एक बार अपने बच्चो के स्कूल चले जाईए

एक बार अपने बच्चो के स्कूल चले जाईए

गुरुग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल में जो हुआ वो स्कूल के ही किसी कर्मचारी नें किया। न्यूज़ मे चल रही खबरों के मुताबिक बस कंडक्टर जो अभी पुलिस की गिरफ्त मे है उसने 7 साल के प्रद्युमन को अपनी हवस का शिकार बनाने की कोशिश की। उस मासूम ने विरोध किया तो ड्राईवर ने बदले मे उस मासूम का गला बेरहमी से काट दिया जिससे उसकी कुछ समय बाद मौत हो गयी। स्कूल के प्रबंधको का कहना है कि स्कूल खुद पीड़ित है मतलब गलती स्कूल की नहीं प्रद्युमन के माँ-बाप की है जो उन्होंने अपने बच्चे का दाखिला एक पीड़ित स्कूल में करवाया। स्कूल की बात सुन कर तो यही लगता है, अब हम आप यही दुआ कर सकते की जिसने भी किया ये घिनौना काम उसे उसकी सजा मिले। प्रद्युमन तो वापस नहीं आ सकता लेकिन हम अगर कुछ सावधानी बरतें तो ऐसे हादसों में कमी जरुर आ सकती है।

नीचे लिखा लिखीं बातें बहुत ध्यान से पढ़ें –

हर साल जनवरी कि शुरुआत से शुरु हो जाती है नर्सरी मे दाखिले के लिये अभिभावकों कि भागम-भाग। हर किसी को लगता है कि उनके बच्चे का दाखिला अच्छे स्कूल मे हो जाए तो उनके लाल या लाली की ज़िन्दगी बन जाए। दिल्ली के सेंट कोलंबिया और देहरादून के दून स्कूल का नाम सुना होगा अपने, कांग्रेस के नेता राहुल गाँधी इन्ही दोनों स्कूलो से पढ़े हुए है। फिर भी उनको नहीं पता की आलू खेत मे उगाया जाता है न की फैक्ट्री में बनाया जाता है। ऊपर के दोनों स्कूल बहुत अच्छे हैं लेकिन इसमें पढ़कर भी राहुल इतनी सी बात नहीं सिख सके पता है क्यों ? क्योंकि उनके घर वालों नें समझा बढ़िया स्कूल, बड़े स्कूल मे दाखिला हो गया इसलिए हमारी जिम्मेदारी खत्म। स्कूल कोई भी छोटा या बड़ा नहीँ होता लेकिन 21वी सदी मे शिक्षा एक व्यापार बन चुका है। स्कूलों मे बच्चो को लेने की होड़ सी मची पड़ी है और जिन स्कूलों का नाम बड़ा है आज उनकी फीस बहुत ज्यादा ही मोटी है।

आप किसी भी स्कूल को चुनते हुए इन बातों पर जरुर ध्यान दें –

1. दाखिला कराने से पहले स्कूल के बारे मे अच्छी तरह से जाचं पड़ताल कर लें , जिनके बच्चे पहले से उस स्कूल मे पढ़ रहे हैं उनसे आपको ये बात आसानी से पता चल जायगी।

2. वार्षिक चार्ज यानी रख-रखाव की फीस जिसमें सारी मूलभूत सुविधाएं आती हैं जैसे पानी , बिजली, शौचालय आदि उसके लिए स्कूल आपसे पैसे लेता है तो फिर आप जब पैसे दे रहे हैं तो फिर शौचालय अलग ही होना चाहिए आपके बच्चों का। मतलब जिसका इस्तेमाल सिर्फ स्कूल मे पढ्ने वाले बच्चे करे न की ड्राईवर माली और बाहर से कोई भी आने वाला।

3. ड्राईवर का स्कूल के अन्दर क्या काम? मैं जिस स्कूल में पढ़ा हूँ उस स्कूल मे बस थी लेकिन मैंने कभी भी ड्राईवर को अन्दर आते नहीं देखा तो अब आप जरुर पूछिए की क्यों किस लिए आएगा कोई गैर या ड्राईवर अन्दर उस वक़्त जब क्लास चल रही है।

4. स्कूल के अन्दर यानी प्रबंधन मे कम से कम दो से तीन अभिभावकों का शामिल होना जरुरी हो जो किसी भी व्यक्ति को स्कूल में किसी भी पदपर रखे जाने से पहले उससे सवाल जवाब कर सके। आपको ये बताते चलें की कई स्कूल ऐसे हैं जिनके प्रबंधन मे माँ बाप का दख़ल है इन अभिभावकों का चुनाव स्कूल प्रबंधन करता है। इसमें चुने जाने की पहली शर्त यही होती है आपका बच्चा उस स्कूल का छात्र या छात्रा हो।

5. ऊपर लिखी बातों पर आप अपनें बच्चे के स्कूल जाकर जरुर पूछिए आपका हक है, अगर ये ना सुना जाए तो बाकि अभिभावकों से बात कीजिये। इन स्कूलों की जान होती है मोटी फीस आप बस मिलके आवाज़ उठाएं ताकि और प्रद्युमन अपनी माँ से जुदा न हों और फिर आप बैनर उठाकर ये न कहें इंसाफ दो इन्साफ दो। अंतिम बात ये की अपने बच्चे के दोस्त बनके रहिये; अगर वो स्कूल जाने से मना करे तो उसे जबरदस्ती भेजने से पहले एक बार स्कूल जा कर पता करिए की आखिर वजह क्या है।

 

लेखक:
विभू राय