हमारी राष्ट्रीय अस्मिता: हिंदी

अस्मिता के अंग्रेजी मायने है – ‘सेल्फ इमेज’ और हिंदी अर्थ है – ‘आत्माश्लाघा’ , निश्चित ही हिंदी हमारे भारतवर्ष की सर्वमान्य सर्व पूजनीय शान है अभिमान है।



भाषा संस्कृति की धारक और संवाहक होती है। भाषा का प्रश्न देश की अस्मिता से जुड़ा होता है। भाषा है तो घर है, घर है तो समाज और फिर नगर, फिर नगर से प्रदेश, और प्रदेश से राष्ट्र का सुंदर स्वरूप है। महात्मा गाँधी ने कहा था “बिना राष्ट्रभाषा के राष्ट्र गूँगा” । संविधान अनुच्छेद 343 से 351 का कथन -हिंदी भारत की सामाजिक संस्कृति की अभिव्यक्ति हेतु सक्षम बने। हिंदी अपने विकास के लिए अन्य भाषाओं के शब्द ग्रहण कर अपना सार्वदेशिक रूप धारण करें।

हिंदी भाषा हमारी राष्ट्रीय अस्मिता है

अतः हमारे सामने तीन आयाम आदर्श रूप में है। अनिवार्य रूप से हमारी संस्कृति जो हिंदी से संस्कृति है । शब्द रूप में हमारा संविधान जो हिंदी की महत्ता प्रतिपादित करता है । हिंदी निश्चित रूप से हमारे देश की अस्मिता है (ना सिर्फ प्रतीक है) ।



शौर सेनी अपभ्रंश से विकसित हिंदी के इस भाषिक रूप कि यह संज्ञा सर्वप्रथम अमीर खुसरो की देन है । खुसरो का समय 1295 से 1325 माना गया, इनके पूर्व भाषा रूप की संज्ञा पिंगल, डिंगल इत्यादि क्षेत्रीय आधारों पर सम्मिलित थी । अमीर खुसरो ने अपनी फारसी उक्ति में इसे हिंदवी नाम दिया उन्होंने लिखा- “मैं हिंदुस्तान की तूती हूँ, यदि तुम कुछ पूछना चाहते हो तो हिंदवी भी अर्थात हिंदी में पूछो ताकि मैं तुम्हें बता सकूँ” । यह राजा राममोहन राय, कबीर, सूर, तुलसी, सुभाष बोस, सोनिया गाँधी, टैगोर, श्रीमती लक्ष्मी राघवन, श्री अमिताभ बच्चन, श्री नरेंद्र मोदी और अमीन सयानी- रेडियो सिलोन – हाँ तो भाइयों बहनों दोस्तों, की भाषा रही है तो फिर हिंदी को भारत राष्ट्र की अस्मिता तो होना ही है ।



भारत में संपर्क भाषा के रूप में हिंदी की सर्वश्रेष्ठ कृति की साक्षी मैटिकॉफ महोदय के एक पत्र में मिलती है; मेटकॉफ अंग्रेज ऑफिसर 29 अगस्त 2006 को अपने हिंदी अध्यापक को लिखते हैं – भारत के जिस भाग में मुझे कार्य करना पड़ा कलकत्ता से लाहौर, कुमाऊं के पहाड़ों से नर्मदा तटों, मराठा राजपूत, सिखों और प्रदेशों के सभी कबीलों में मैंने उस भाषा का आम व्यवहार देखा यानी हिंदी का, जिसकी शिक्षा आपने मुझे दी । यह चिट्ठी परतंत्र भारत में हिंदी की अस्मिता का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, स्वरुप है ।



यदि इस प्रकरण में पुख्ता इतिहास की बात करें तो मिर्ज़ा गालिब की एक प्रति का शीर्षक ऊदें हिंदी था, तो अकबर महान के एक सिक्के पर राम-सिय का प्रयोग देवनागरी लिपि में पाया जाता है । यह भी ताज़ा इतिहास है कि हिंदी में बोला गया फिल्मी संवाद “अरे ओ सांभा” कितने आदमी थे सिर्फ हिंदुस्तान नहीं वरन पाकिस्तान, श्रीलंका, फिजी नेपाल और तो और कनाडा इंग्लैंड अमेरिका में भी बोला सुना और समझा जाता है । यह है हिंदी का विश्वरूप जो कि हमारे भारत की अस्मिता है ।

घर-घर की बोली हिंदी है, हर प्रदेश की भाषा है
भारत का संपर्क सूत्र है, सबके मन की आशा है । 

हिंदी की सुरक्षित गंधों से, भू-अंबर आज महकने दो
हिंदी को सारे भारत में, सजने और सँवरने दो
यह हमारी मीठी ज़ुबान, नित बढ़ने दो उभरने दो ।।

लेखिका:
वैदेही शर्मा