कुमार विश्वास से इसलिए नाराज़ हैं अरविन्द केजरीवाल साहब
एक आन्दोलन हुआ था फिर एक पार्टी बनी जिसका नाम था “आम आदमी पार्टी” । पार्टी के मुखिया नियुक्त किये गये “अरविंद केजरीवाल” उन्होंने जब नई दिल्ली सीट से शीला के खिलाफ चुनाव लड़ने की ठानी लोगो ने कहा पागल है। अरविंद केजरीवाल जीत गये सरकार भी बन गयी और इस्तीफा भी हो गया। उनको लगा शीला हार गई तो मोदी भी हार जायेंगे इसलिए वो वाराणसी चले गये चुनाव लड़ने। पार्टी मे एक और इंसान थे “कुमार विश्वास” उनको भी लगा की जब अरविंद शीला को हरा सकते हैं और मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ सकते हैं तो मै भी “राहुल गाँधी” को हरा दूंगा और वो पहुँच गये अमेठी उत्तर प्रदेश में । कलह की शुरुआत यहीं से हुई, क्योंकि जब कुमार विश्वास को 2013 का दिल्ली चुनाव लड़ने को कहा गया तो उन्होंने मना कर दिया था। पार्टी दूसरे नंबर पर आई 28 सीटें लेकर, तो कुमार विश्वास को लगा कि 2014 वो निकाल लेंगे। जब नतीजे आये 2014 आम चुनाव के तो आम आदमी पार्टी के ज्यादातर उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गयी। अमेठी से कुमार भी हार गये, केजरीवाल “नरेंद्र मोदी” से हार कर दिल्ली वापस आये उन्होंने कुमार विश्वास से कहा जरुर होगा की आप दिल्ली का विधानसभा चुनाव लड़ें। कुमार विश्वास को लगा की अगर वो दिल्ली मे भी हार गये तो मामला गड़बड़ हो जायेगा।
उन्होंने सब कुछ किया लेकिन चुनाव नही लड़ा, नतीजे आये तो दिल्ली के साथ राज्यसभा की सीट भी तय हो गयी की जब भी खाली होगी आप के पाले में जाएगी क्योकि 70 में से 67 सीट मिली थी आप आदमी पार्टी को। कुमार नें जो सपना देखा अब टूट चूका है, अब समझ गये होंगे की क्यों कुमार को नही भेजा राज्यसभा। अगर आप उन्हें गलत समझ रहे हैं तो आप ये जान लीजिये की केजरीवाल चाहते थे की कुमार विश्वास वाराणसी मे उनका प्रचार करें लेकिन वो वहां नही गये। बाकी पूरी पार्टी अरविंद को जीताने में लगी रही, वो जीते नहीं इसलिए उनको लगा की कुमार की जरुरत है। कुमार विश्वास काम भी आये उनकी मेहनत और केजरीवाल के माफ़ी मागंने पर दिल्ली ने उन्हें माफ़ किया और सत्ता दे दी।
सत्ता मिलते ही अरविंद ने पार्टी मे धाक जमा ली और पंजाब का चुनाव बिना कुमार विश्वास के लड़ा और 22 सीटें जीत गये। पंजाब मे आई सीट ने बता दिया की कुमार के बिना भी हम जीत जायेंगे, ऐसा केजरीवाल को अभी तक लग रहा है। दूसरा, कुमार एक ऐसे इंसान थे पार्टी मे जो खुलकर अपनी बात रखते जो केजरीवाल को गलत लग रह था, क्योकि आज आलम ये है कि “न खाता न बही, जो अरविंद बोलें वही सही”, अंत मे यही की ताली एक हाथ से नहीं बजती दोनों हाथ मिलाने ही पड़ जातें हैं |
लेखक:
विभू राय