स्मार्टफोन की दुनियां के बाहर भी एक दुनियां है

ना जाने हम यह क्यों भूल जाते हैं कि हमारी दुनियां बेहद बड़ी है। यहाँ तमाम रिश्ते, बातें, फसाने, अफसाने, हमदर्द, हमराही और हमसफर भी हैं। फिर भी हम हमारी दुनिया को छोड़कर वर्चुअल दुनियां में जीने के लिए इतने विवश हो चुके हैं कि हमें यह भी याद नहीं कि हमारी असल दुनियां कितनी जरूरी है। यहाँ वर्चुअल दुनियां से तात्पर्य है स्मार्टफोन की दुनियां वह दुनियां जिसने हमें एक कैद में डाल दिया है। हम इस दुनियां से बाहर आने की जद्दोजहद तो छोड़िए इच्छा भी नहीं रखते। ना जाने इन बेमतलब और बेगैरत एहसासों से हमें क्या मिलता है। यदि आप भी इस दुनिया का हिस्सा हैं तो मेरी इन बातों से जरूर इत्तेफाक रखते होंगे। चलिए अब ज़रा इमानदारी से इस बात का विश्लेषण किया जाए, बताइए ऐसा कब हुआ जब एक पूरे दिन आपने अपने स्मार्टफोन अथवा सोशल मीडिया का प्रयोग ना किया हो ? या अपने स्मार्टफोन को हाथ में ना उठाया हो, हाँ कुछ बुद्धिजीवी यहाँ पर यह टिप्पणी अवश्य कर सकते हैं कि वह व्यस्त हैं और उनका सारा काम इस स्मार्टफोन पर ही तो टिका हुआ है। लेकिन यह कौन तय करेगा कि इन स्मार्टफोंस का इस्तेमाल किस हद तक और किस स्थिति में करना चाहिए।

स्मार्टफोन की दुनियां के बाहर भी एक दुनियां है


क्या आपको याद है कि वह आखिरी वक्त कब था जब आप सुकून से बैठकर अपने माता-पिता, अपने परिवार वालों से दिल खोल कर बातें की। जब आपको कहीं जाने की जल्दी नहीं थी। जब आप को इस बात की फिक्र नहीं थी की बाहर की दुनियां में कहाँ क्या चल रहा है। इंस्टाग्राम पर कौन लाइव आया है, ट्विटर पर किसका पोस्ट ट्रेंडिंग है , फेसबुक पर किसने आपकी पिक्चर लाइक की है, व्हाट्सअप पर किसका टेक्स्ट आया है । ना जाने क्यों हमें इस बात का अंदाज़ा नहीं होता कि हम इन बेबुनियाद खुशियों के लिए अपनी जिंदगी की कितनी सारी खुशियों से भरे पलों को ठुकरा रहे हैं। हमें एहसास क्यों नहीं होता कि हम अपनी वास्तविक दुनियां से दूर होते जा रहे हैं । अपने लोगों के लिए हमारे पास मुकम्मल वक्त नहीं लेकिन स्मार्टफोन के लिए तो हमारे पास वक्त ही वक्त है। जबकि हम सब यह बहुत बेहतर तरीके से जानते हैं कि यदि कभी हमारे ऊपर समस्याओं का पहाड़ टूटा तो हमारे अपने और हमारे परिजन ही हमारी मदद के लिए आगे आते हैं। वही हमें जिंदगी के हर बुरे मुकाम पर संभालते हैं, वही हमारी सारी खुशियों को तहेदिल से स्वीकार करते हैं और हमारी खामियों से आगे निकल कर हमें कामयाब होने का हौसला देते हैं।

तो अब फैसला सिर्फ आपका ही है कि आप अपनी दुनियां को असलियत में जीना चाहते हैं या इस नकली दुनिया के चक्कर में सारी खुशियों को आधारहीन कर देना चाहते हैं। एक दिन तो यह बात आज़मा कर देखिए अपने स्मार्टफोन को दूर किसी कोने में रख दीजिए। जाइए उठिए अपने लोगों से बात कीजिये, अपनी भावनाओं को बोलकर व्यक्त कीजिये; उनकी आँखों में देखिए और उसके साक्षी बनिए शायद उन्हें आप की बेहद जरूरत हो।

यह ज़िन्दगी आपकी है ना की आपके स्मार्टफोन की ।

लेखिका:
वैदेही शर्मा