निबंध – पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार, समस्या और समाधान
औद्योगीकरण के जंजाल में फँसकर आज का मानव खुद भी मशीन की तरह एक निर्जीव पुर्जा बनकर रह गया है। आधुनिकता की एक होड़ में मानव को पर्यावरण की शुद्धता का ध्यान ही नहीं रह गया और यही कारण है कि उसका जीवन समस्याओं से ग्रस्त होने लगा है। मानव इस सृष्टि की सबसे अद्भुत एवम् बुद्धिजीवी रचना है, उसे अच्छे से पता है की उसका जीवन इस प्रकृति और वातावरण की ही देन है। अगर वह इसके नियमों के साथ खिलवाड़ करता है तो उसका खामियाजा मानव को यकीनन एक दिन भुगतना पड़ेगा।
इस प्रकृति के साथ मजाक करना मानव जाती के लिए ही नहीं बल्कि समस्त सजीव प्रजातियों के लिए ही खतरनाक है और मानव को कोई हक नहीं बनता की अपने निजी स्वार्थ के लिए दूसरों का जीवन दाँव पर लगाये। प्रकृति के साथ किये जाने वाले छेड़छाड़ से ही उत्पन्न होता है पर्यावरण प्रदूषण। इस समस्या पर आजकल विश्व के सभी देशों का ध्यान केंद्रित है।
क्या है प्रदूषण का अर्थ ?
संतुलित वातावरण में ही जीवन का विकास सम्भव है। वातावरण में कुछ आवांछित तत्व मिलकर फैल जाते हैं और किसी न किसी रूप में वातावरण को हानी पहुँचाते हुए उसकी गुणवत्ता को कम करते हैं, प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ कर दूषित कर देते हैं। यह गन्दा वातावरण जीवधारियों के लिए अनेक प्रकार से हानिकारक होता है। ऐसे तत्व जो वातावरण में मिलकर इसके गुणों को नुकसान पहुँचाते हैं, इसे ही पर्यावरण प्रदूषण कहा जाता है।
कारखानों से निकलने वाला कचरा और धुँआ, लगातार बढ़ती हुई जनसँख्या, वाहनों की वृद्धि, कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में बढ़ोत्तरी, पेड़ों की कटाई, शहरीकरण, खेतों में उपयोग हुए उर्वक आदि सभी पर्यावरण प्रदूषित करने में अहम भूमिका निभाते हैं। धरती की ओजोन परत, जो सूर्य की हानिकारक किरणों से धरती का बचाव करती है, आज उसकी शक्ति धीरे-धीरे क्षीण होती जा रही है। ओजोन की क्षति से ही मानव को बढ़ते हुए तापमान और बर्फ पिघलने से होने वाली बाढ़ आदि जैसे संकटों से जूझना पड़ रहा है।
प्रदूषण के प्रकार:
आज के वातावरण में पर्यावरण प्रदूषण निम्नलिखित रूप में दिखाई देता है –
वायु प्रदूषण
जल प्रदूषण
ध्वनि प्रदूषण
रेडियोधर्मी प्रदूषण
भूमि प्रदूषण
प्रकाश प्रदूषण
वायु प्रदूषण:
वृक्षों के अत्याधिक कटाव के कारण वातावरण में आक्सीजन गैस का संतुलन बिगड़ रहा है। धरती पर जीवन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है ऑक्सीजन और जब वायु में ऑक्सीजन ही दूषित हो जायेगी तो मानव जाति और अन्य जीवों को साँस लेने में परेशानियाँ शुरू होंगी। जहां फैक्ट्री और कारखाने सबसे अधिक मात्रा में पाये जाते हैं वहाँ की वायु बहुत अधिक दूषित पाई जाती है। कोयला, तेल, धातुकणों तथा कारखानों की चिमनियों के धुएँ से निकलने वाली हवा के कारण हानिकारक गैस वातावरण में भर गई है जो कि प्राचीन इमारतों, वस्त्रों तथा मनुष्य के फेफड़ों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।
पेड़ों की कटाई वायु प्रदूषण का सबसे अहम कारण है क्योंकि यह पेड़ पौधे ही वातावरण में ऑक्सीजन को संतुलित रखने में सहायक होते हैं। इतनी बड़ी संख्या में यदि हम वृक्षों को नष्ट करते रहेंगे तो मानव के पास विनाश देखने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं रह जायेगा।
जल प्रदूषण:
जल को जीवन की संज्ञा दी गई है, अक्सर हम कहते हैं ‘जल ही जीवन है’। जल के आभाव में जीव-जन्तु, पेड़-पौधों का कोई भी अस्तित्व नहीं रह जायेगा।यह सब ज्ञात होते हुए भी बड़े-बड़े शहरों में गंदे नालों को पवित्र नदियों में मिला दिया जाता है।
मृत्यु लोक का सम्पूर्ण कलुष धोने वाली जीवन को अपनी रसधारा से संजीवनी दिलाने वाली गंगा नदी भी आज प्रदूषित होकर गंदे नालों का समूह बनती जा रही है। घरों में भी जो पानी पीने आदि के उपयोग में लाया जा रहा है वह अनेक रसायनों से युक्त एवम् प्रदूषित है। यह बहुत चिंता का विषय है, प्रदूषित जल के सेवन से पीलिया, हैजा आदि अनेक बिमारियों का खतरा लोगों के जीवन में बढ़ गया है।
ध्वनि प्रदूषण:
विज्ञान ने जैसे जैसे प्रगति की है उसके अनेक हानिकारक प्रभाव भी सामने आये हैं। ध्वनि प्रदूषण भी आज के समय की एक गंभीर समस्या है, जो की वैज्ञानिक प्रगति की देन है। मोटर, कार, जेट विमान, कारखानों के सायरन, लाउडस्पीकर आदि सब ध्वनि प्रदूषण के कारक हैं।
ध्वनि के संतुलन को बिगाड़ कर यह कारक ही ध्वनि प्रदूषण उत्पन्न करते हैं। इससे श्रवण शक्ति पर बुरा प्रभाव पड़ता है और कार्य शक्ति का भी हनन होता है। अत्यधिक ध्वनि प्रदूषण से मानसिक विकृति तक हो सकती है।
रेडियोधर्मी प्रदूषण:
आज के तकनीकी युग में वैज्ञानिक परीक्षणों का जोर है। परमाणु परीक्षण निरंतर ही होते रहते हैं; इनके विस्फोट से रेडियो धर्मी पदार्थ सम्पूर्ण वायुमंडल में फ़ैल जाते हैं जिससे अनेक प्रकार से जीवन को क्षति पहुचती है।
इसका एक उदाहर दूसरे विश्व युद्ध के समय ऐसे ही क्षतिग्रस्त हुए जापानी शहर हिरोशिमा और नागासाकी हैं जो की परमाणु विस्फोट के दुष्परिणाम से बच नहीं सके और वहां की लाखों जनसंख्या अपंग हो गई।
रासायनिक प्रदूषण:
कारखानों आदि में कार्य करते समय उपयोग में लाई जाने वाली गैस वातावरण में फ़ैलकर उसे प्रदूषित करती है। भोपाल त्रासदी को लोग आज तक नहीं भूल सके। इसके अलावा रोगनाशक , कीटनाशक आदि रसायनिक प्रदार्थों का वातावरण में फ़ैल जाना रासायनिक प्रदूषण को बढ़ावा देता है।
पर्यावरण समस्या का समाधान:
वातावरण को प्रदूषण से बचाने के लिए वृक्षारोपण सर्वश्रेष्ठ साधन है, साथ ही पेड़ों के काटे जाने पर भी रोक लगाने की जरूरत है। इसके अलावा कारखाने एवम् मशीनें लगवाने की अनुमति केवल उन्हें ही मिलनी चाहिए जो इसके धुएं और कचरे को बाहर निकलने की समुचित व्यवस्था कर सके। इसी प्रकार लाउडस्पीकरों के प्रयोग को सीमित किया जाना चाहिए। लोगो को जागरूक होना चाहिए की अकारण वाहनों के हॉर्न का प्रयोग न करें। तेज ध्वनि वाले वाहनों पर साइलेंसर आवश्यक रूप से लगाये जाएँ। विश्व संगठनों को चाहिए की वे परमाणु परीक्षणों को नियंत्रित करने की दशा में उचित कदम उठाएँ। नगरों के सीवर एवम् गंदे पानी के निकास के लिए कोई उचित हल निकाला जाय। इस गंदगी को नदियों में न मिलाया जाये, ऐसी कुछ जरूरी बातों को ध्यान में यदि रखकर उचित हल निकाला जायेगा तो पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर एक सीमा तक काबू जरूर पाया जा सकता है।
लेखिका:
शाम्भवी मिश्रा