Hariom Jindal हरिओम जिंदल महान नहीं मिसाल हैं
National Highways Authority of India (NHAI) के किसी भी टोल को पार करने में आपको 3 मिनट से अधिक का समय लगता है तो आप टोल मत दीजिये। ये दादागिरी नहीं आपका अधिकार है जो क़ानूनी तौर से जायज़ है इस बात से हम सब वाकिफ हैं। हरिओम जिंदल लुधिअना से आते हैं, जो पेशे से वकील हैं उन्होंने एक RTI लगाई थी जुलाई 2016 में जिसका जवाब उनको अगस्त 2016 में ही मिला, की अगर आपको 3 मिनट से ज्यादा का समय लग जाता है टोल पार करने में तो आप टोल चार्ज मत दीजिये। ये खबर तब फैली क्यों नहीं, ये बात भगवान जाने लेकिन इस साल 2017 में जुलाई के ही महीने मे ठीक एक साल बाद शायद ही कोई अखबार , रेडियो चैनल या न्यूज़ चैनल बचा हो जिसने इस खबर को नहीं चलाया।
Hariom Jindal को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया कई न्यूज़ चैनल उनके साथ टोल पर भी गये कि आप टोल पार कर के दिखाईये वो भी ‘मुफ्त’ में। यहाँ हम उन्हें किसी टोल पर नहीं ले जा रहे हैं बल्कि हमने उनसे बात की जिसमे उनका एक दूसरा पहलु सामने आया जिसके बारे में आप जानगे तो कहेंगे की हरिओम जिंदल महान हैं लेकिन वो महान नहीं मिसाल हैं; उन लोगों के लिए जो ये कह देते हैं की जनाब देश का कुछ नहीं हो सकता और हम क्या कर सकते हैं सरकार का काम है ये की सबको शिक्षित करे और गरीबी से देश को निकाले। आईये हम आपको “हरिओम जिंदल” की सोच से रूबरू कराते हैं की आखिर वो एक मिसाल क्यों हैं।
आप की पहचान करवाने की जरुरत नहीं लेकिन कोई बात जो आप बतना चाहते हो लोगों को ?
2008 में मैंने एक किताब लिखनी शुरु की थी गरीबी के विषय पर जो अब पूरी हो चुकी है और उसका नाम अभी निश्चित नहीं किया है। स्लम के बच्चों को पढ़ाता हूँ स्लम के वो बच्चे जो सुबह मुहं धोने से पहले कबाड़ बीनने के लिए निकल पड़ते हैं कंधे पर एक बड़ा सा बोरा लिए। आजकल मजदूर भी अपने बच्चे पढ़ा लेता है लेकिन इन कूड़ा बीनने वालो बच्चों का जीवन ही कूड़े जैसा हो गया है। 3 से 4 महीने तक बाल नहीं धुले जाते, कभी नहा लिया तो नहा लिया वरना हफ्तों निकल जाते हैं नहाये हुए भी। लोग उनकी तरफ़ देखना और उनके पास जाना भी नही चाहते; मैंने भारत का एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते एक अभियान की शुरुआत की, जो बच्चे स्कूल नहीं जा पाते शिक्षा उनके दरवाज़े तक जाए; क्योंकि ये उनका अधिकार है और अगर ये उन्हें नहीं मिला तो उनका आने वाला जीवन खतरे में है जिससे कहीं न कहीं भारत भी प्रभावित होगा।
अभियान की शुरुआत कैसी रही ?
विभू (मेरा नाम लेते हुए), ये पता था कि ये आसान काम तो नहीं है मुश्किलें तो आगे आएंगीं। अभियान की शुरुआत में मुझे लगा था कि उनको पढ़ना मुश्किल होगा लेकिन उससे भी ज्यादा मुश्किल ये समझाना की पढाई उनके लिए बेहद जरुरी है। उन्हें ये विश्वास दिलाना कि शिक्षा उनका जीवन बदल देगी काफी मुश्किल था; लेकिन मैंने हार नहीं मानी और अंत मे मेरी जीत हुई। बच्चों ने पढना शुरू कर दिया और आज के वक़्त मेरा मंदिर मेरा गुरुद्वारा वही स्कूल है, जहाँ मै रोज उन्हें पढ़ाता हूँ।
NHAI (नेशनल हाईवे) में RTI लगाने के पीछे क्या कारण था ?
रोजाना कहीं न कहीं आना-जाना लगा रहता है ; जब कभी नेशनल हाईवे के किसी टोल से गुजरना पड़ता और लाईन में लगे-लगे समय बर्बाद होता तो बुरा लगता था। एक दो बार हो तो चल जाता है लेकिन जब हर बार लाईन लम्बी ही मिले तो मन में एक सवाल उठ ही जाता है कि मैं पैसे भी खर्च करू और समय भी बर्बाद करू। जबकि मैं यहाँ ये सोच के आता हूँ की सड़क अच्छी है तो समय कम लगेगा बेशक कुछ पैसे लग जायें। इसी से तंग आकर RTI दायर की और जवाब आया कि 3 मिनट से ज्यादा लाईन में लगे तो मुफ्त निकल जाइए। फिर जब भी 3 मिनट से ज्यादा हो जाता है लाइन में लगे हुए, तो मैं मुफ्त निकल जाता हूँ टोल से।
जो बात आपको RTI लगाने के बाद पता चली क्या आपको नहीं लगता की वही बात एक बड़े से बोर्ड पर लिखी हुयी होनी चाहिए जैसे और जानकारी लिखी होती है की ‘बस का इतना टोल’ व् ‘छोटी गाड़ी का इतना टोल’ इत्यादि ?
बिलकुल होना चाहिए, अगर ये होता तो RTI लगाने की जरुरत ही नहीं पड़ती। मैं इस पर भी काम कर रहा हूँ कि एक आदमी को किस जगह कितना अधिकार है और वो उसका प्रयोग कैसे कर सकता है। ये जानकारी वहां आस-पास अंकित होनी चाहिए ताकि आम जन मानस को परेशानी कम हो।
RTI किसने लगाई ये बात आसानी से पता लगायी जा सकती है। उसके बारे में पूरी जानकारी मिलना कोई मुश्किल काम नहीं तो आपको क्या लगता है ये बात गलत नहीं है ?
पहले ऐसा था लेकिन जब कई RTI लगाने वाले लोगों की हत्या होने लगी तो एक नया कानून इसी कानून में जोड़ा गया की आप पोस्ट बॉक्स नंबर देकर भी जानकारी पा सकते हैं । इसमें आपकी पहचान गुप्त रहेगी आप पोस्ट बॉक्स नंबर दीजिये अपने पते की जगह आपको आपका जवाब आपके पोस्ट बॉक्स नंबर पर ही मिल जायेगा डाक के द्वारा।
आगे की क्या योजना है क्या हम आपको राजनीति मे पाएंगे अगले कुछ सालों में ?
आज मेरी जो उम्र है उस उम्र में इन्सान को खुद से ज्यादा फ़िक्र होती है कि उसके बच्चे किसी अच्छी जगह इज्ज़त का काम करें और उन्हें एक अच्छा जीवनसाथी मिल जाये। मेरी भी यही है लेकिन मैं अपनों के अलवा उनकी भी फ़िक्र करता हूँ और पुरी कोशिश जारी है कि वो पढ़ लिख के इस काबिल बनें की वो इज्ज़त से दो रोटी कमा सकें और अपने आने वाली पीढ़ी को शिक्षा दिलवा सकें। राजनीति का अभी कोई इरादा नहीं है।
और अंत में:
Hariom Jindal जैसी महान व्यक्तित्व को आप भी पहचानें, उनसे जुड़ें और उनके समाज सेवा भाव को आप देश के कोने कोने में फ़ैलाने का कार्य करें।
हरिओम जिंदल – Facebook पर मौजूद हैं पखेरू का आपसे निवेदन है की उनके इस कृत्य को समाज के सामने रखें ताकि अन्य लोग भी प्रेरित हों।
तो ये थी एक छोटी सी बातचित हरिओम जिंदल जी के साथ। उनकी अधिक व्यस्तता के कारण मैं विभू राय उनसे ज्यादा सवाल तो नहीं पूछ सका पर इतना जरूर यकीन है कि हम पखेरू पर एक बार फिर उनसे रूबरू होंगे अपने कुछ नए सवालों के साथ। अंत में बस इतना ही कहना है की अगर हमारे देश में Hariom Jindal जी जैसे और लोग भी उभर कर सामने आएं और समाज परिवर्तन का बीड़ा उठायें तो यह देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बन जायेगा। निहायती गरीब, बेसहारा, लाचार और हेय की दृष्टि से देखे जाने वाले व् गंदे इलाकों में रहने वाले बच्चों के लिए “हरिओम जिंदल” किसी भगवान से कम नहीं।