डॉ भीमराव अम्बेडकर का 1948 में देखा गया सपना अब पूरा हुआ
तीन तलाक पर जैसे ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया पुरे देश में बातें होने लगी कोई इसके समर्थन में खड़ा नज़र आ रहा है तो कई लोग आज भी विरोध कर रहे हैं और कह रहे हैं कि ये गलत है। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को कहा है कि अगले 6 माह में इस पर कानून बनाया जाये लेकिन क्या आप जानतें हैं जो काम आज मोदी सरकार कर रही है उसका सपना बाबा साहब (भीमराव अम्बेडकर) नें बहुत पहले देखा था। आईए जानते हैं कि क्यों 1948 में रह गया था संविधान निर्माता का सपना अधूरा।
देश आजाद होने के एक साल बाद यानी 1948 में भारत के पहले कानून मंत्री डॉ भीमराव अम्बेडकर ने जब हिन्दू विवाह अधिनियम का मसौदा बनाना शुरू किया तब उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरु से समान नागरिक संहिता पर विचार किया सरल शब्दों में कहा जाए तो अम्बेडकर जी ये चाहते थे कि हिन्दू विवाह अधिनियम के साथ ही मुस्लिम विवाह अधिनियम भी बने; जिसपर उस दौरान संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों नें विरोध किया। जवाहर लाल नेहरु का मन था कि समान नागरिक संहिता लागू हो लेकिन मुस्लिम सदस्यों के विरोध की वजह से ये विचार मन में ही रह गया।
1952 में जब नेहरु नें दोबारा भारत की कमान संभाली तब उन्होंने हिन्दू विवाह अधिनियम तो लागू कर दिया लेकिन उस वक़्त भी समान नागरिक संहिता सपना ही रह गयी; इस पर कोई विचार विमर्श नहीं किया गया। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने इसका पूरे भारत में विरोध किया इस विरोध का नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी नें किया। नेहरु सरकार पर स्वयंसेवक संघ ने लगातार कई हमले किये जिसमें कहा गया कि नेहरु सरकार अल्पसंख्यकों की वजह से समान नागरिक संहिता अधिनियम नहीं बना रही है। जिसपर सुचेता कृपलानी नें कहा कि अल्पसंख्यक अभी इसके लिए तैयार नहीं हैं आगे बहुत जल्द सरकार इस पर विचार करेगी। आपको ये बताते चलें की सुचेता कृपलानी स्वतंत्रता सेनानी थीं जो 1963 में पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं इन्होनें 1963 से 1967 तक उत्तरप्रदेश मे कांग्रेस की सरकार चलाई। वामपंथी विचारधारा के नेता वी.सी. दास और उनके सहयोगी भी चाहते थे कि समान नागरिक संहिता अधिनियम लागू हो। उसके बाद का इतिहास आप देखिये एक या दो सरकार जिसमें इमरजेंसी के बाद जनता दल और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार जो गठबंधन से बनी को छोड़कर केंद्र में लगभग हर सरकार कांग्रेस की बनी या तो उसके समर्थन से बनी। पहली नज़र में गठबंधन और कांग्रेस ही हैं जिन्होनें डॉ भीमराव अम्बेडकर के सपने को अधूरा रखा वह भी केवल अपने राजनितिक लाभ के लिए।
धर्मनिरपेक्षता, समानता, एकता की बात करने वाली यह पार्टियां ही भारत में फैले धर्मवाद और जातिवाद का कारक हैं। मुख में राम बगल में छूरी वाली कहावत इनपे सिद्ध होती है क्योंकि भारत एक ऐसा देश है जहाँ भिन्न धर्म व् जातियां हैं ऐसे में प्रथम स्तर पर देश का नेतृत्व करने वाली यह पार्टियां जिन्होनें भारतीय समाज में केवल एक ख़ास समुदाय (धर्म) के ऊपर अपनी नीतियां लागू कीं वहीं एक ओर किसी को अपनी मनमानी करने का अधिकार दे दिया। “एक देश एक कानून” का खाका उस वक़्त नहीं बनाना चाहिए था? दरअसल उनकी पृथक्करण यह नीति एक सोची समझी चाल थी।