Digital India से रुक सकता था गोरखपुर ऑक्सीजन और मुजफ्फरनगर रेल हादसा
बड़ी ज़ल्दी में हो क्या भाई बहनों और मित्रो थोडा सब्र पकड़ो। लेख की शुरुआत राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी जी की एक छोटी सी कहानी से जिसमे एक माँ अपने बच्चे को लेकर बापू के पास आती है और कहती है बापू ये मीठा बहुत खाता है। आप इसे समझा दीजिये जिस पर गाँधी जी कहते हैं की 10 दिन बाद इसे वापस लेकर आना। 10 दिन बाद महिला फिर वापस आती है और तब गाँधी जी उसके बच्चे को बहुत अच्छे से समझा देते है। माँ आश्चर्य से गाँधी जी की तरफ़ देखते हुए पूछती है कि बापू जो बात आपने आज कही वो आप उस दिन भी कह सकते थे। जिसपर गाँधी जी जवाब देते हैं, तुम बिलकुल सही कह रही हो लेकिन उस दिन तक मैं भी बहुत मीठा खाता था इसीलिए पहले मैंने अपना मीठा खाना कम किया और उसके बाद तुम्हारे बच्चे को समझया।
ऊपर लिखी कहानी ये कहती है की पहले उपदेश या बदलाव की बात मत कहो पहले उसे खुद के अन्दर लाओ। कुल मिलाकर ये कि पहले खुद बदलो फिर दूसरो को बदलने के लिए कहो। मोदी जी, गाँधी जी में पूरी आस्था रखते हैं ; ये कहानी उन्होंने भी जरुर सुनी होगी फिर ना जाने क्यों वो अपनी सरकार और सरकारी कामकाजों के अन्दर बदलाव करने से पहले देश बदलना चाहते हैं। जबकि सरकार अगर उदाहरण बने तो आम जन खुद बा खुद आगे आयेँगे लेकिन सरकार खुद के अन्दर बदलाव चाहती ही नहीं।
अब बात करते हैं पहले गोरखपुर हादसे कि जिसमे ऑक्सीजन की कमी की वजह से लगभग 63 बच्चों की जान गयी। ऑक्सीजन की कमी इस वजह से हुई कि जिस कंपनी का काम था ऑक्सीजन उपलब्ध करवाने का मेडिकल कॉलेज में उस कंपनी का गोरखपुर मेडिकल कॉलेज पर 1 या 2 लाख नहीं पूरे 65 लाख रूपये का उधार था। कंपनी का कहना था कि हम कह रहे थे की हम निरंतर ऑक्सीजन उपलब्ध नहीं करवा पाएंगे लेकिन जूं नही रेंगी गोरखपुर मेडिकल कॉलेज के प्रशासन पर जिसकी वजह से मासूमों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। गलती सरकार की भी है क्योंकि जब आप डिजिटल इंडिया , न्यू इंडिया की बात करते हो और ऑनलाइन पेमेंट की बात करते हो तो डिजिटल मिशन की शुरुआत खुद से क्यों नही करते। क्यों एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण नहीं किया जिसमें जैसे ही ऑक्सीजन गैस के सिलिंडर अस्पताल पहुचें तुरंत ही उनको गिन कर जाँच कर स्टोर में रखा जाए। उसके बाद जिसने भी सिलिंडर प्राप्त किये वो अपना फिंगर प्रिंट लगाये और तुरंत एक सन्देश अकाउंट विभाग को जाए और वो ऑनलाइन पैसे का ट्रांसफर कर दे। या फिंगर प्रिंट से ही जो पैसा कंपनी का बना है वो कंपनी को चला जाए। कुल मिला के ये की अगर अस्पताल में डिजिटल इंडिया का कांसेप्ट सही तरीके से इस्तेमाल किया गया होता तो न कंपनी का पैसा रुकता ना ही ऑक्सीजन की कमी होती और न जान जाती फूल जैसे मासूम बच्चों की।
मुजफ्फरनगर रेल हादसा जो 19 अगस्त 2017 मतलब अभी हाल ही में मुजफ्फरनगर के खतौली के पास हुआ जिसमे करीब 21 लोगों की जान गई और 80 से ऊपर घायल है। जिस विभाग ने कलिंगा-उत्कल एक्सप्रेस (18477) को ग्रीन सिग्नल दिया उसे ये पता ही नहीं था की आगे पटरी टूटी पड़ी है। पटरी पर रेलवे के इंजीनियरिंग विभाग नें काम शुरू तो किया था पटरी को ठीक करने का लेकिन उसे पता नहीं क्यों वो पूरा नहीं कर पाये । इसकी जानकारी उन्होंने सिग्नल देने वाले विभाग को भी नहीं दी ऐसा सिंग्नल देने वाला कर्मचारी कह रहा है। ये बात तो भगवान जाने की कौन सच बोल रहा है और कौन झूठ पर अगर यही एक ऐप या वेबसाइट होती जिस पर किसने क्या किया, कितना किया सबको अपलोड करना जरुरी होता तो इंजीनियरिंग विभाग उसपर अपलोड कर देता की आगे पटरी ठीक नहीं है , काम चल रहा है या बाकी है। सिग्नल देने से पहले कर्मचारी देख लेता उस ऐप या वेबसाइट पर जाकर की आगे सब ठीक है ना और अगर इंजीनियरिंग विभाग नहीं करता अपलोड तो उनको हादसे का दोषी मान के उनके ऊपर केस चलाया जाता। आप सोचिये अगर ऐसी व्यवस्था होती तो इंजीनियरिंग विभाग को भी डर होता और हादसा टल सकता था। उन्होंने जानकारी दी या नहीं दी इस बात की जाँच में पैसा और समय बर्बाद करने की भी जरुरत नहीं पड़ती।
मै ये नहीं कहता की हम सारे हादसे टाल सकते हैं लेकिन अगर सब मिलकर प्रयास करें तो कम जरुर कर सकते हैं। देश के प्रधान सेवक से मेरा हाथ जोड़कर विन्रम निवेदन है की साहब जिस डिजिटल इंडिया, न्यू इंडिया की गंगा आप पुरे देश में बहाना चाहते हैं तो सर्वप्रथम उसकी गंगोत्री खुद बनिए।