बुलेट ट्रेन – फिर शुरू हो गई अमीर ग़रीब की राजनीति
13 सितंबर 2017 जापान के प्रधानमंत्री शिंजों आबे का किया गया भारतीय दौरा और फिर अगले दिन 14 सितंबर 2017 को देश की पहली बुलेट ट्रेन की घोषणा नें भारतीय राजनीति में चली आ रही सदियों पुरानी प्रथा अमीर बनाम गरीब के मुद्दे को फिर उजारकर कर दिया। विगत कुछ वर्षों में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नें हिंदुस्तान को विश्व मंच पर मजबूती से स्थापित किया है। उसी कड़ी में जापान भी हमसे पहले की अपेक्षा अब और अधिक प्रबलता से जुड़ा है; जो तकनीकि साझेदारी से आगे बढ़कर अब हमारे देश की सुरक्षा संबंधी राजनीतिक कूटनीति में भी सहयोग कर रहा है। खैर यह एक अलग बात है, यहाँ हम केवल बात करेंगे बुलेट ट्रेन की।
गौरतलब है कि जिन लोगों नें देश की बागडोर करीब 60 वर्षों तक संभाली वे आज बुलेट ट्रेन को अमीर बनाम गरीब का मुद्दा बना रहे हैं। अपनी इस बात से वे अनजानें में ही यह बता गए की उनके 60 वर्षों के शासन के बाद भी देश में गरीबी अभी ज़िंदा है। हमारी राजनीतिक व्यवस्था में गरीब एक मोहरा है जिसे आगे कर नेता अपना उल्लू सीधा करते आये हैं यह कोई नई बात नहीं है। जहाँ तक बुलेट ट्रेन परियोजना का सवाल है तो यह सभी को ज्ञात है कि भाजपा नें 2014 लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरना ही इस बात को जन जन तक पहुँचाया था। बुलेट ट्रेन भाजपा के चुनावी घोषणा पत्र का अहम् हिस्सा था यानि जनता से किये गए कई वादों में से एक वादा बुलेट ट्रेन का भी था। बुलेट ट्रेन परियोजना के नाम पर यह दलील दी जा रही है कि यह अमीरों की सवारी है, गरीब इसमें सफर नहीं कर पायेगा; मोदी सरकार केवल अमीरों का भला चाहती है। अमीर बनाम गरीब की राजनीति करना नेताओं की नियति रही है ऐसे में भला बुलेट ट्रेन कैसे बचती। विपक्ष में बैठे नेता बुलेट ट्रेन परियोजना को अभिजात्य वर्ग से जोड़ना चाहते हैं जो उनकी संकीर्ण मानसिकता अथवा पूर्व असफलता का प्रदर्शन कर रही है। इतिहास है, कि देश में जब जब विकास व् तकनीकि का खाका तैयार किया गया है तब तब उसे अमीर और गरीब के चश्में से देखा गया है। गरीबों को यह अहसास दिलाया जाता है कि उनका दुश्मन अमीर व्यक्ति ही है; असल में ये कोरी बातें गरीबों का तो महिमामंडन करती ही है साथ में अमीर और गरीब के बीच बनी खायी भी गहराती चली जाती है।
इंडियन रेलवे जो अपने 160 वर्षों की विशाल यात्रा के बाद भी खुद को सजाने-संवारने में विफल रहा आखिर क्यों ? भारतीय रेलवे के बारे में ये कहा जाता है कि वो तो भगवान भरोसे है उसमें आमूल-चूल बदलाव लाना या उसकी बात भी करना सपने देखने जैसा है। सच में हालात तो कुछ ऐसे ही हैं, दुनियां का दूसरा सबसे बड़ा रेलवे नेटवर्क वाला देश हिन्दुस्तान सन 1853 से लेकर 21वीं सदी वर्ष 2017 में प्रवेश करने के बाद भी देश की आर्थिक प्रगति में सहायक नहीं बन सका। आप जानते हों या नहीं, पर वर्तमान रेल मंत्री पियूष गोयल देश के 39वें रेल मंत्री हैं, है ना चौकानेवाली वाली बात ! 39 रेल मंत्री बन गए पर रेलवे वहीँ खड़ी है बिना दूध देने वाली गाय की तरह। भारत जीडीपी के मामले में दूसरा सबसे बड़ा देश बन गया पर रेलवे को लेकर यही बात सामने आती है कि वह घाटे में चल रही है। सभी रेलमंत्रियों द्वारा किये गए अपने अपने प्रयास से केवल एक बात उभरकर सामने आयी है वह है ट्रेन का लगातार बढ़ता हुआ किराया जो कहीं न कहीं उसी गरीब पर दबाव बनाता है जिसकी दलील 14 सितंबर से बुलेट ट्रेन को लेकर दी जा रही है। क्या अब भी आप यही कहेंगे बुलेट ट्रेन का आना गलत है ?
मैं इसमें नहीं जाना चाहता कि कांग्रेस नें क्या किया, बीजेपी नें क्या किया या फिर सबने क्या किया !! बात एक ही है – क्या बुलेट ट्रेन चलाना आवश्यक है ? मेरे ख्याल से तो ये बेहद आवश्यक है। भारत जैसे देश में रेलवे यातायात का एक मात्र भरोसेमंद साधन है ऐसे में रेलवे का पिछड़ना देश के साथ लोगों के पिछड़ेपन का भी कारण है । अब तक रेलवे की यही दलील रही है की वो घाटे में जा रही है; दलील सच्ची है कोई शक नहीं, जिसका कारण है रेलवे में काम करने वाला बहुत बड़ा स्टाफ, उसको दी जाने वाली तनख्वाह, प्रीमियम ट्रेनों की संख्या में कमी, यात्रा में समय अवधी का ज्यादा लगना, ग्रामीण क्षेत्रों में बिना टिकट यात्रा करने वाले यात्री, दी जाने वाली सब्सिडी, इसके अलावा रेलवे के रखरखाव का खर्च इत्यादि। ट्रेनें चल रहीं हैं पर फायदा नहीं हो रहा; अपनी कमाई में से रेलवे को सबसे बड़ा भुगतान करना पड़ता है तो वह है रेलवे स्टाफ की तनख्वाह। इसी मुद्दे पर कई बार रेलवे के निजीकरण की बात भी उठाई गई पर राजनीतिक घाटा होते देख सरकारों नें पुनः कदम वापस ले लिए ऐसे में भला रेलवे निजीकरण की हिम्मत दिखाए कौन ? रेलवे केवल यात्री नहीं माल ढ़ुलाई का भी काम करती है अगर कुछ फायदा निकलता भी है तो मालगाड़ियों से ही निकल पाता है। सरकारों नें अपना राजनीतिक फायदा देखते देखते 1946 से 2017 आने तक 71 वर्ष गुजार दिए जो की प्रमुख वजह बना रेलवे की बदहाली का।
पुनः लौटते हैं बुलेट ट्रेन पर, जापान की संधि के अनुसार अधिकतम पैसा वही लगाएगा और भारत को कम ब्याज दर पर बुलेट ट्रेन मुहैया करायेगा। मोदी के कथन के अनुसार 2022 में देश को पहली बुलेट ट्रेन मिल जाएगी जो अहमदाबाद से मुंबई के बीच चलाई जाएगी। बुलेट ट्रेन की आवश्यकता की प्रमुख वजह यही है कि रेलवे घाटे को पूरा किया जाय, बढ़ते किराये का बोझ सबपर न डालकर देश में उपस्थित धनाढ्य वर्ग से वसूली की जाय। हालांकि सिर्फ एक बुलेट ट्रेन मार्ग बनाने से घाटे को पूर्ण करना संभव नहीं है किन्तु यह एक पहला प्रयास है जिसे समय के साथ अन्य मार्गों पर भी लागू किया जायेगा। बुलेट ट्रेन यातायात में तेज़ी लाने के साथ ही रोजगार के अवसर भी प्रदान करेगी जिसके लिए सरकार नें पहले ही तैयारी कर ली है। 2036 तक भारत जापान से बुलेट ट्रेन के कोच लेगा पर उसके बाद देश में ही मेक इन इंडिया प्रोग्राम के तहत कोच का निर्माण होगा जिसमें जापान शुरूआती मदद करेगा।
दिल्ली में करीब 25 लाख लोग मेट्रो की सवारी करते हैं जिसको लेकर कभी ऐसी ही धारणा बनाई गयी थी की ये बसों में सफर करने वाले लोगों के लिए नहीं है। अमीरी शब्द का कभी शिकार रही दिल्ली मेट्रो आज हर वर्ग की पहली पसंद है। बुलेट ट्रेन पर अमीरी का तमका जड़ने वाले नेता खासकर कांग्रेसी यह सोचें की वे इंडियन रेलवे को आखिर फायदे में क्यों नहीं ला सके। हर नई वस्तु को अमीरों के साथ जोड़कर देखने वाले असल में गरीबों को हतोत्साहित कर रहे हैं और इसी आधार पर वे अपनी राजनीतिक रोटी भी सेकते हैं।
बुलेट ट्रेन परियोजना आज भारत की जरूरत है क्योंकि इससे भारत भी तेज़ ट्रेन रफ़्तार प्रणाली रखने वाले देशों में शामिल हो जायेगा। इसके अलावा भारतीय रेलवे की सुस्त पड़ती कार्यक्षमताओं में तेज़ी आएगी। इस नई तकनीकि का समावेश न्यू इंडिया के सपनों को साकार करने में मदद करेगा क्योंकि अभी रेलवे में दशकों पुरानी व्यवस्था ही चल रही है और उसी के अनुरूप हमारी कार्यप्रणाली है जिस वजह से रेलवे अनगिनत समस्याओं से घिरी है। देश की एक और अहम् समस्या है बढ़ती आबादी और उसकी मांग, जिसका सारा बोझ भारत के चंद महानगरों पर है; ऐसे में यातायात की लचर व्यवस्था का होना हमारे आर्थिक उत्पाद को घटाता है। महानगरों में आबादी बढ़ते ही लोगों का आवागमन भी पहले से बढ़ा है जिसे रेलवे पूरा कर पाने में सक्षम दिखाई नहीं पड़ता, हमें आज भी 200 से 300 किलोमीटर की दूरी तय करने में 3 से 4 घंटे का वक़्त लग ही जाता है वह भी सुपरफास्ट ट्रेनों से। जबकि अगर हम जापान व् चीन जैसे देशों की तुलना करें तो वे हमसे रफ़्तार के मामले में बहुत आगे हैं, जापान और चीन में ट्रेनें 300 किलोमीटर की दूरी महज 1 घंटे में तय कर लेती हैं। आगे चलकर बुलेट ट्रेन के आने से न सिर्फ ट्रेन सफर तेज़ होगा बल्कि उत्पादकता भी प्रभावित होगी। आज के दौर में समय बहुमूल्य है, समय की बचत लोगों को सहूलियत देने के साथ उनके लिए आर्थिक रूप से भी अत्यंत लाभकारी है।
देश में बैठे कुछ पत्रकार, टीवी वालों के साथ साथ फेसबुकिया पत्रकार ये कहते हुए सुनाई दे रहे हैं की इतने पैसे में तो इंडियन रेलवे का ही काया पलट हो जाता। तो भाई साहब किसने मना किया था ? कर देते काया पलट ! क्या वे 14 सितंबर 2017 में इस ज्ञान को देने का इंतजार कर रहे थे ? पत्रकारों के जोड़ीदार विपक्षी नेता भी उनके सुर में सुर मिलाते यह कह रहे हैं की 1 लाख करोड़ की लागत वाली बुलेट ट्रेन परियोजना में गरीबों को कुछ नहीं मिलने वाला। मेरे ख्याल से यह एक कुतर्क के अलावा कुछ भी नहीं है। 60 वर्षों से देश का पीछा न तो जातिगत राजनीति से छूट रहा है और न ही अमीर बनाम गरीब की राजनीति से।
यह भी अजीब संयोग है कि विपक्ष राजनीतिक दल देश में गरीबी का मुद्दा, गरीबों का हक़ जैसी लम्बी बातें तो करता है मगर उनको पूरा करने के लिए एक दूसरे का साथ खड़ा नहीं होता जिसका ताजा उदाहरण है उज्ज्वला योजना जिसे प्रधानमंत्री मोदी नें 1 मई 2016 को शुरू किया। इस योजना के अंतर्गत गरीब लोगों को मुफ्त में एलपीजी गैस कनेक्शन मिल रहे हैं । इस जोजना का मुख्य उद्देश्य गरीब तबके को जीवाश्म ईंधन की जगह एलपीजी के उपयोग को बढ़ावा देना है। इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार ने 8000 करोड़ रुपयों की मंजूरी दी। राजनीति का यह आलम है कि विपक्षी इसपर भी सवाल दाग रहे हैं क्योंकि सरकार नें सालाना 10 लाख से अधिकतम कमाई करने वालों को एलपीजी की सब्सिडी से बहार किया और पहले से चली आ रही सब्सिडी में कुछ कमी भी कर दी।
मैं बस यही चाहूंगा, बुलेट ट्रेन अमीर बनाम गरीब की राजनीति का हिस्सा ना बने। बुलेट ट्रेन सच में न्यू इंडिया की आवश्यकता है, ट्रेनों की लेट लतीफी का समाधान है, बेजान रेलवे में जान फूंकने की दवा है और भारत की बदलती हुई तस्वीर का प्रमाण है।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा