जीवंत रिश्तों का क़ातिल – पोर्नोग्राफी
विश्व में जब से सूचना-प्रौद्योगी क्रांति द्वारा सूचनायें सर्वसुलभ होने लगी है, तब से समाज में नवचेतना के साथ कई तरह की विसंगति भी देखने में आयी है। तकनीक ने जंहा एक ओर जीवन को नवीन जानकारी एवम संसाधन पूर्ण बनाया है, वंही सामाजिक बुराईयों को भी नये कलेवर के साथ पेश किया है। ऐसी ही एक बुराई जो आज बहुत व्यापकता के साथ समाज में पैर पसार रही है, वो है ‘पोर्नोग्रापफी’ – अश्लील फिल्म एवम साहित्य। इसके चपेट में न केवल युवा और प्रौढ़ हैं, बल्कि ये भारत के भविष्य याने बच्चों को भी अपना शिकार बना रही है।
टूटते घर , सिसकते रिश्ते और बढ़ते अपराध आज इसकी देन में शामिल हैं। हालाँकि इस स्तिथी को बेहतर तरीके से समझने के लिये उपन्यास और फिल्म ‘फिफ्टी शेड्स ऑफ़ ग्रे’ देखना होगा। पर इसके बाद भी एक जिम्मेदार समाज होने के नाते हमें कुछ मुद्दों पर गंभीरता एवम स्पष्टता से सोचना होगा। भारतीय समाज एक मर्यादित समाज है, जिसकी नींव प्रेम और विश्वास पर टिकी है। इस समाज का मूल संस्कार मर्यादा है, साथ ही इसकी सारी व्यवस्थायें इसी आधार पर व्यावहारिक हैं। पर बदलते समय के साथ और तक्नीक के बढ़ते प्रभाव में कई वर्जनायें टूटी, इसमें से एक अतरंग विषय ‘यौन-व्यवहार’ भी था।
हालाँकि ये विषय बेहद निजी होने के कारण मुश्किल से चर्चा में आ पता था। पर अस्तित्व के लिये महत्वपूर्ण एवम गोपनीय होने से इसके प्रति स्वाभाविक जिज्ञासा बनी रहती थी। इन जिज्ञासाओं का युवा मन को संतोषजनक उत्तर न मिलने के कारण नीम-हकिम खतराये जान जैसी संस्थानों ने अच्छी चांदी काटी। इन्हें समाज की नब्ज़ समझते देर न लगी और बढ़ती तादात ने इसे बाजार बना दिया। सच्चाई ये है के बेडरूम की बंद दीवारों के अंदर हो रहे व्यवहार निरंकुश होते चले गये। प्रेम अब वासना का खेल बन चूका था, अब इन्सान को जानवर बनाती ‘पोर्न’ दुनियां का दबदबा रिश्तों का गाला घोंट रहा था। कुछ ही क्लिक्स पर तकनीक के जरिये लगभग तत्काल और आसानी से उपलब्ध अश्लीलता व्यवहार का हिस्सा बनने लगी, जिसपर न कोई उम्र की सीमा है न ही सोच का कोई बंधन है।
नई-नई तकनीक एवं गैजेट के साथ ही लचर सरकारी व्यवस्थाओं नें इस समस्या पर आग में घी का काम किया है। अश्लील फिल्म एवम साहित्य सामग्रियों पर अपर्याप्त नियंत्रण ने इसे एक महामारी का रूप दिया, जिसके कारण आज कई जिंदगीयाँ बर्बाद हुई और कई नरक यातना को भोग रही हैं। स्त्री को सेक्स की गुड़िया बनाकर भोगने वाली इस सोच ने इंसानियत को शर्मसार किया है इससे यौन अपराधों में बाढ़ सी आ गयी।
बिलखती गृहस्ती, उजड़े घर, कुचले स्वाभिमान और बढ़ते यौन शोषण के बीच भी उम्मीद की रौशनी के लिये हांफता समाज आज उन संस्थानों की ओर देख रहा है जिनके परामर्श से इस ज़ख्म को भरा जाये। आहिस्ते ही सही पर समाज में विसंगतियों के समाधान के प्रति दृढ़ इच्छा जागी है और कुछ मामलों में सकारात्मक पहल से राहत भी मिली है। जैसा की इस मामले में हुआ, डरी-सहमी एक नवविवाहिता ने काउंसलर को अपनी आप बीती सुनाई की पोर्न के नशे का आदि उसका पति उससे जानवरों से भी बदतर बर्ताव पर उतर आया है, जिससे उसके स्वाभिमान पर गहरी चोट लगी है और इस नरक से निकले ने के लिये उसे उचित परामर्श चाहिये। विषय की गंभीरता को समझते हुये परामर्श केंद्र ने दोनों युगलो की कॉउंसलिंग ली और कई दिनों के सुझाव, परामर्श और निगरानी के बाद अंततः समस्या का समाधान हुआ। इस तरह एक परिवार टूटने से बच गया।
दरसल समस्या ये है की इस लत को ठीक तरह से समझा जाये, पोर्न के नशे का आदी व्यक्ति फंतासी की दुनिया में ही रहने लगता है। उसके लिये प्रेम और भावनाये कोई मायने नहीं रखती। जानवर बन चुके ऐसे व्यक्ति को वासना के पाश्विक खेल की लत तो है, पर इसके पूर्ण होने पर संतुष्टि नहीं। अवसादग्रस्त और आक्रोशित ऐसा व्यक्ति आपे से बहार होने लगता है और यहीं से ये स्थिति बद से बदतर होती चली जाती है। अतेव सभी से आग्रह है की अगर आपके साथ या आपके आसपास ऐसी कोई स्थिति में दिखे तो तुरंत चिकित्सकीय परामर्श लें और दिलायें। विशेषज्ञों की राय से स्वयं को एवं दूसरे के परिवार को बचायें। सही समय पर सही निर्णय लें और अपना जीवन बचाने के साथ साथ अन्य लोगों को भी इस नारकीय जीवन से निकालने का प्रयत्न करें।
लेखिका:
अनामिका चक्रवर्ती