पैरों का राजसी आभुषण – रजवाड़ी मोजड़ी
भारत जैसे समृद्ध और विविधतापूर्ण देश में , जंहा घाट-घाट पर पानी बदले बीस कोस पर बानी जैसी कहावतें वास्तविकता हों , वंहा कलाओं एवं नाना प्रकार के शिल्प का होना कोई नयी बात नहीं । दरअसल ये विविधता ही हमारी विरासत है , चाहे वो भौगोलिक दृष्टि से , मौसम , भाषा , वेशभूषा , कला संस्कृति , रीतिरिवाज़ , खानपान से ही क्यों न हों ।
हम सब भारतीय भाग्यशाली हैं कि , विविधता ही हमारी विशेषता है और कलात्मकता हमारा दृष्टिकोण । इस विलक्षण गुण ने हम भारतियों को विशिष्ठ और समृद्ध बनाया है । हमारी सौंदर्यबोध से युक्त दृष्टि और अपनी आवश्यकताओं के अनुरूप वस्तु निर्माण की सोच परिणाम बन विविध-आयुध में परिवर्तीत हो लोकजीवन में स्थान पाती हैं । देश के प्रत्येक राज्य की लोककलाओं , वस्तु-शिल्प , कला-कौशल में ये सिद्धांत झलकता है । ऐसी ही एक पारंपरिक कला है , हस्तनिर्मित चमड़े के जूतों की । यूँ तो भारत भर में अलग-अलग क्षेत्रो में जूतें बनाये जाते हैं , जैसे महाराष्ट्र की “सोलह्पुरी चपले”, उत्तर प्रदेश की “लखनवी पेरोनी” , “बरेली के पायबंद”, पर राजस्थान की “राजवाडी- मोजड़ी” की बात ही अलग है ।
इतिहास बताता है की मोजड़ी (Mojari Shoes) का निर्माण मुख्य रूप से युद्ध में जाने वाले राजपूत लड़ाकों के लिये किया गया था । बेरहम रेगिस्तान , अंगारों सी रेत, गर्मी और ज़ालिम दुश्मनों के बीच लगातार हुए युद्धों ने सैनिको की जीवनशैली और दैनिक उपयोग की वस्तुओं में अमुलचाल परिवर्तन किये ।
विपरीत मौसमी परिवर्तनों , गर्मी और अंगारों सी रेत में पैरों को आराम देने के साथ घोड़े की जीन पर मजबूत पक्कड़ देती मोजड़ी युद्ध के दिनों की सहायक रही है । इससे सैनिकों को पैरों में आराम के साथ , युद्ध स्थल पर पैर टिकाये रखने की मजबूती मिली , इसलिये मोजड़ी राजपूतों की शान बनकर सहजी जाने लगीं ।
इस तरह मोजड़ी जूते (Mojari Shoes) बनाने की कला आम जन-जीवन का हिस्सा बनीं और वजूद में आई पशु-चर्म पर खुबसूरत नकाशीदार हस्तनिर्मित चमड़े की “रजवाडी मोजडी” । जो अपनी “चौंचनुमा आकार” और चमड़े पर “कोड़ी” ,“मोती”, “सीप”, “कांच”, “ऊन के फुन्दे”, “रंगबिरंगे सूत के धागों” से की गई कशीदाकारी के लिये अपने आप में एक जीवंत कलाकृति है ।
विभिन्न रूप रंग आकर में पाई जाने वाली खुबसूरत “रजवाडी मोजडी (Rajwadi Mojari)” 300 रुपये से लेकर 30,000 रुपये तक की विशालतम रेंज में बाजारों में उपलब्ध है । राजा–रजवाड़ों के पैरों को पहचान देने वाली “रजवाडी मोजड़ी” अपनी खुबसूरत नकाशीदार कारीगरी और सभी रंगों में उपलब्धता के कारण युवाओं और पर्यटकों की पहली पसंद बन गयी हैं ।
मोजड़ी किस पर फबेंगी ?
आप अपनी ड्रेस के रंग से मेल खाती मोजड़ियां खरीदकर स्वयं को फैशनेबल (Trendy) लुक दे सकते हैं । महिलायें और पुरुषों दोनों के लिये अलग अलग तरह की मोजड़ियां (जूते जुत्तियाँ) उपलब्ध है , जो सभी ड्रेस पर काफी जंचती हैं ।
- जींस-शर्ट के साथ सफेद , क्रीम , आसमानी , ब्राउन मोजड़ी अच्छी लगती है ।
- शेरवानी , जोधपुरी , धोती–कुर्ता के साथ हलके और गहरे रंग की मोजड़ी को अवसर अनुसार पेहेनें ।
- साड़ी, कुर्ती-सूट, लेहेंगा में नकाशीदार कढाईवाली मोजडि़याँ महिलाओं और लड़कियों पर बहुत खुबसूरत लगती हैं ।
- इंडो वेस्टर्न ड्रेसेस (Indo western dresses) पर ऊन के फुन्दे , काँच , कोड़ी वाली मोजड़ियां फबती हैं ।
कुछ ज़रूरी बातें:
1. मोजड़ी खरीदते समय यह अवश्य देखें कि वे आपके पैरों में ज्यादा कसी न हों । थोड़ी ढीली मोजड़ी खरीदना ही अच्छा रहता है ।
2. कुछ दिन मोजड़ी पहनने के बाद अक्सर पैरों में छाले हो जाते हैं । अत: मोजड़ी में चुभने या काटने वाली जगह पर कुछ दिनों तक मोम घिसें या फिर तेल लगाएँ ।
3. अगर मोजड़ी ज्यादा मैली या गन्दी हो जाये तो उसे नमक मिले पानी में धोकर तुरंत धूप में सुखा दें, यह सालों तक साल चलेंगी ।
लेखिका:
अनामिका चक्रवर्ती