बिहार बोर्ड का दोस्त

दोस्त वो हैं जो हमको गलती करने से रोकें और अगर जाने-अनजाने कोई गलती हो भी जाए तो उसमें सुधार कैसे करे ये हमें समझाएं , लेकिन फेसबुक के इस दौर मे ऐसे दोस्त बहुत ही कम पाए जाते हैं और जो बचे हैं वो भी विलुप्त हो रहे हैं अहिस्ता – अहिस्ता।

आजकल जो दोस्त पाए जाते हैं वो आपकी गलती पर बस आपकी खिॅचाई करते हैं और फिर गायब हो जाते हैं इस इंतजार मे कि कब आप अगली गलती करें और कब वो फिर से ठहाके लगा कर हँस सकें।

मीडिया बिहार बोर्ड का दोस्त है या दुश्मन

बिहार बोर्ड को भी एक ऐसा दोस्त मिला है जिसने पिछले साल 2016 में उसकी गलती पर उसकी खूब खिॅचाई की और गायब हो गया ऐसे जैसे किसी गंजे के सिर से बाल, अब आप ये सोच रहे होंगे की ये दोस्त आखिर है कौन ? तो भाईयों-बहनों और वो आपके प्रधान सेवक जी जो कहते है मित्रों वो दोस्त है “मीडिया” जिसनें बीते साल ‘रूबी राय’ को जेल कि हवा खिॅलवायी, जो कि जरुरी थी उसके लिए इनको कोटि-कोटि नमन।

रूबी राय को जेल हुई और जो लोग साथ थे वो भी पकडे गये और जेल मे बंद हुए, लेकिन इन सब लोगों के साथ वो कैमरा भी किसी तहखाने मे बंद हो गया जिसने इस घटना को उजगार किया था। पत्रकार महोदय भी कहीं खो गये फेसबुक वाले दोस्तों की तरह खिॅचाई करके, खिॅचाई नही समझे अरे भाई ट्रोल किया और गायब।

इस साल फिर रिजल्ट आया तो कैमरा और पत्रकार साहब दोनों आ गये और फिर वही कर रहे हैं यानी की सच दिखा रहे हैं हम लोगों को बिहार बोर्ड का। लेकिन 2016 से 2017 के बीच जो समय गुजरा क्या उस समय मे लोकतंत्र का स्तंभ कहे जाने वाले मीडिया नें एक भी दिन बिहार मे गुजरा ये जानने के लिए कि बच्चे स्कूल आ भी रहे हैं या नहीं और जिन मास्टर साहब की जिम्मेदारी है कि वो बच्चों को पढायें वो क्या कर रहे हैं। अगर ये सब बातें वक़्त रहते उठीं होती तो ये दोहराव टल सकता था; ज़रूरत थी तो निरंतर सवालों की, डेली नहीं हफ्ते में भी नहीं बस एक महीने मे एक बार ये देख लेते की बच्चे कितने हैं जो डेली स्कूल आ रहे हैं और कितने नहीं। मास्टर साहब कैसे हाज़री लगा रहे हैं और किस आधार पर बच्चों को पेपर में बैठने की अनुमति स्कूल दे रहा है।

मीडिया ये कहके पीछे हट सकता है की इसके लिए हम जिम्मेदार नहीं क्योंकि पेपर तो बिहार बोर्ड करवाता है। हम बस रिजल्ट की राह तकते हैं और फिर दिखाते हैं सच लेकिन हमको ये याद रखना होगा कि बिहार भारत से अलग नहीं है और अगर बिहार में नक़ल का कारोबार चल रहा है तो भारत की शिक्षा प्रणाली पर हम गर्व नहीं कर सकते क्योंकि बिहार भी भारत का एक अभिन्न अंग है।

बिहार के साथ अन्य कई राज्यों में भी इस तरह कि घटनायें हो रहीं हैं जिस तरह भारतीय मीडिया नें बिहार में हो रहे नक़ल के कारोबार कर पर्दाफाश किया उसी प्रकार देश के सभी राज्यों में जाकर शिक्षा व्यवसाय और नकलखोरी को सामने लाये तभी मीडिया पूर्णतः पारदर्शी कहलायेगा। जिसतरह मीडिया केवल बिहार बोर्ड से अपनी दोस्ती निभा रहा है काश कि यही दोस्ती वह देश के सभी राज्यों से निभाता पर क्या मीडिया की अन्य राज्यों से दुश्मनी है या फिर कुछ बंदिशें ? मैं विभू राय केवल अपनी अभिव्यक्ति को रख सकता हूँ इससे ज्यादा कुछ नहीं।