V से विज्ञान और वाइरस
क्रिया प्रतिक्रिया का नियम मेरे ख्याल में एक मात्र ऐसा विज्ञान का सिद्धान्त होगा जो कि एक दम कोरोना से मेल खाता है, केवल एक दो नहीं बल्कि कई मायनों में। अब देखिये क्रिया प्रतिक्रिया ही एक मात्र ऐसा कान्सेप्ट है जो हर एक वर्ग, हर एक जाति अनपढ़ गंवार गांव शहर; हर जगह लगभग हर किसी के मुंह से सुनने में आ जायेगा। ये मुझे एक मात्र ऐसा सिद्धान्त लगता है जिसने असल में विज्ञान विषय कि पहुंच बढ़ायी, उसी तरीके से देखो कोरोना ने भी बिना किसी भेद-भाव के अपनी पहुँच बढ़ाता जा रहा है।
जो इंसान वाइरस का ‘V‘ भी नहीं समझता होगा वो भी कभी-कभी रात में अचानक से उठकर हाथ धोकर सो जा रहा है। ये नियम यही तो कहता है कि कोई क्रिया का ना होना मतलब किसी प्रतिकि्रया का ना होना है। तो आज पूरा विष्व क्रियाविहीन घरों में बंद सो रहा है इसी उम्मीद में कि कोरोना कि प्रतिक्रिया ना हो। क्रिया प्रतिक्रिया का नियम मुझे संविधान के समानता के अधिकार का याद दिलाता है, सब पे बराबर का असर जस्ट लाइक कोरोना और अच्छा भी है अगर कोरोना ने प्रहार करने में घूस ले ली होती तो केवल गरीब मरते और हम आने वाले कल तक यही समझते रहते कि भुखमरी आ गयी थी 2020 में, कौन जानता है।
प्रकृति कोरोना के माध्यम से हमें कुछ तो इशारा कर रही है, ये बात सच है कि कोरोना ने कईयों की कुर्बानी ले ली लेकिन जैसे हर एक सिक्के के दो पहलू होते हैं मुझे लगता है अच्छा हुआ कोरोना ही आया जिसने बचने के लिए हमारे घर हैं या कुछ नहीं तो दूरी बनाने का हमारा एक विकल्प तो कम से कम है ही; नहीं तो कर्म तो हमने भी कहां अच्छे किये थे कोरोना से ना मरते तो क्या पता कुछ दिनों में हवा से मरने लगते और हवा मारने लगती तो जरा सोचो जो आज लाकडाउन में खिड़कियां खोल के प्याज की पकौडी का आनन्द ले रहे हैं या जो गेस्ट हाउसेस में क्वांरटीन किये गये हैं या जिनको मास्क लगाने में घुटन की पीड़ा होती है कैसा मन्जर होता जब सोफे पे आप बैठे होते और चारों तरफ से आपको मारने के लिए हवा बह रही होती मास्क उतरा और मन्जर बदला। तब सोचिये ऐसी स्थिति में आप हम क्या करते !
अगर थोड़ी सी सावधानी से कोरोना का जीवन परिचय पढ़ें तो आप को प्रकृति का सदेश महसूस हो सकता ..2019 में यूरोपियन यूनियन के 30 सबसे प्रदूषित शहरों में से 40 प्रतिशत से भी ज्यादा अकेले इटली से थे। कार्बन डेटिंग में अमेरिका की आतुरता जग जाहिर है, और क्योटो प्रोटोकाॅल का विरोध करने वालों में सबसे आगे अमेरिका ही अक्सर दिखाई पड़ता है। चीन ने किस प्रकार उत्पादन के अंधे प्रतिस्पर्धा में नेचर को जर्जर कर रखा था ये तो एक खुला रहस्य है।
सारे विकसित देष इटली स्पेन जर्मनी और अमेरिका, कनाडा और कई भी संसाधन संपन्न देश इस महामारी से निपटने में खुद की तैयारी कम पा रहे हैं। हमें इसपे विचार करने की जरूरत है कि केवल संसाधनों के पीछे भागने से ही जीवन नहीं है बल्कि जिंदा रहना और सांसो का अबाध चलना भी जरूरी है।
अभी भी वक्त है तुम चेत जाओ इस तरह के खिलवाड़ से बाज आओ।
लेखक:
मनु मिश्रा
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश