न्यूटन फिल्म रिव्यू – ऑस्कर जीत सकती है

कलाकार: राजकुमार राव,पंकज त्रिपाठी,रघुबीर यादव
निर्देशक: अमित मसुरकर
टाइप: कॉमेडी
अवधि: 1 घंटा 46 मिनट
सर्टिफिकेट: U/A
रेटिंग: 3.5 स्टार

इस साल राजकुमार राव की कई फिल्म रिलीज़ हो चुकी हैं, अभी जल्दी ही कुछ हफ्तों पहले आई बरेली की बर्फी को दर्शकों का प्यार मिला। बहन होगी तेरी भी भले ज्यादा न चली हो लेकिन अपनी लागत फिल्म ने वसूल कर ली थी; क्योंकि फिल्म का बजट ज्यादा नहीं था। राजकुमार अपनी हर फिल्म मे पिछली फिल्म से अच्छा करते हैं। तो आईए जानते हैं कि न्यूटन क्यों जीत सकती है ऑस्कर अवार्ड।

क्या है न्यूटन कहानी:

फिल्म की कहानी शुरू होती ही एक लड़के नूतन (राजकुमार राव) से जिसे उसके दोस्त ये कहकर छेड़ते है कि नूतन तो लड़कियों का नाम होता है। इसी वजह से 10वीं में नूतन अपना नाम न्यूटन रख लेता है। पढ़ाई पूरी होने के बाद न्यूटन की सरकारी नौकरी चुनाव आयोग मे लग जाती है। उसको जिम्मेदारी मिलती है छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित गावं जहां गिनती के बस 76 लोग हैं, वहां पर मतदान करवाने की। न्यूटन अपनी पूरी टीम के साथ EVM लेकर हेलीकाप्टर से उस गावं मे पहुचं जाता है। आर्मी के जिस बटैलियन को जिम्मेदारी सौपी गयी है सुरक्षित मतदान करवाने के लिए उस बटैलियन के हेड आत्माराम (पंकज त्रिपाठी) को ये सरकार की बेवकूफी लगती है। न्यूटन तो कर्म को पूजा समझता है और पूरे मन से लग जाता है, 76 लोगों की वोटिंग की तैयारियों के लिए। न्यूटन जो किताबी बातों पर चल रहा है वो नक्सलीयों से घिरे इस गावं मे वोटिंग की प्रक्रिया को पूरा कर पायेगा या नहीं ये पता करने के लिए आप फिल्म का टिकट कटा लो।

कैसा है अभिनय:

राजकुमार राव और पंकज त्रिपाठी का अभिनय सब जानते हैं लेकिन इस फिल्म मे जो सहयोगी कलाकार हैं उनमे ज्यादातर छत्तीसगढ़ के ही हैं जिनके चुनाव मे फिल्म के कास्टिंग डायरेक्टर ने बहुत मेहनत की है। जो परदे पर नज़र आती है और अच्छी के साथ सच्ची भी लगती है।

रिव्यू – फिल्म समीक्षा:

न्यूटन की खासियत ये है कि पूरी फिल्म वहीँ बनी है जहाँ फिल्म में दिखया गया है मतलब की छत्तीसगढ़ के जंगलों में। फिल्म की सधी हुयी लिखवाट आखिर तक आपको हिलने नही देती है। क्योंकि फिल्म न सुस्त पड़ती है ना तेज़ भागती है; सिर्फ न्यूटन के जीवन पर केंद्रित है तो चलती भी उसी रफ़्तार के साथ है। फिल्म में फालतू का बवंडर नहीं है, आप शुरू से ही न्यूटन से जुड़ जाते हैं और उसके बाद एक पल भी अलग नहीं हो पाते। ये फिल्म बताती है भारत जहाँ एक मिनट मोबाईल से नेटवर्क चला जाए तो लगता है सांसें चली गयी और इसी भारत मे कई ऐसी जगह है जहाँ नेटवर्क आता ही नही वहां टावर ही नही है; मतलब अपने देश में एक दुनिया और है जिसे न्यूटन आपके सामने रखने में सफल हुई है। ये फिल्म देख कर आपको लगेगा की बॉलीवुड मे आज भी अच्छा लिखने वाले हैं। ऑस्कर के लिए फिल्म जाएगी भारत की ओर से और फिल्म दम भी रखती है ऑस्कर अवार्ड जितने का।

तो फिर आप क्या सोच रहे हैं ? जाईये अपने पसंदीदा सिनेमा हॉल में ये जानने के लिए कि फिल्म न्यूटन की थ्योरी की सच्ची है।

 

 

लेखक:
विभू राय