रामनाथ कोविंद – कानपुर से राष्ट्रपति उम्मीदवार बनने तक का दिलचस्प सफ़र
रामनाथ कोविंद जिनको वर्तमान एनडीए सरकार नें अपना राष्ट्रपति उम्मीदवार घोषित किया है, जो दलित वर्ग से आते हैं। मायावती भी रामनाथ कोविंद को अपना समर्थन देंगी अगर विपक्ष का उम्मीदवार इनसे काबिल ना हुआ तो। लेकिन रामनाथ कोविंद की पहचान और भी है इसके आलवा की वो दलित वर्ग से आते हैं, ये बात भविष्य के गर्भ मे है कि बाकि पार्टियों का ऊँट किस करवट बैठेगा लेकिन रामनाथ कोविंद देश के पहले नागरिक बनेगे ये लगभग तय नज़र आ रहा है।
रामनाथ कोविंद जो वर्तमान मे बिहार के राज्यपाल हैं । आपको याद हो तो इनका नाम चर्चा मे तब आया जब लालू के लाल तेज़ प्रताप यादव नें शपथ लेते वक़्त अपेक्षित को उपेक्षित पढ़ा और उन्होंने उनको टोका, कहा की दोबारा पढ़िए और वो केवल शब्द ही नहीं बल्कि पूरा शपथ दोबारा पढ़िए। उनका यही अंदाज़ शायद मोदी जी को भा गया तभी तो जिसे 2014 मे लोकसभा का टिकट नही मिला आज वो अचानक राष्टपति का उम्मीदवार चुना गया है।
रामनाथ कोविंद का जन्म 1 अक्टूबर 1945 को वर्तमान में कानपुर देहात कहे जाने वाले जिले की “डेरापुर तहसील” के गावं “परौख” मे हुआ था। रामनाथ कोविंद कोरी (कोली जाति भी कहा जाता है ) जाती से आते हैं जो कि उत्तर प्रदेश में अनसुचित जनजाति के अंतर्गत आती है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी नें जिस विश्वविद्यालय डी.ए.वी से अपनी डिग्री पूरी की थी, रामनाथ कोविंद नें भी उसी विश्वविद्यालय डी.ए.वी से वकालत की डिग्री पूरी की और दिल्ली आकर प्रैक्टिस करने लग गए। उसी दौरान इमरजेंसी का दौर आया और इसी दौर में ये “जनता दल” के नेताओं से प्रभावित हुए और उनके साथ राजनीति से जुड़ गए । जब “जनता दल” की सरकार बनी, जिसके प्रधानमंत्री बने “मोरारजी देसाई” तो कोविंद को मोरारजी देसाई का एक निजी सचिव नियुक्त किया गया। एक जानकारी के अनुसार रामनाथ कोविंद को लोक सेवा आयोग (सिविल सर्विसेस) के पेपर में 2 बार सफलता नहीं मिली लेकिन तीसरे प्रयास में वो सफल हुए पर सिविल की जो मुख्य नियुक्तीयाँ होती हैं जैसे – कि जिला अधिकारी या पुलिस विभाग में आई.पी.एस इनमे वो अपना स्थान ना बना सके। जो विभाग उनको मिला उस विभाग से जुड़ने से अच्छा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस करना समझा और सरकार से नजदीकी का फायदा रामनाथ कोविंद को ये हुआ कि वो कई बार सरकारी वकील बने । रामनाथ कोविंद नें अपना पहला लोकसभा का चुनाव सन 1991 कानपुर में “घाटमपुर” की सुरक्षित सीट से लड़ा सुरक्षित इसलिए की तब राम मंदिर की लहर थी और कानपुर राम मंदिर आन्दोलन का एक गढ़ था और तो और कोविंद आते भी कानपुर से ही थे , सबको लग रहा था की वो जीत जायेंगे लेकिन वो हार गये।
अटल बिहारी वाजपेयी और दल के बाकि नेताओ से रामनाथ कोविंद की नजदीक ज्यादा थी क्योंकि वो काफी समय से दिल्ली मे ही रह रहे थे । नजदीकी का सिला रामनाथ कोविंद को सन 1993 मे ये मिला कि उत्तर प्रदेश से उनको राज्यसभा के लिए भेज दिया गया। वो लगातार दो बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं । 2007 जब मायावती के नाम की लहर पूरे उत्तरप्रदेश मे चल रही थी तब रामनाथ कोविंद नें कमल के निशान पर कानपूर देहात की ही एक सुरक्षित सीट “भोगनीपुर” से विधानसभा का चुनाव लड़ा और तीसरे स्थान पर आये। 2014 में उन्होंने लोकसभा के टिकट के लिए फिर आवदेन किया लेकिन अमित शाह नें कहा की हम नहीं इस बार टिकट किसको मिलेगा ये कार्यकर्ता तय करेंगे । कुल मिला के ये कि रामनाथ कोविंद को टिकट नहीं दिया गया। अगर टिकट मिलता तो शायद एक चुनाव तो जीत ही जाते रामनाथ कोविंद, पर वो कहते हैं ना कि जब हमको मन मुताबिक फल ना मिले तो निराश नहीं होना चाहिए क्योकि भगवान सबको देता है बस जरुरत है तो इतनी कि जो भी काम मिले उसे पूरी सिद्दत के साथ करते चलें जैसा रामनाथ कोविंद ने किया और उनको उनकी उम्मीद से बड़ा मुकाम हासिल हुआ।