कोरोना, मजदूर और सरकार – विचार विशेष

मैं जिंदा हूं ये मुष्तहर कीजिए, मिरे कातिलों को खबर कीजिए,
ज़मीं सख्त है आसमाँ दूर है, बसर हो सके तो बसर कीजिए ।।

जी हां,
आज के हालात देख के तो सुधीर लुधियानवी जी कि ये लाइनें ही याद आती हैं। सही ही है आज इस भसड़ में अगर बसर हो सके तो बसर करो और भगवान अल्लाह या जो कोई भी आपका खैर ख्वाह हो उसी का भरोसा करो।

जैसे-जैसे समय और कोरोना संक्रमितों में इजाफा हो रहा है, सरकार के प्रायिकताओं में इसकी रोकथाम के साथ-साथ लीपापोती भी दिख रही है। ऐसा नहीं कि मैं सरकार का विरोध कर रहा हूं, कोई नहीं चाहता कि उनके लोग मरें लेकिन मुझे शिकायत अब मालिक के रवैये से होने लगी है। अब कुछ तो कोरोना ठीक भी हो रहा है या नहीं ये पता नहीं लेकिन घुमावदार आंकड़ों से मुझे बड़ी दिक्कत है।

सुना है 8 मई से हॉस्पिटल के डिस्चार्ज पाॅलिसी में कुछ चेंज किया गया है अब 10 दिन तक संक्रमण ना दिखने वाले मरीजों को बिना टेस्ट के हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया जा सकता है। आंकड़े अच्छे आएं इसलिए ऐसा किया गया लगता है। मृत्यु दर कम से कम दिखे इसके लिए कुछ सरकारों ने मरीज जो हॉस्पिटल में आने से पहले नरक सिधार गये हों उनका टेस्ट जरूरी ना करने का नियम निकाल करके कहीं ना कहीं मुत्यु दर को कम दिखाने कि कोशीश की है।

अब ऐसा क्यों किया गया ये तो सरकार से पूछेंगे, तो जनाब वो झूठ भी इतने सलीके से बोलेंगे कि एैतबार ना किया जाये तो किया क्या जाये। लेकिन मैं ये समझ नहीं पा रहा हूं जब इतनी बड़ी त्रासदी है तो अपनी पीठ थपथपाने कि लिए कुछ भी कोई कैसे कर सकता है।

अब गरीबों को राहत देने के लिए सरकार तरह-तरह से टीवी पे आके चीख रही है। फलाना फ्री कर देंगे, ढिकाना फ्री कर देंगे आप चिंता मत किजीये मित्रों आप सुरक्षित रहिये वोट दीजिये अगले इलेक्षन तक हम आपकी आत्मा को ही शरीर से फ्री कर देंगे और इन सब के बीच टीबी से नजर हटी और फोन पे बिजली के बिल का, लोन के ब्याज का, और हर एक तरीके से आपसे आपकी जिम्मेदारियों का मखौल उड़ाते हुए एक मैसेज मुस्कुराता आपके माथे से पसीना निकालता इनबॉक्स में पड़ा रहेगा। ये कैसा उपचार है! कि दवा की सुई दिखा के ही इलाज कर देते हो। देते तो हो ही नहीं और अगर मांगो तो तमाम मजबूरियों की पोटली खोल देते हो।

जहर को जहर काटता है सुना था आज इस थ्योरी पे काम करते हमारी सरकार को देख के भरोसा हो गया कि पूर्वजों ने बहुत सही बोला है और शायद इसीलिए ही मालिक ने लॉकडाउन में सबसे पहले दारू की दुकानें खोल दीं, अब दारू ही कैसे किसी का हल हो सकता है मेरी समझ से परे है।

मेरे कई मित्र बैंक में हैं वो बता रहे थे कि उन्हें और उनके जैसे कर्मचारियों को इस लाॅकाडाउन में किसानो से लोन का पैसा जमा कराने के लिए कैसे कहा जाए इसके लिए प्रशिक्षण का पैसा नहीं है; संस्था के पास नहीं तो वो भी करा दिया गया होता। आलम यहां तक है कि लोन की वसूली के लिए घर-घर तक भेजने के लिए मजबूर किया जा रहा है। ऐसे में क्या घंटा गरीब को राहत मिलेगी बल्कि घर-घर जाने से वो कर्मचारी भी कोरोना से कितना सुरक्षित है इस पे तो बात ही मत कीजिये। मजबूरियां हैं इसके पीछे भी, संस्था कि भी और सरकारों कि भी लेकिन कुछ तो सिस्टम हो।

अब क्यों लेबर क्वारंटीन से भाग रहा है ? क्यों कानपुर के स्टेशन पे खानो के पैकेट फेंकते हुए लोगों के विडियो वाइरल हो रहे हैं ? क्यों नहीं इस तपती धूप में आइसोलेषन सेंटर के पंखे चल रहे हैं ? शौचालय का मुद्दा लाल किला से उठाने वाली ये सरकार आखिर क्यूं क्वारांटिन सेंटरों के शौचालय साफ तक नहीं करवा पा रही है ?

आखिर क्यूं मजदूरों के साथ पशुवत व्यवहार किया जा रहा है ? आखीर क्यों दिल्ली के उस बच्ची को ट्वीट करना पड़ा जिसके पिता का इलाज ही नहीं हो रहा था बस पुलिस पकड़ के ले गयी थी ? अब जिसको ट्वीट ना करने आएगा वो तो मर ही जाएगा। क्यों कोई ट्रेन से कट के मरना चाह रहा है ? आखीर क्यों लोग एक जगह से दुसरे जगह भाग रहें है ? आखिर क्यों एक गर्भवती महिला तपती धूप में बीच सड़क पे बच्चे को जन्म देने के लिए मजबूर है ? आखिर क्यों कई स्टेशनों पर श्रमिक स्पेशल ट्रेनों से लोगों की लाशें उतर रही हैं ? आखिर क्यों अब सरकारी प्रेश कॉन्फ्रेंस में कोरोना के डबलिंग रेट की बात नहीं करते ? आखिर क्यों 130 करोड़ भारतीयों की सरकार 20 30 50 लाख लेबर जो कि 10 पर्सेंट भी पूरी आबादी के नहीं हैं उनको मैनेज नहीं कर पा रही है ? आखिर क्यों विश्व के कुछ सबसे बड़े खाद्य भंडारन के लिए जानी जाने वाले देश में लोगो को खाना नहीं मिल पा रहा है ?

पता नहीं ये सब क्या है कैसे है ? क्या सॉल्युशन है !
सवाल मत पूछो क्यूंकि उनको भी नहीं पता है या पता है , पता नहीं।
बस जीते रहो कम से कम अगले इलेक्शन तक।

लेखक:
मनु मिश्रा
नैनी, प्रयागराज

Comments
  1. Keshav