लोकतंत्र, राजनीति में अहंकार का मतलब है – विनाश
सब कह रहे हैं बिहार में इस्तीफा नितीश कुमार नें दिया था, अरे चलो भाई आगे बढ़ो झूठ मत बोलो नितीश कुमार तो आज भी मुख्यमंत्री हैं। हाँ उप मुख्यमंत्री जरुर बदल गया है; पहले थे तेजस्वी यादव अब हैं सुशील मोदी, लेकिन हां जनाब आपकी बात भी सच है कि इस्तीफा नितीश बाबू नें ही दिया था। वक़्त की महिमा कहिये या कलयुग का खेल कि इस्तीफा देने वाले के पास आज भी कुर्सी है। बस बदल गये हैं , कुर्सी के पैर पहले ये कुर्सी राष्टीय जनता दल और कांग्रेस के दम पर टिकी हुयी थी मगर वर्तमान समय में इसे भारतीय जनता पार्टी सहारा दे रही है। लालू राजनीति के पुराने खिलाड़ी हैं लेकिन शायद वो ये भूल गये की ये भारत है और इसी भारत में जिस पार्टी नें 60 साल तक सत्ता की डोर अपने हाथ से जाने नहीं दी वो पार्टी आज विपक्ष के काबिल भी नहीं बची है। वजह है ??? क्या ? सिर्फ और सिर्फ “अहंकार” … कई डूबे हैं इस अहंकार की नदी में कब कौन डूबा निचे लिखी कविता सब बताएगी ….. बिहार से दिल्ली तक सब तो जरा ध्यान लगा के।
थोड़ा सा अहंकार चाहिए , विनाश के लिए
सवाल तो पूछे जायेंगे , विकास के लिए !
थोड़ा सा अहंकार चाहिए , विनाश के लिए
सवाल तो पूछे जायेंगे, विकास के लिए !!
आपके पुरखे सत्ता में थे तो , होंगे जनाब
अगर आपको भी आना है , तो तैयार हो जाएं कटाक्ष के लिए !
क्योंकि सवाल तो पूछे जायेंगे विकास के लिए !!
और मेरी इन बातों का सबूत न मांगिये
अहंकार को खोपड़ी से उतार खुटी पर टांगिये !
फिर मटके का शीतल जल आराम से पीते हुए , थोडा सा इतिहास में झांकिये !!
जो 60 साल तक सत्ता में थे,
वे आज विपक्ष का पद भी खो के बैठे हैं !
अहंकार की इसी नदी में पार्टी , सत्ता, साख भी डुबो बैठे हैं !!
नरेंद्र दामोदरदास मोदी वो नाम जिसने,
2014 में दिल्ली का तख्त हिलया था !
नहीं ज्यादा पर उनको भी थोडा अहंकार तो आया था !!
तभी तो 2015 में एक नेता हो कर, एक नेता को
‘नक्सल’ जाने का रास्ता सुझाया था !
उसके बाद आप हम सब जानते हैं की चुनाव परिणाम क्या आया था !!
70 में से 67 मिली दिल्ली वाले बाबु को
बस फिर क्या सरपट उनको भी अहंकार चढ़ गया !
और उसके बाद क्या पंजाब क्या गोवा, खुद के गढ़ दिल्ली में भी पूरा खेल बिगड़ गया !!
ऊपर लिखी कविता पढ़ के आपको ये अंदाज़ा तो हुआ होगा की लोकतंत्र में अहंकार की जगह नहीं है बिल्कुल; अगर आया तो सत्ता हाथ से गयी समझो। कांग्रेस को ये लगता था कि आज़ादी से अब तक हम चला रहे हैं देश, ठीक ही तो चल रहा है लेकिन एक बार ये सोचा होता की बहुमत कहां खो गया , क्यों खो गया , तो पता चलता की सत्ता सुख भोगने या खुद के विकास के लिए नहीं मिली; सत्ता तो देश को विकास के पथ पर तेज़ी से आगे ले जाने के लिए मिली है। ‘अहंकार’ सबके लिए ही बुरा है क्योंकि आप किसी भी क्षेत्र से आते हों या कोई भी काम करते हों आपको सबसे बना कर ही चलना पड़ेगा और जनाब आखिर में यही कि पहली बात तो कुछ गलत करो मत और करो तो जवाब दो बचो मत। कविता ठीक है चलिए ऑडियो जल्दी आयेगी पखेरू के फेसबुक पेज पर तब तक जुड़े रहिये ऐसे ही दिलचस्प किस्सों और खबरों के लिए .. विभू राय की कलम से।