जीवन दर्शन: आनंद एक खोज

20 मार्च से पूर्व हमारे पास वक़्त की बेहद कमी थी।
फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि सरकार ने घोषणा करते हुए 20 से 25 दिनों तक का लंबा वक़्त हमें दे दिया। वहज जानी पहचानी है जिसका नाम है ‘कोरोना’, एक चाइनीज महामारी।

इस लंबे वक़्त को पाकर क्या आप उत्साहित हैं ?
क्या आप आनंद का अनुभव कर रहे हैं ?
अपने घर पर, पैसे रुपये, परिवार और साजो सामान के साथ रहना क्या आपको अच्छा लग रहा है !
अगर इतने पर भी आप…आनंदित नहीं हैं, तो…क्यों ?

काश मेरे पास ‘वक़्त’ होता। अक्सर ऐसा हम कहते थे..
ज़िन्दगी में यह शिकायत भी रहती थी कि कुछ समय मिल जाता तो परिवार के साथ मस्ती करते।

इन दिनों सभी के पास समय है..पर अब वो कह रहे हैं बाहर जाने की आज़ादी नहीं तो ऐसे समय के होने का क्या फायदा।
पर…इससे पहले तो आप रोज बाहर निकल ही रहे थे…तब घर में रहने को व्याकुल क्यों थे !
हक़ीक़त ये है कि इंसान एक ऐसा जीव है जो किसी भी परिस्थिति में ‘आनंद’ का अनुभव नहीं करता।

तो भला आनंद है क्या ? ..आखिर आनंदित रहने के लिए हमें क्या चाहिए ! शायद इस प्रश्न का जवाब कोई दिव्यात्मा दे सके…मेरे पास तो है नहीं, क्या आपके पास है ?

सुबह देखा तो ‘छत‘ पर कुछ चिड़िया इधर से उधर चहलकदमी कर रही थी।
एक चिड़िया अचानक मेरे छत से उड़कर पड़ोसी के छत पर जा बैठी। फिर वहां से कुछ दूर स्थित एक पेड़ पर, फिर तुरंत ही ऊपर आकाश में तैरने लगी।
जब गर्दन उठाकर देखा तो वह चिड़िया अनंत गगन में ज़मीन से कई किलोमीटर ऊपर लहलहाते पवन के झोंकों के साथ मस्तियां कर रही थी। कुछ देर गुजरा वो चिड़िया पुनः नीचे आने लगी, पलक झपकते ही वो मेरे छत पर यथा स्थान बैठी गयी।

इससे पहले कि वो फिर उड़े मैंने उससे पूछ ही लिया…
ए चिड़िया, तुम इतनी आनंदित क्यों हो ?
..और भला तुम इतनी आनंदित हो भी कैसे सकती हो ?
तुम्हारे जीवन में इस गहरे आनंद का कारण क्या है..?

शायद चिड़िया को मेरे द्वारा किये प्रश्न अच्छे नहीं लगे
अतः उसने उत्तर देते हुए अपनी नाराज़गी व्यक्त की और कहा – हे ‘वस्तु भोगी’ इंसान, क्या मेरा आनंद तुमसे देखा नहीं जाता।
हां, मैं आनंदित हूँ ! …सच में, मैं बहुत आनंदित हूँ।
इससे पहले कि तुम मेरा आनंद पुनः हर लो, मैं प्रकृति की शुद्धता व सुंदरता को हमेशा के लिए प्राप्त कर लेना चाहती हूँ।

चिड़िया ने जो उत्तर दिया वो मेरे मन में क्रोध और शंका दोनों ही उत्पन्न कर रहा था।
मैंने क्रोधवश उससे ये पूछा – सुनो, तुमने मुझे ‘वस्तु भोगी’ इंसान क्यों कहा ! ..और भला मैं तुम्हारे आनंद का हरण क्यों करूँगा ?

चिड़िया बोली – हे मानव, तुम्हारी वस्तुओं ने ही तो मेरे आनंद का हरण किया है।
आसमां में उड़ते जहाज पर तुम ही तो बैठे हो..
ज़मीं पर चलते भागते दौड़ते नाना प्रकार के वाहन तुम्हारे ही तो हैं..
नदियों में तैरते तमाम गंदे पदार्थ तुमने ही तो फेंकें हैं..
तुमने ही वायु में दुर्गन्ध फैलाया है..और तुमने ही तो इन फ़ज़ाओं में ज़हर घोला है।
अब बताओ, मैं तुम्हें वस्तु भोगी ना कहूं तो क्या कहूं…?

बिना रुके चिड़िया आगे कहती है –
आज मेरे जिस आनंद को देखकर तुम कुंठित हो रहे हो..
तनिक ये बताओ, क्या मुझे कुंठा नहीं होती होगी जब तुम मेरी हर आवश्यकताओं को प्रदूषित करते होगे।
वस्तु भोगी मानव, मेरे न जाने कितने ‘वंश’ व प्रजाति तुम्हारी वजह से नष्ट हो गए। ..क्या इस धरा पर मेरा कोई अधिकार है ही नहीं !

जिन वस्तुओं का निर्माण तुमने आनंद प्राप्ति के लिए किया था वह तो तुम्हारे पास है ही।
अतः जाओ मेरे आनंद पर नज़र मत लगाओ, जाओ खेलो अपनी मशीनों से और खोज लो उसमे मेरे जैसा परम आनंद।
..किन्तु मैं कह देती हूँ; मेरे जैसा आनंद प्राप्त कर लेना ‘मानव’ तुम्हारे वश में है ही नहीं।

इतना बोलने के बाद भी, चिड़िया ने मुझसे आज्ञा लेते हुए कहा –
हे मानव, ..क्या मैं एक बात कहूं !
मैंने कहा, कहो – जीवन में पहली बार तुमसे बात करने का अवसर प्राप्त हुआ; अतः आज्ञा न लो। प्यारी चिड़िया कहो – क्या कहना चाहती हो ?

चिड़िया ने मुझपर तंज कस्ते हुए कहा –
मानव तुम्हारे पास इतना कुछ है।
अनगिनत अद्भुत भोग-विलास की वस्तुयें हैं, मगर फिर भी तुम्हें पीड़ा है, रोग है, विकार है एवं कष्ट है।
..हे मानव, तुम लाख सुविधाओं के होते हुए भी ‘आनंद’ से अनंत दूरी पर खड़े हो।

चिड़िया रुकी नहीं उसने प्रश्न करने के साथ अपना ज्ञान भी दिया – बोली, तुम मानवों के पास सबकुछ है फिर प्रेम क्यों नहीं ?
हवा में उड़ते हम रोज तुम्हारे झगड़े देखते हैं …कुछ तो देखो, एक साथ रहना, उड़ना और चुगना; हमसे ही सीखो।

चिड़िया अपनी बातों से मुझे छोटा साबित करने में लगी थी।
मैंने उसे डाँटते हुए कहा – बंद करो अपना ज्ञान; मुझे है मानव होने का मान।
आखिर क्या है तुम्हारे पास ?..देखो मेरा ये आलीशान मकान, मेरे तन पर ये सुन्दर रंगीन कपड़े।
हम इंसानों के सुन्दर हँसते चेहरे और हमारी समृद्धि व ताक़त।

चिड़िया ने ताना मारते हुए कहा –
हुंह्ह, ..देख लिया तुम्हारा आलीशान मकान।
तुम्हारे पास तो 1 है किन्तु मेरे तो शहर में कई मकान हैं और मैं तो सात समंदर पार भी कई मकानों में रहती हूँ।
क्या तुम एक कपड़े कई सालों तक पहन सकते हो ?

चिड़िया ने अपने पंखों को फैलाते हुए बड़ी अदा से दिखाया और कहा – देखो कैसे हैं मेरे कपड़े !
मैं जन्म से लेकर मृत्यु तक इसी एक कपड़े में रहूंगी ! ये रंगीन पंख ही मेरे तन के कपड़े हैं जो न कभी मैले होते हैं और ना ही इनका रंग उतरता है।

..और क्या मैं तुम्हें सुन्दर नहीं लगती ?
यह सवाल चिड़िया ने बड़ी मोहब्बत से पूछा, फिर आगे बोली –
मेरी सुनहरी आंखें, मेरे गुलाबी चोंच, रंगीन पंख, गले धारियां, मेरी वाणी, मेरा रूप..क्या तुम्हें नहीं लुभाता !! तुम इंसान क्या हमसे भी ज्यादा सुन्दर हो सकते हो ?

हे…मानव,
मेरे चेहरे पर कभी झुर्रियाँ नहीं आ सकती, मैं कभी बूढ़ी नहीं हो सकती, मेरा ‘यौवन’ ढल नहीं सकता।
मेरी सुंदरता तो बेहद प्राकृतिक है जिसपर न तो उम्र का कोई असर होगा और ना ही प्रकृति के बदलावों का।

चिड़िया ने मुझे ललकारते हुए प्रश्न किया – कैसी समृद्धि और कैसी ताक़त है तुम्हारे पास ?

इतना बोलते ही झट से वो ऊपर हवा में पंख फड़फड़ाने लगी और बोली – बेशक मैं ज़मीन पर तुमसे छोटी हूँ किन्तु हवा में ऊपर उठने की ताक़त केवल मुझमे है।

मेरी समृद्धि तुमसे कहीं ज्यादा है मानव, क्योंकि प्रकृति ने मुझे वरदान दिया है..मुझे हर रोग, पीड़ा, दुःख, ग़रीबी व आपदा से मुक्त किया है। तुम्हारी समृद्धि तो बनावटी है..जो कभी भी क्षीण हो सकती है।

यहाँ तक सुनते-सुनते मैं चिड़िया से परास्त हो चुका था।
मेरे पास अब कोई तर्क नहीं बचा था..

मैंने चिड़िया को धमकाते हुए कहा – मैं तुम्हें आसमान में उड़ते हुए मार सकता हूँ। मैं तुम्हें जाल में फंसा सकता हूँ और तुम्हें पिंजरे में कैद कर सकता हूँ।

मूर्ख चिड़िया – मैं एक पल में तुम्हारी जीवन लीला समाप्त कर सकता हूँ।
मारने की बात सुन चिड़िया चुप हो गयी..और मेरी तरफ से मुँह फेरते हुए उसने आखरी शब्द कहे।
…हूँह्ह, मानव कहीं के, तुम और कर भी क्या सकते हो..केवल ज़ुल्म अत्याचार के सिवाय।

ऐसा कहकर, मुझे ताना देते हुए चिड़िया नीले आकाश में उड़ गयी…बहुत दूर, अनंत गगन में…बादलों के पार, मेरी दृष्टि से ओझल..

जानें क्यों मैं अपने आपको बहुत छोटा महसूस कर रहा था उस नन्हीं चिड़िया के समक्ष।
..ठीक ही तो कहा उसने मुझे ‘वस्तु भोगी‘ इंसान
सिवाय वस्तु के और मेरे पास है ही क्या..

मनुष्य के लिए ‘आनंद‘ सदैव एक खोज बनकर ही रहा है..
जाने इस खोज का अंत कब होगा !

पर इतना तो चिड़िया ने समझा दिया आनंद ‘वस्तु भोगी‘ जीवन से परे है..।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा

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  1. Pushpendra Singh