15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ। शायद ये बात आपको पहले से पता न हो इसलिए बता दिया !! आज़ादी का जश्न तो शायद हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को नसीब न हुआ हो, पर हम प्रतिवर्ष आज़ादी का जश्न मनाकर एक डेढ़ किलो लड्डू तो डकार ही जाते हैं। भारत की आज़ादी का अगर
सन 1992, Montessori Junior High School जो की एक गैर सरकारी विद्यालय था; जिसमें कक्षा 1 से लेकर कक्षा 8वीं तक के बालक बालिकाएं अध्ययन किया करते थे। यह विद्यालय गैर सरकारी होते हुए भी सरकारी विद्यालयों की तरह ही जान पड़ता था, जहाँ दौर के हिसाब से व्यवस्था अत्यंत ही साधारण थी। परन्तु
टूटते बिखरते पारिवारिक रिश्ते ! आखिर क्यों ? भारतीय समाज में संयुक्त परिवार की प्रथा रही है फिर आखिर ऐसा क्या हो गया की एक संयुक्त परिवार विखंडित होने लगा और आज के आधुनिक परिवेश में तो सब कुछ बिखर चुका है। क्या परिवार का विखंडित होकर रहना सच में एक दोष है ?
दिनभर की थकी-हारी बेचारी कान्ता, ज्यों ही शाम खाट पर लेटी आँख लग गयी कितना शांत होता है गांव का वातावरण, और रात तो बिल्कुल खामोश सी जान पड़ती है। कहीं कुछ हलचल थी भी, तो सिर्फ हवाओं में जो पेड़ों पर झूलते पत्तों से टकराकर शोर उत्पन्न कर रहे थे। हाथों के कंगन,
सफलता कोई रहस्य नहीं जीवन यात्रा का एक पड़ाव मात्र है, सफलता अत्यधिक परिश्रम मंगली है। आप सफल नहीं हुए अर्थात पर्याप्त मात्रा में परिश्रम नहीं किया गया। सफलता का एक रहस्य और है वह यह है कि जीवन के कुछ पहलुओं का सही और सुनिश्चित उपाय। आपका ‘आज’, ईश्वर की ओर से आपको
ज़िंदगी की बढ़ती आपा-धापी, पारिवारिक विखंडन, अपनों से लगातार बढ़ती दूरी और पैसा कमाने की लालसा आज हमें अकेलेपन के दल दल में धकेल चुकी है। परिवार का हर सदस्य एकांत में जी रहा है, अगर खुशियां हैं भी तो केवल कृतिम रूप में हैं जो ज्यादा वक़्त तक हमारा साथ नहीं दे पातीं।
का चौबे जी, ई रोज रोज बाल काहे रंगवाते हैं ? गांव का मुंशी मज़ाकिया लहजे से बोला। चुपकर….बार बार बाल काहे रंगवाते हैं ! अबे तेरा क्या जाता है, सजना संवारना मर्दों को भी भाता है; ग्राम प्रधान चौबे जी नें भी मज़ाकिया लहजे से उत्तर दे मारा मुंशी के मुँह पर। मुंशी
मिर्गी जिसे डॉक्टरी भाषा में Epilepsy कहते हैं मुख्यतः यह एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर है “Epilepsy is a group of neurological disorders”. हम सभी जानते हैं की मनुष्य की बॉडी का पूरा कंट्रोल दिमाग से होता है जिसमें कई प्रकार की नसें होती हैं। मिर्गी की बीमारी को मेन्टल डिसऑर्डर के समान लिया जाता है
हम आधुनिकता के दौर में कितने भी आगे क्यों न चले जाएं अतीत हमेशा ही हमें अपनी ओर खींचने का प्रयास करता है। असल में अतीत वह अंकुर होता है जहाँ हम पनपते हैं और एक वृक्ष के समान बड़े हो जाते हैं, अतीत का वह अंकुर हमारी जड़ें हैं जो अगर ना होती
पॉँच पॉँच भैंसें होने के बावजूद भी मुकुंद तिवारी का मन अब एक गाय लेने का भी हो रहा था। द्वार पर आवाज़ लगाते हुए अपने सेवक ब्रिज बहादुर को बोले, जा जरा अवध मिश्रा को बुला ला तो। उनसे कहना की आज से पशु मेला शुरू है, मैं सोच रहा हूँ की एक