ईश्वर और विज्ञानं – कौन कितना महान
ईश्वर की चर्चा जब भी हम करते हैं तो कुछ लोग इसे केवल अन्धविश्वास, सामान्य मान्यता, पूजन प्रथा और सदियों से चली आ रही एक मिथ्य तथ्य ही मानते हैं। वहीँ दूसरी तरफ अनेकों लोग हैं जो ईश्वर के अस्तित्व में पूरा विश्वास रखते हैं, उनका यह मानना है की संसार में हर सजीव – निर्जीव वस्तु का निर्माण ईश्वर द्वारा ही किया गया है।
विज्ञान में विश्वास रखने वाले लोग ईश्वर को साफ़ तौर पर नकारते हुए नज़र आते हैं। परन्तु वैज्ञानिकों के जत्थे में कई वैज्ञानिक ईश्वर में आस्था भी रखते हैं तो कई इसे कोरी बात मानते हैं। पखेरू पर आज की चर्चा इसी विषय को लेकर है की “Ishwar Aur Vigyan Kaun Kitna Mahaan“, सच में यह विषय रोचक है। Bhagwan, Allah, God जैसे शब्द ईश्वर की ओर ही इशारा करते हैं जिनको पूजने की अलग अलग विधि उन धर्मों के मुताबिक है। Geeta, Bible, Quran या अन्य पूज्य ग्रन्थ भी ईश्वर की मान्यताओं पर आधारित हैं जिसमें लोग आस्था रखते हैं।
ईश्वर और विज्ञान (God and Science) दोनों विषय जुदा हैं। विज्ञानं कारण और सिद्धि के आधार पर काम करता है तो ईश्वर केवल विश्वास व मान्यता पर।
पशु , पक्षी , पेड़ , पौधे , जल , वायु , भूमि , गगन , पाताल जैसी अनेकों सुन्दर रचनाएं जिसे ईश्वर नें रच कर मनुष्यों के हवाले किया आज वे सभी रचनाएं अपना दम तोड़ रहीं हैं। वह मनुष्य जिसे अपनी उत्पत्ति का ही ज्ञान नहीं, अहंकार में इतना अज्ञानी हो गया है की सीधे ईश्वर के अस्तित्व को ही चुनौती दे बैठा है। पृथ्वी पर बैठ विज्ञान के माध्यम से मनुष्य उन गुत्थियों को सुलझाने का प्रयास कर रहा है जो गुत्थियां उसके जन्म के पूर्व की हैं। ये वही अहंकारी मनुष्य है जिसका सृजन इस प्रकृति नें किया और आज वह प्रकृति को भी अपने पूर्ण वश में करने की फिराक में है।
विज्ञान क्या कोई अविष्कार है ? क्या सच में विज्ञान मनुष्य की खोज है ? तो फिर मनुष्य की खोज किसने की ? अंरिक्ष में तैरती अनेकों आकाशगंगाएं, एक आकाशगंगा में अनेकों ‘गृह’ ‘उल्का-पिंड’ ‘धूमकेतु’ ‘उपग्रह’ ‘सितारे’ और एक ही आकाशगंगा में व्याप्त अनेकों सौरमंडल – क्या यह विज्ञान नें किया है ? नहीं मैं नहीं मान सकता, क्योंकि स्वयं विज्ञान भी यह दलील देता है की हर कारण के पीछे एक कारण है। तो फिर क्या विज्ञान के पीछे भी विज्ञान है ? और अगर है तो वह महान वैज्ञानिक कौन है जिसनें इतने जटिल विज्ञान को एक व्यवस्था के रूप में खड़ा किया। हमारा सौरमंडल अपने आप में एक ऐसी व्यवस्था है जो कभी डगमगाती नहीं जिसमें हमारी धरती भी है जहाँ हमारा वास है। क्या होगा अगर तनिक देर के लिए ही सही हमारे सौरमंडल की व्यवस्था डगमगा जाय। पृथ्वी का अपने क्षितिज पर एक समान गति से एक समान दूरी पर रहकर सूर्य का चक्कर लगाना सच में सिर्फ वैज्ञानिक है क्या ? अगर वैज्ञानिक है, तो वैज्ञानिक उपकरण भी तो कभी कभी फेल हो ही जाता है परन्तु पृथ्वी फेल क्यों नहीं होती या फिर सम्पूर्ण सौरमंडल ही फेल क्यों नहीं हो जाता। वर्तमान समय के मशहूर वैज्ञानिक Stephen Hawking यह दावा करते हैं कि इस Universe का निर्माण एक Explosion से हुआ। तमाम गैसों , अणुओं व परमाणुओं से निर्मित एक गोला जो फटकर ब्रम्हाण्ड का रूप ले बैठा जो तब से लेकर आजतक फैलता ही जा रहा है। परन्तु Stephen Hawking का यह सिद्धांत भी अनेक सवालों के घेरे में आ जाता है जिसका जवाब नहीं है। स्टेफेन हाकिंग नें Big Bang Theory से Evolution Of Universe को काफी समझाने का प्रयास तो किया है पर वह सभी वैज्ञानिकों द्वारा स्वीकार्य नहीं है। क्योंकि यह कैसे माना जाय की बिग बैंग हुआ या बिग बैंग से ब्रम्हाण्ड बना या बिग बैंग हुआ ही क्यों ? अर्थात यूनिवर्स का जन्म पूर्णतः सिद्ध नहीं है क्योंकि Big Bang के कारण का पता ही नहीं है और यह भी पता नहीं है की ब्रम्हांड के बाहर क्या है ? क्या एक ब्रम्हांड के बाहर कोई दूसरा ब्रम्हांड भी है ? या फिर कुछ नहीं है। अगर कुछ नहीं तो वो कुछ नहीं क्या है ?? मनुष्य के पास इसका जवाब नहीं।
“मैं समय हूँ” यह वाणी भी हमने दूरदर्शन के मशहूर धारावाहिक महाभारत में सुनी इसके अलावा गीता में भी भगवान् कृष्ण नें समय का उल्लेख किया है। महान वैज्ञानिक Albert Einstein नें भी कई Theories दी हैं जिसमें Theory of Relativity, Theory of Special Relativity and Theory of Time Dilation इत्यादि पमुख हैं। अल्बर्ट आइंस्टीन के कथन के अनुसार ‘Time’ हर जगह विद्यमान है, समय कहीं तेज़ी से घटित हो रहा है तो कहीं बहुत धीमा है। तो क्या समय भी वैज्ञानिक है ? उसके अलग अलग घटित होने का क्या कारण है ? मेरे ख़याल में तो यह प्राकृतिक नियम है जो हर सजीव अथवा निर्जीव वस्तु की गति को अपने वश में किये हुए है , भला इसमें विज्ञान की क्या भूमिका। समय के होने की सिद्धि तो अल्बर्ट आइंस्टीन नें की परन्तु वो समय है ही क्यों इसका जवाब नहीं दे पाए। समय का वास केवल पृथ्वी के वायुमंडल में ही नहीं अपितु ऊपर अंतरिक्ष में भी समय प्रवाहित हो रहा है। किसने बनाया समय क्या मनुष्य नें ? या फिर विज्ञान नें ? अगर Time का निर्माण भी मानव द्वारा किया गया होता तो आज हमारा समय पर भी पूरा कंट्रोल होता पर ऐसा नहीं है। क्योंकि ब्रम्हांड समेत हर गृह और उसमें व्याप्त जीवन समय के अधीन हैं। जन्म और नष्ट होने की क्रिया समय के द्वारा ही घटती है फिर वो चाहे हम हों या हमारी पृथ्वी सब एकदिन नष्ट होंगे जिसे वैज्ञानिक भी जानते हैं। अगर न जानते तो विश्वप्रसिद्ध Scientist Stephen Hawking को यह न चेतावनी देनी पड़ती की पृथ्वी इंसानों के लिए 1000 वर्ष बाद रहने लायक नहीं रहेगी।
“गति” विज्ञान के मानक को ही मानें तो पूरे ब्रम्हाण्ड में सबसे तेज़ चलने वाली वस्तु ‘प्रकाश’ है। यह माना जाता है कि Speed of Light करीब 3 लाख किलोमीटर प्रति सेकंड है और इससे ज्यादा तेज़ कोई भी वस्तु नहीं चल सकती। सूर्य से निकलने वाली किरणें पृथ्वी तक आते आते कुल 8 मिनट 2 सेकंड का वक्त ले लेती है। क्या यह चमत्कारिक गति भी वैज्ञानिक है ? अगर है तो कहाँ है हमारा विज्ञान जो अब तक इतनी तीव्र गति से चलने वाली अन्य किसी वस्तु का निर्माण नहीं कर सका। सच बात तो यह है की इतनी तीव्र गति से किसी वस्तु का चलना तभी संभव हो सकता है जब उस वस्तु का Mass शून्य हो। यानि की जिस वस्तु का द्रव्यमान Zero होगा वही प्रकाश की गति जैसा तेज़ चल सकता है। फिर हमारी पृथ्वी पर ऐसी कोई चीज या ब्रम्हाण्ड में अन्य कोई ऐसी वस्तु क्यों नहीं है जिसका द्रव्यमान शून्य हो और वह प्रकाश जैसा गतिशील हो। जिस वस्तु का द्रव्यमान होगा उसका भार भी होगा ऐसे में उसका प्रकाश की गति से चलना असंभव हो जाता है। तो क्या प्रकाश की गति भी वैज्ञानिक है ? ऐसा कैसे संभव है, असल में यह भी एक प्राकृतिक नियम है। Albert Einstein भी ईश्वर में विश्वास रखते थे, तभी उन्होनें Time Dilation को समझाया। उदाहरणार्थ हम ये मान लें कि हमारे पास एक ऐसी ट्रेन है जो प्रकाश की गति से चल सकती है यदि एक व्यक्ति उस ट्रेन में सवार हो जाए जो कि प्रकाश की गति से आगे दौड़ रही है तो उस व्यक्ति की गति भी प्रकाश जैसी ही तेज़ हो जाएगी। अब अगर उस ट्रेन में बैठा व्यक्ति ट्रेन के अंदर आगे दौड़ना शुरू कर दे, तो उस व्यक्ति की गति और प्रकाश की गति से आगे भागती हुई ट्रेन की गति आपस में मिल जाएगी, इस प्रकार वह अंदर दौड़ता हुआ व्यक्ति प्रकाश की गति को पार करता हुआ आगे निकल जायेगा। हां ऐसा ही होगा – ट्रेन की गति + व्यक्ति की गति = कुल गति (जो कि प्रकाश की गति से अधिक हो रही है)। है न चौंकाने वाली बात !! पर आप यह जान लें प्रकृति ऐसा कदापि नहीं होने देगी। यही तो प्रकृति का कमाल है की वो अपने बनाये नियम किसी को तोड़ने नहीं देती। Time Dilation Theory के अनुसार ट्रेन के अंदर दौड़े वाले व्यक्ति का समय धीमा हो जायेगा वह कभी भी प्रकाश की गति को पार नहीं कर पायेगा। है न अचम्भा, क्या ये अचम्भा भी वैज्ञानिक है ?? नहीं बिलकुल नहीं ये सिर्फ और सिर्फ प्राकृतिक है जो मानव के वश में नहीं।
“Albert Einstein की Time Dilation Theory यही बात समझाती है की यदि हम किसी तेज़ दौड़ती भागती वस्तु (कार, बस, जहाज, ट्रेन, रॉकेट) में सवार हो जाएं तो हमारा समय बाहर मौजूद किसी अन्य व्यक्ति के समय की तुलना में बेहद धीमा गुजरेगा।”
Time Dilation के सिद्धांत पर ही Time Travel की कल्पना का जन्म होता है। अर्थात भविष्य में आगे जाने की कल्पना तभी संभव है जब हमारे पास प्रकाश की गति से चलने वाली कोई मशीन या अन्य वस्तु हो। Speed of Light की रफ़्तार से दौड़ने वाला यान जिसदिन मनुष्य निर्मित कर लेगा उसदिन वो अपने भविष्य में सदियों आगे जा सकता है।
कितने अचंभे हैं इस ब्रम्हांड में ऊपर हमने देखे क्या वे सभी सिर्फ और सिर्फ वैज्ञानिक कारण ही हैं क्या या उनका कोई रचयिता है ? जिसने यह सारी व्यवस्था को रचा है।
मानव अपनी उत्पत्ति से लेकर अब तक Universe का एक कण मात्र भी नहीं जान पाया है और इसे जानने को लालाहित यह मूर्ख मानव प्रति वर्ष 2000 से ज्यादा उपग्रह अंतरिक्ष में भेजता है जिसकी वजह से Space Debris (मलबा) भी इतनी बढ़ गयी है की अगर उसे साफ़ न किया गया तो मानव का स्वयं भी Space में आना जाना भविष्य में संभव नहीं हो पायेगा।
इस चर्चा में मैंने जिन बातों का उल्लेख किया है वो तो अभी बहुत कम हैं विज्ञान और भगवान् की बात अभी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहेगी पर विजयी तो भगवान् को ही होना है क्योंकि उसी के घर के अंदर हमारा वास है। अतः अहंकारी न बनें जीवन कालजयी नहीं है इसे मानव सेवा, प्रकृति की रक्षा में लगाएं जिससे हमारी यह सुन्दर धरा सदैव यूँ ही सुन्दर बनी रहे।
लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा