीक़त है इनकी।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा