“बरेली की बर्फी” हिंदी फिल्म रिव्यू
कलाकार: राजकुमार राव , आयुष्मान खुराना , कृति सेनन
निर्देशक: अश्वनी अय्यर तिवारी
लेखक: नीतेश तिवारी, श्रेयस जैन
संगीत: तनिष्क बागची, अरको प्रावो मुखर्जी
टाइप: रोमेंटिक कॉमेडी
अवधि: 2 घंटा 03मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
दंगल फिल्म को लिखने और निर्देशित करने वाले लेखक और निर्देशक नीतेश तिवारी ने इस फिल्म को श्रेयस जैन के साथ मिलकर लिखा है। निर्देशन का जिम्मा नीतेश तिवारी की पत्नी अश्वनी अय्यर तिवारी ने उठाया है जिनकी पहली फिल्म “नील बट्टे सन्नटा” थी। आपको याद हो तो दंगल और नील बट्टे सन्नटा दोनों छोटे शहरों की कहानियां थीं इस बार भी दोनों ने मिलकर एक छोटे से शहर बरेली को चुना है जिसमें “बरेली की बर्फी” की पूरी कहानी को सेट किया गया है।
फिल्म की कहानी:
फिल्म की कहानी बिट्टी (कृति सेनन) के इर्द गिर्द घुमती है जो बरेली मे रह के भी एक दम मॉडर्न गर्ल की तरह है; जो ब्रेक डांस करती है और खूब मस्ती करती है। बिट्टी को दूल्हा भी ऐसा चाहिए जो बिलकुल उसकी तरह हो, दुल्हे की खोज-बीन के बीच मे बिट्टी ‘प्रीतम विद्रोही’ (राजकुमार राव) का लिखा उपन्यास बरेली की बर्फी पढ़ती है जो उसे बेहद पसंद आता है। बिट्टी को लगता है कि प्रीतम नें ये उपन्यास उसी के लिए लिखा है ; बस फिर क्या बिट्टी को प्यार हो जाता है प्रीतम से और वो प्रीतम को ढूढ़ने के लिए जा पहुचती है बरेली में एक प्रिटिंग प्रेस चलाने वाले ‘चिराग दुबे’ (आयुष्मान खुराना) के पास जो शुरू में तो बिट्टी की मदद करते हैं लेकिन उसके साथ रहकर वो भी बिट्टी के दीवाने हो जाते हैं। सीधे शब्दों मे चिराग दुबे हीरो से विलेन बन जाते हैं बिट्टी के प्यार में। अब बिट्टी का दूल्हा विद्रोही जी बनेंगे या दुबे जी ये पता करने के लिए आप सिनेमा हॉल का रास्ता पकड़ लीजिये।
कलाकारों का अभिनय:
राजकुमार राव ने पूरी शिद्दत से अपने किरदार को निभाया है जैसे वो हर बार निभाते हैं। बरेली की बर्फी में उनका साड़ी बेचने का अंदाज़ देख कर हर कोई भूल जाएगा की ये हीरो है या सच में कोई साड़ी बेचने वाला है। आयुष्मान खुराना बिलकुल देशी लगे हैं उनका किरदार ऐसा है की वो पूरे इलाके में भाई की चलती है लेकिन जब महबूबा सामने आती है तो उसे ये भी नहीं कह पाते हैं कि हमको तुमसे प्यार है। कृति भी जमी हैं अपने किरदार में और अश्वनी अय्यर तिवारी नें बाकी कलाकारों से भी बहुत ही उम्दा अभिनय करवाया है।
बरेली की बर्फी फिल्म रिव्यू:
फिल्म में सबसे जरुरी चीज़ होती है की वो बांध कर रख सके दर्शकों को और सिनेमा हॉल में दर्शको को बांधने के लिए रस्सी की नहीं एक उम्दा कहानी की जरुरत होती है जो बरेली की बर्फी में खूब है। नीतेश तिवारी और श्रेयस जैन नें मिलकर एक बहुत ही अच्छी कहानी लिखी है जिसमें सब है नाचना , गाना , हँसना और प्यार मोहब्बत, यानी की इस बर्फी में कई तरह के स्वाद हैं। अश्वनी अय्यर तिवारी नें भी दिखा दिया है की उनमें दम है की वो एक उम्दा कहानी को अच्छे से परदे पर उतार सकती हैं। कुल मिला के बरेली की बर्फी बहुत मीठी है इसमें बहुत सारी परते हैं जो एक-एक करके खुलती हैं तो दर्शक कभी लोट पोट हो जाते है हँसते-हँसते तो कभी रोमेंटिक हो उठते हैं। हाँ तो भाईयों, बहनों और मित्रों चले जाईए इस जायकेदार बरेली की बर्फी का स्वाद लेने मेरा मतलब की देखने।
5 में से बरेली की बर्फी को 3.5 तो मिलने ही चाहिए।