बचपना कुछ ऐसा होता है कि हम बूढ़े होकर भी उसे भुला नहीं पाते। हम सभी का बचपन तमाम किस्से व् कहानियों से भरा होता है जिसे हम जीवन के हर मोड़ पर याद किया करते हैं। बेशक बढ़ती उम्र हमारे बचपने को ढकती चली जाती है पर फिर भी कहीं न कहीं दिल
वही रोज के ताने, कहाँ है री….आँगन में बैठी सास जोर से आवाज़ लगा रही थी। विमला अपने कमरे से बाहर निकलकर बोली बच्चे को सुला रही थी माँ जी, कहिये क्या काम है। सास नें आँखें दिखाते हुए कहा – अरे काम पूछती है तुझे दिखाई नहीं देता की घर में कितना काम
माधव की शादी को पूरे तीन बरस हो चुके थे, पर गुजरे तीन बरसों में माधव नें बहुत दुःख देखे व् सहे जिसमें से सबसे दुःखदायी पल रहा पत्नी अवंतिका की आकस्मिक मृत्यु। माधव अपनी पत्नी अवंतिका से बेहद प्रेम करता था; दोनों पति पत्नी को देख यही लगता था की यह जोड़ा सच
हमारा जीवन सच में कितना गहरा है , क्या हम खुद को भली भाँति जानते हैं। जीवन में ऐसे कई मोड़ आते हैं जहाँ मनुष्य कुछ पल के लिए स्वयं में ही विलीन हो जाता है। ऐसी अवस्था में जाकर हम स्वयं से ही प्रश्न पूछ बैठते हैं कि आखिर कौन हैं हम। नीचे
भारत में राजनीति का इतिहास बहुत ही गहरा है जिसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। मुख्यतः लोगों को सिर्फ इतना ही पता है कि हिंदुस्तान में राजनीति केवल BJP और Congress कि व्यक्तिगत लड़ाई है और यह इन्हीं दो पार्टियों तक ही सिमित है। भारत वो देश है जहाँ के हालात
जहाँ सबकुछ पैसा ही है। कितनी सच्ची लगती है ये बात; मौजूदा दौर पैसों का है तभी तो कहा जाता है – न बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपईया। निचे लिखी कविता समाज के असल चेहरे को चरित्रार्थ करती है। पैसे का बढ़ता बोलबाला व्यक्तिगत संबंधों में दरार पैदा करता जा रहा।
क्या पहला प्यार भुलाया जा सकता है ? शायद नहीं। इश्क़ एक ऐसा मर्ज़ है जिसमें जिया भी नहीं जा सकता और मरा भी नहीं जा सकता। सच तो यह भी है कि कामयाब मोहब्बत की कोई कहानी नहीं बनती; कहानी तो बनती है नाकामयाब मोहब्बत की। इतिहास में दर्ज़ ऐसी तमाम इश्क़े दास्ताँ
देश में बढ़ता पूंजीवाद आज हमें इसकदर मजबूर कर चुका है कि हम घर, गाँव अथवा अपने समाज से लगातार दूऱ होते जा रहे हैं। पैसा जीवन का अभिन्न अंग बन गया है जिसको पाने की होड़ सबमें है। माता-पिता की बढ़ती व्यस्थता और बड़े बुजुर्गों से दूर होते बच्चे एक तरह के मानसिक
सुबह के 6 बज चुके थे, समय हो चला था दुकान खोलने का। सुखीराम नें अपने किराने की दुकान का शटर खोला; शटर की आवाज़ से वहां आस पास के लोग यह जान जाते थे कि सुखीराम की दुकान खुल गयी है। अभी तड़के दुकान खोली ही थी कि एक लड़के नें सुखीराम को
देश का सर्वोच्च न्यायालय यानी “सुप्रीमकोर्ट” जिसकी पहचान किसी से छिपी नहीं है। सुप्रीमकोर्ट वो जगह है जहाँ कोई फरियादी अपनी अंतिम आस लेकर पहुँचता है। यह कहना गलत नहीं होगा की देश के सर्वोच्च न्यायालय नें हर सच्चे फरियादी को न्याय दिया है, ऐसा बहुत कम ही देखने को मिला है कि सुप्रीमकोर्ट