जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक राजनीती एवम् भारत

जलवायु परिवर्तन को नजर में रखते हुए वैश्विक स्तर पर कई सम्मेलनों का आयोजन हुआ, जिसमें तमाम देशों ने मिल कर वर्तमान की सबसे चुनौती पूर्ण समस्या से निजात के लिए कई प्रकार की योजनाएं बनाई।

स्काटहोम सम्मेलन की 20वीं वर्षगांठ मनाने हेतु ब्राजील के शहर रियो-डी-जेनेरियो में आयोजित रियो सम्मेलन में जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, सतत विकास एवम् पर्यावरण संरक्षण आदि मुद्दों पर चर्चा हुई। जिसमे वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने के लिए और मृस्थलीयकरण को रोकने हेतु योजनाओ का निर्माण किया गया।इस अवसर पर एजेण्डा-21 पारित किया गया। सभी राष्ट्रों से निवेदन किया गया की वह प्राकृतिक संतुलन को बनाएं रखें ।

एजेण्डा-21 के प्रमुख बिन्दु थे, पर्यावरण एवम् विकास के मध्य संबंध के मुद्दों को समझा जाये। ऊर्जा का अधिक कुशल तरीके से प्रयोग किया जाये। प्रदूषण फ़ैलाने वालों पर भारी अर्थदंड लगाया जाये आदि।

जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक राजनीती एवम् भारत
जलवायु परिवर्तन से सूखा

UNFCCC की तीसरी बैठक जापान के क्योटो शहर में सम्पन्न हुई। अंतर्राष्ट्रीय रूप से यह समझौता 2005 में लागू हुआ । इसी क्रम में निम्नवत सम्मेलनों का भी आयोजन हुआ एवं जलवायु परिवर्तन को नियंत्रण में रखने की योजनाओं का गठन किया गया।

  • बाली सम्मेलन 1997 (COP-13)
  • कोपेनहेगन सम्मेलन 2007 (COP-15)
  • कानकुन सम्मेलन 2010 (COP-16)
  • डरबन सम्मेलन 2011 (COP-17)
  • दोहा सम्मेलन 2012 (COP-18)
  • वारसा सम्मेलन 2013 (COP-19)
  • लीमा सम्मेलन 2014 (COP -20)
  • पेरिस सम्मेलन 2015 (COP-21)
  • मराकेश सम्मेलन 2016 (COP-22)
  • बॉन सम्मेलन 2017 (COP -23)

पेरिस में 191 देशों के बीच जलवायु परिवर्तन पर बनी सहमति के करीब एक साल बाद भारत ने इसे अपनी मंजूरी दी। यह समझौता मूल रूप से वैश्विक तापमान में बढ़ोत्तरी को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने से जुड़ा है। भारत से पहले 61 देशों इस समझौते को मंजूरी दी है। जो करीब 48 फीसदी कार्बन उत्सर्जन करते हैं। अमरीका इस सूची में पहले स्थान पर है जहां हर आदमी 20 टन कार्बन उत्सर्जन करता है चीन इस सूची में दूसरा स्थान लेता है। इस समझौते में अब भी कई मुद्दों पर बहन और मदभेद जारी है।

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जलवायु परिवर्तन से जमती बर्फ

पेरिस समझौता पहला ऐसा है जिसके तहत सभी देश वैश्विक तापमान में वृद्धि को रोकने की प्रतिबद्धता जताते हैं जो की मुख्य रूप से कोयला, तेल और गैस से होने वाले उत्सर्जन से होती है। मूल रूप से पेरिस जलवायु समझौते को मानने की कोई कानूनी बाध्यता नही है। इसके अलावा किसी देश ने अपने कार्बन उत्सर्जन में कितनी कटौती की इसकी जाँच का भी कोई तरीका अभी तक मौजूद नही है। आलोचकों के मुताबिक जब तक जाँच की यही व्यवस्था रहेगी
तब तक पेरिस समझौता सिर्फ कागजों पर ही सीमित रहेगा।

पर्यावरण और जलवायु मंत्रालय का जलवायु परिवर्तन प्रभाग जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित मुद्दे, अंतर्राष्ट्रीय वार्ता और घरेलू नीतियों को भी देखता है भारत जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन, पेरिस समझौता और क्योटो प्रोटोकॉल के लिए एक पार्टी भी है। हाल के वर्षों में जलवायु परिवर्तन की समस्या से निपटने के लिए की योजनाएं शुरू की गई हैं। कुछ और भी पहल जैसे जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्य योजना, राष्ट्रीय अनुकूलन कोष, जलवायु परिवर्तन एक्शन कार्यक्रम आदि। वर्ष 2018 के दैरान जलवायु परिवर्तन पर अनेक द्विपक्षीय और बहुपक्षीय बैठकें एवं वार्ताएं आयोजित की गई, इन बैठकों के माध्यम से विकासशील देशों की रूचि और स्तिथि को यूएनएफसीसीसी तक ले जाने की मजबूती प्रदान की है।

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जलवायु परिवर्तन का प्रमुख कारण ‘प्रदुषण’

पोलैंड के कोटविस में आयोजित पार्टियों के 24वें सम्मेलन पेरिस समझौता कार्य योजना को अपनाने में सफल रहा। दिसंबर 2018 में पोलैंड के कटोविस में आयोजित UNFCC के 24वें सम्मेलन के दौरान भारत का एक मंडप भी तैयार किया गया जिसका थीम एक विश्व एक सूर्य एक ग्रीड था। वर्ष 2018 में जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय अनुकूलन कोष के तहत राजस्थान, सिक्किम, तमिलनाडू, मणिपुर और केरल में अनुकूलन का समर्थन करने के लिए कुल 42.16 करोड़ रूपये की राशि जारी की गई। अब तक 27 परियोजनाएं स्वीकृत हो गई हैं जलवायु परिवर्तन एक्शन कार्यक्रम योजना के तहत मध्य प्रदेश, नागालैंड में दो प्रदर्शन परियोजनाओं के क्षमता निर्माण के लिए भी सवा करोड़ की राशि जारी की गई है।

इसके अलावा भी वैश्विक बैठकों की प्रतिक्रिया स्वरूप भारत ने कई योजनाओ की शुरुआत हुई है। जलवायु परिवर्तन से पड़ने वाले बुरे प्रभावों से बचने के लिए वैश्विक स्तर पर कई नीतियाँ बनाई गई, जिसमे की भारत की ओर से स्थितियों को देखते हुए नीतियों को रूप दिया गया। इनमे कुछ राज्यों ने जलवायु परिवर्तन को देखते हुए अपनी खुद की नीति बनाई जब की कुछ राज्य केंद्रीय नीति का ही अनुसरण करते रहे।

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडू, बिहार, पंजाब, राजस्थान जैसे राज्यों ने जलवायु परिवर्तन से इनपर पड़ने वाले प्रभाव और कारणों को ध्यान में रख कर अपनी अलग नीतियों को रूप दिया। शेष राज्यो  ने केंद्रीय नीति का ही पालन जारी रखा। कुछ योजनाओ का असर बहुत जल्द ही देखने को मिलेगा जबकि कुछ योजनाओ को फलीभूत होने में समय लग सकता हैं।

लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा