श्री ‘कोरोना वायरस’ और सरकारी ‘लॉक डाउन’ के बीच फ़िलहाल मेरा समय बीत रहा है।सच कहूं तो लॉक डाउन मेरे जीवनशैली के अनुरूप है यानि मैं ज्यादा घुमक्कड़ प्रवृत्ति का नहीं हूँ। सामान्यतः मेरा मन बाहर कहीं तफ़रीश करने को करता ही नहीं, फिर वो चाहे शनिवार या रविवार की छुट्टी का दिन ही
हाय रे कोरोना उर्फ़ कोविड-19, ई चाइना वाले कब से असली माल बनावे लागे बे ! इनकर डुप्लीकेट अउर नकली माल का सेहत पर आज तक कउनो गलत प्रभाव नाय पड़ा, मगर जबसे “कोरोना” नाम का असली आइटम बनावा है, साला..तबे से सबकर सेहत डांवां-डोल होई गा है। देखो भईया ‘जि-पिंग’ आप असली समान
जैसा कि हम जानते हैं, ऑडियो बुक्स वर्तमान परिपेक्ष्य में कोई नया नाम नहीं है। इस समय आधुनिक भारत में लगभग हर व्यक्ति ऑडियो बुक्स से किसी न किसी रूप में परिचित है। खासकर युवा वर्ग के लिए यह एक नया ट्रेंड बनता जा रहा है। आजकल स्मार्टफोन हर व्यक्ति के लिए सुलभ हो
“सार लोगन अईसन गाना बजावतारन-लो की सुनतो लाज़ लागता“का जी पंडी जी, काहें खिसियात बानी रउआ ? अब ई-कुल नाया जमाना के गीत हउवे; बजावे दीं लइकन के। अरे…त, हम का माना करतानी !! बजावा लो, बिगारऽलो अपना बोली आ समाज के। भारत, नेपाल, मॉरीशस, सूरीनाम, गुयाना, त्रिनिदाद और टोबैगो में बोले जाने वाली
दोस्तों हम सभी जानते हैं की गूगल एक सर्च इंजन है। गूगल का कार्य है यूजर द्वारा पूछी गयी किसी क्वेरी का वाज़िब जवाब बतलाना। किन्तु क्या आप जानते हैं की गूगल सर्च इंजन में हमें किस प्रकार की क्वेरी को सर्च नहीं करना चाहिए ! मुझे मालूम है कि आप यह बात नहीं
भारत जैसे समृद्ध और विविधतापूर्ण देश में , जंहा घाट-घाट पर पानी बदले बीस कोस पर बानी जैसी कहावतें वास्तविकता हों , वंहा कलाओं एवं नाना प्रकार के शिल्प का होना कोई नयी बात नहीं । दरअसल ये विविधता ही हमारी विरासत है , चाहे वो भौगोलिक दृष्टि से , मौसम , भाषा , वेशभूषा , कला संस्कृति , रीतिरिवाज़ , खानपान से ही क्यों न
उन आँखों ने भी देखें होंगे कुछ ख्वाब, ख्वाब एक भरे पूरे परिवार का, बच्चों के प्यार और अपनेपन का, ख्वाब खुद के सम्मान का, जीवन के अंतिम पलों में तनाव रहित समय का । अपने पूरे जीवन को बच्चों की ख़ुशी के लिए समझौते का रूप दे देते हैं जो माता-पिता , क्या
भारत हमेशा से ही विविधता से समृद्ध रहा है। भले वो भौगोलिक परिदृश्य हो, मौसम हो, खान-पान, रहन-सेहन यँहा तक कि कला-संस्कृति भी इससे अछूती नहीं है। इस देश में मौलिकता भी विविधता से विभूषित है। इसलिये इस अद्भुत देश का कण-कण विशेषता की अपनी परिभाषा से अभिव्यक्त है। तभी तो हमारे देश में ये कहावत
विश्व में जब से सूचना-प्रौद्योगी क्रांति द्वारा सूचनायें सर्वसुलभ होने लगी है, तब से समाज में नवचेतना के साथ कई तरह की विसंगति भी देखने में आयी है। तकनीक ने जंहा एक ओर जीवन को नवीन जानकारी एवम संसाधन पूर्ण बनाया है, वंही सामाजिक बुराईयों को भी नये कलेवर के साथ पेश किया है।
ददरी मेला क्या है ? क्यों लगता है ? और कब लगता है जैसे प्रश्नों का जवाब देने से पूर्व कुछ ‘बलिया’ के बारे में भी जान लेते हैं। बलिया नाम सुनकर आप शायद यह जरूर सोचते होंगे कि ये नाम आखिर पड़ा कैसे ! जानकारी के लिए आपको बता दूँ कि राक्षस राज