प्रतियोगी छात्र और लॉकडाउन
ये कोई ऐरू गैरू नथ्थू खैरू टाइप का शब्द बिल्कुल नहीं है, ये वन्स इन अ लाइफटाइम टाईप का टर्मिनोलॉजी है। ये एक ऐसा शब्द है जो आने वाले आपके नाती पोतों के सामने आपको हीरो बनाने के लिए तैयार एक पटकथा जैसी है। किसी ने कुछ जीवन में किया हो ना किया हो अगर कोरोना का ये दौर सर्वाइव कर जाता है तो यकिनन आने वाले पुष्तों के सामने ये एक आपके लिए अपनी बहादुरी ही होगी।
खैर, अब थोड़ा अभी के दौर में आते हैं, तब जब कि हमारे सामने प्रेजेंट काॅन्टीनीवस टेन्स के तौर पर ये बीत रही है। अब कोरोना के बारे में तो कुछ पता नहीं है कब खत्म होगा कब नहीं लेकिन लाॅकडाउन खत्म होने के इंतजार में लगभग सभी 90-95 परसेंट लोग हैं। कब दुनिया जहान अपने सुचारू रूप में जैसे वो थी वापस आये सबकी अपनी-अपनी हैरानीयां हैं परेशानिया हैं, चोर ससुर चोरी मिस कर रहे हैं, नेता अपनी नेतैती मिस कर रहे हैं और पंडित अपनी पंडिताई मिस कर रहा।
पंडिताई से याद आया हमारे मोहल्ले में रह रहे ‘नंघु‘ पंडित जी बेचारे का अच्छा खासा हिन्दुस्तान पेपर में राशिफल पढ़ के निकलते थे और 2 घंटे में 600 700 रूपये का जुगाड़ करके वापस आ जाते थे। बेचारे वो भी बहुत परेषान हैं अब इस लाॅकडाउन में ना तो कोई सत्यानारयण भगवान की कथा सुन रहा है और ना ही कोई अपनी बेटवा-बिटिया का बियाह रहा है और साला सारे राशिफल के जातकों का भविष्य भगवान के प्रकोप में समा गया है। तो अब ऐसे में चढ़ावे के पटरी पर जैसे-तैसे भाग रही नंघु पंडित जी के जीवन की रेल भी पंजीरी वाले खड़ंजे पे आ गयी है।
मतलब सब के लिए एक दम नया है ये, जो कुछ भी है लेकिन कुछ 5 परसेंट लोग हैं जिनके लिए ये लाॅकडाउन-वाॅकडाउन ना तो नया है ना ही कोई हैरान करने वाली चीज। अब ये लोग हर जगह नहीं पाये जाते ये कुछ स्थान विषेष के लोग हैं, जैसे – ये आपको दिल्ली के मुखर्जीनगर में मिल सकते हैं, ये आपको इलाहाबाद के कटरा बघाड़ा जैसी जगहों पे मिल सकते हैं और भी कई जगह ऐसे ही उन कुछ विशेष लोगों के हाॅटस्पाॅट आपकों देश के विभिन्न कोनों में मिल जायेंगे।
ये वो लोग हैं जो सालों से पूरी तरीके से या आंशिक तरिके से लाॅकडाउन में ही चल रहे हैं। ये अपना ऑक्यूपेशन प्रतियोगी छात्रों के रूप में लिखते हैं। बिना रोक-टोक अबाध रूप से बढ़ने वाली जनसंख्या के इस देश में इन जैसे 5 परसेंट लोगों के लिए सोशल डिस्टेंशिंग या पडोंसीयों से नजरे चुराना और लोगों से (मोहल्ले वालों से) 25 मीटर की दूरी बनाये रखना इनके लिए कोई नया नहीं है।
घर में रहना, बाहर न निकलना, ये हथियार इन जैसे लोग बहुत पहले से इस्तेमाल करते आ रहे हैं और बखूबी इसमें माहीर भी हैं। बस ऐसे ही लोगों को इस लाॅकडाउन से ना तो कोई शिकवा गिला है ना ही इसके खत्म होने का इंतेजार है। ये बेचारे पहले भी वहीं उसी सिलैबस में जुझते थे और आज भी, हां बल्कि ये दौर ऐसे 5 परसेंट लोगों के लिए कुछ राहत का दौर हो सकता है कि पहले घर में अकेले वो ही पड़े रहते थे, आज बैंगलोर काम करने वाला मौसी का लड़का भी और नोएडा से अक्सर हैषटैग इन द ऑफिस के टैग के साथ फोटो अपलोड करने वाल बुआ का लौंडा भी घर पे है और उसी तरह अपने कैरीयर को लेके तनाव में है जैसे वो पाण्डेय जी का लौंडा रहा करता था।
अब भैया ये लाॅकडउन हर किसी पे अपने-अपने तरीके से असर कर रहा है।
वो कहते हैं ना – ‘जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तन ऐसी’
खैर आप अपना ख्याल रखिए और मस्त रहिए ।।
लेखक:
मनु मिश्रा
प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
Chaa gaye mishra ji aap to bhai kamal ki baat kartein hai ye bhi Pratibha hai pata nai tha .great
Very Nicely Concluded 👍, excellent conjunction of language and humour ,Best regards,
भैया हम तो आपके प्रशंसक थे ही आपकी कलम के भी प्रशंसक हो गए 😁 जीवन की व्यथा “सजीव को निर्जीव बना दे, निर्जीव को सजीव।
विद्यार्थी इस धरती का ऐसा शक्तिशाली जीव।।”