रह गया केवल “महागठ” बंधन तो बीजेपी जुड़ा
26 जुलाई 2017 का दिन बिहार की राजनीति में हमेशा याद किया जायेगा वजह है मुख्य्मंत्री नीतीश कुमार का इस्तीफा और महागठबंधन की टूट । वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार में Congress, RJD और JDU की हुई करारी हार के बाद महागठबंधन बनाया गया जिसमें कांग्रेस , राष्ट्रीय जनतादल और जनतादल यूनाइटेड जैसी राजनीतिक पार्टियां शामिल हुयीं। शुरुआत में तो समाजवादी पार्टी भी महागठबंधन का हिस्सा बनने को राजी थी मगर कुछ ही समय के बाद SP नें महागठबंधन का हिस्सा बनने से इंकार कर दिया। 2014 लोकसभा के परिणामों को ध्यान में रखकर महागठबंधन की नींव रखी गयी ताकि BJP जैसी सशक्त राजनीतिक दल का मजबूती से सामना किया जा सके। अंततः वो तारीख आ ही गयी बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों की , वर्ष 2015 बिहार विधानसभा का चुनाव आन बान शान की बात बन गयी थी। एक तरफ बीजेपी के ऊपर यह दबाव था कि वो लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को दोहराये वहीँ नितीश का राजनीतिक भविष्य भी हाशिये पर था। वर्चस्व की उस जबरदस्त लड़ाई में अगर किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता था तो वो थी कांग्रेस। RJD के लिए भी कुछ खोने को न था उसे तो कुछ हासिल ही होना था पर अगर कोई खासा चिंतित था तो वे थे नितीश; जहाँ तक भाजपा की बात की जाय तो MODI का नाम दांव पर लगा था। बिहार विधानसभा 2015 का वह चुनाव महाभारत के युद्ध के समान प्रतीत हो रहा था।
आखिरकार नतीजे आ ही गए बिहार विधानसभा 2015 के चुनाव का और विकास पुरुष के नाम से विख्यात नितीश कुमार एक बार फिर बिहार मुख्यमंत्री पद पर काबिज होने को अग्रसर थे। Congress, RJD और JDU के लिए इस महाभारत युद्ध जैसे चुनाव को जीतना सच में एक बड़ी उपलब्धि थी वहीँ BJP के लिए यह चुनाव शर्मशार कर देने वाला रहा। सुशासन बाबू पाँचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री चुने गए और उपमुख्यमंत्री बने लालू के छोटे बेटे तेजस्वी यादव ।
महागठबंधन का यह सफर 8 नवंबर 2015 से चलकर 26 जुलाई 2017 तक आते आते रुक गया। कुल 20 महीने ही हुए थे Congress, RJD और JDU के Alliance को जिसका नाम Mahagathbandhan था। नितीश कुमार द्वार दिया गया अचानक इस्तीफा महा – गठ – बंधन को अगल कर चुका था अब वो सिर्फ “महागठ” बनकर ही रह गया और “बंधन” शब्द बीजेपी से जुड़ गया। 27 जुलाई 2017 की सुबह 10:30 पर नितीश कुमार नें छठवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली , इसबार उपमुख्यमंत्री बने सुशील मोदी।
महज 20 महीनों में ही नितीश कुमार का महागठबंधन से मोह क्यों भंग हो गया ? आखिर क्या बात हुई की वे पुनः बीजेपी से जा मिले ? ऐसे अनगिनत सवाल मन में हैं सबके पर इसका माकूल जवाब या तो नितीश जी के पास है या फिर अमित शाह और नरेंद्र मोदी के पास। राजनीति में जनता सिर्फ दर्शक मात्र है और नेतागण कलाकार जो नित नए रूप वेश और संवाद के माध्यम से हमारा मनोरंजन करते हैं या थोड़ा कठोर भाषा में कहें तो हमें मूर्ख बनाते हैं।
मन में उपजे कुछ अहम् सवाल:
- महागठबंधन को तोड़ने का काम क्या बीजेपी नें किया ?
- बीजेपी से दूरी बनाने वाले नितीश आखिर क्यों बीजेपी से जा मिले ?
- क्या लालू परिवार जिम्मेदार है टूट का ?
- कहीं यह लालू नितीश का वैचारिक टकराव का नतीजा तो नहीं ?
- मुख्यमंत्री 66 और उपमुख्यमंत्री 28, ईगो की बात तो नहीं आयी ?
- RJD और JDU की असमानता का नतीजा है शायद ?
- पुरानी रंजिश जो दोस्ती में दब्दील न हो सकी ?
- बीजेपी द्वारा दिया गया लालच ?
- क्या नितीश कुमार को भी बीजेपी खरीद सकती है ?
- विशेष राज्य का दर्जा क्या इसपर बनी बात ?
अनगिनत सवाल लोगों के मुँह से निकल रहे हैं पर उचित जवाब साधारण जनता के पास भला कहाँ मिले।
ऊपरी तौर से अगर पूरे घटनाक्रम पर ध्यान दें तो कोई बड़ी वहज या कारण समझ नहीं आता महागठबंधन के टूट का यह केवल मन की बात है नितीश का बीजेपी में जाना। जहाँ तक अंदरूनी मामला है वो फ़िलहाल किसी को पता नहीं बस समय का इंतजार करिये शायद कुछ गुत्थियां उजागर हों। विधानसभा सदन में तेजस्वी यादव और नितीश कुमार के बीच शब्दों के द्वारा एकदूसरे पर प्रहार किया गया।
किसने क्या कहा बिहार विधानसभा सदन में:
- अगर भ्रष्टाचार ही मुख्य मुद्दा है महागठबंधन तोड़ने का तो क्या भाजपा भ्रष्टाचारी नहीं – तेजस्वी यादव
- जो अनुच्छेद जो धाराएं मेरे ऊपर लगीं हैं वही सुशील मोदी पर भी हैं फिर उनके साथ आप क्यों – तेजस्वी यादव
- क्यों कह रहे थे आप कि संध मुक्त भारत बनाएंगे – तेजस्वी यादव
- तेजस्वी तो केवल एक बहाना था आपको भाजपा की गोद में जाना था – तेजस्वी यादव
- जब जनता नें महागठबंधन को चुना तो यह पूरे पांच साल चलना चाहिए था – तेजस्वी यादव
- मैं एक एक सवाल और आरोप का जवाब दूँगा लेकिन समय आने पर – नितीश कुमार
- बिहार की जनता नें बहुमत राज्य की सेवा के लिए दिया था किसी एक परिवार के लिए नहीं – नितीश कुमार
- हमनें पूरा प्रयास किया एक तिहाय समय हमने सरकार चलाया पर अब मेरे लिए असंभव हो गया था – नितीश कुमार
- मैंने वही फ़ैसला लिया जो बिहार के हित में था राज्य के विकास हित में था – नितीश कुमार
- सेक्युलरिज्म विचार की बात है न की पाप पर पर्दा डालने के लिए – नितीश कुमार
सदन में हुए वाद-विवाद पर गौर करें तो वहां तेजस्वी यादव नितीश पर थोड़ा भारी नजर आये और अपने पूरे भाषण में तेजस्वी एक मझे हुए राजनीतिज्ञ की तरह बोलते नजर आ रहे थे। पर जिस प्रकार नितीश अपनी बातें कह रहे थे उससे यह साफ़ झलक रहा था कि वे RJD के साथ मिलकर सरकार चलाने में शायद काफी कठिनाइयां व् दबाव महसूस कर रहे थे। नितीश कुमार के अधूरे जवाब को देखते`हुए बेशक उनपर विश्वासघात का आरोप लगाया जा सकता है पर यह जरूर ध्यान रखना होगा कि वो नितीश कुमार ही हैं जिन्होंने बिहार की बदहाल व्यवस्था को विकास के मार्ग पर ला खड़ा किया है; आज अगर बिहार में कुछ अच्छा हुआ है तो वह नितीश कुमार की बदौलत ही है।
आगे किसपर क्या असर होगा:
कांग्रेस:
पूरे देश में अगर कोई राजनीतिक पार्टी की शाख दांव पर है तो वह है Congress जिसका देश में जन आधार प्रतिदिन गिरता जा रहा है। महागठबंधन में अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदा पहुंचा तो वो कांग्रेस ही है। यूँ अचानक महागठबंधन का टूट जाना कांग्रेस के लिए बिहार में 2019 की जमीन कमजोर करेगा।
राष्ट्रीय जनता दल:
महागठबंधन नें RJD की टूटती हुई साँस को संजीवनी देने का कार्य किया। आलम ये रहा कि 2015 बिहार विधानसभा चुनाव में लालू की पार्टी आरजेडी नें जदयू से भी बेहतर प्रदर्शन किया। लालू जिनका राजनीतिक करियर ख़त्म माना जा रहा था वे पुनः उठ खड़े हुए । “डूबते को तिनके का सहारा” ये मुहावरा RJD पर सटीक बैठता है। महागठबंधन में सबसे बड़ी पार्टी उभरने के बाद लालू नितीश से अब अपनी हर बात मनवाने की सोच चुके थे। अपने दोनों बेटों के लिए कोई बड़ा पद लेने का वे पूरा मन बना चुके थे। तेजस्वी यादव बने उपमुख्यमंत्री और तेजप्रताप यादव बने स्वास्थ मंत्री। गौर करने वाली बात है कि महागठबंधन की टूट लालू को भविष्य में थोड़ा फायदा ही पहुंचायेगी खासकर ‘यादव और मुस्लिम समाज’ में उनकी पकड़ पहले से ज्यादा मजबूत बनेगी। फिलहाल केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) तेजस्वी यादव से उनकी बेनामी संपति को लेकर पूछताछ कर रही है ; देखना होगा की तेजस्वी अपने ऊपर लगे आरोपों का सामना कैसे करते हैं क्या वे दोषी करार दिए जायेंगे ? यह तो अब अदालत ही तय करेगी। पर अगर वे दोषी पाए जाते हैं तो उनका राजनितिक करियर बनने से पहले ही बिगड़ जायेगा जिसका फायदा नितीश को होगा।
जनतादल यूनाइटेड:
यह पार्टी केवल नितीश के नाम और काम से ही जानी जाती है JDU का सीधा मतलब नितीश कुमार। बीजेपी का 17 साल पुराना साथ छोड़ कांग्रेस दल का हिस्सा बनना और पुनः कांग्रेस का साथ छोड़ बीजेपी में घर वापसी करना। यह कृत्य थोड़ा नितीश की विश्वसनीयता को गिराता है पर राजनीति के दृष्टिकोण से अब ये आम बात है। बीजेपी से अलग होकर लोकसाभा चुनाव 2014 में करारी हार झेलने वाले नितीश, बिहार विधानसभा 2015 के चुनाव से पहले अपने एतिहासिक प्रतिद्वंदी रहे लालू यादव की पार्टी RJD से जा मिले इसमें Congress भी उनके साथ रही और फिर आधारशिला रखी गई “महागठबंधन” की। महागठबंधन का जादू कुछ ऐसा चला की जीत का दम भरने वाली बीजेपी चारों खाने चित नजर आई। बीजेपी को मूंकी खाने को मजबूर करने वाले इस महागठबंधन की उम्र ज्यादा लंबी ना हो सकी; आखिर इसने 20 महीने में ही दम तोड़ दिया। महागठबंधन को अलविदा कहने वाले नितीश कुमार आखिर भाजपा में क्यों गए यह एक विचार का विषय है। इस समय उनको BJP से जुड़कर क्या हासिल होगा ? खासकर जब महागठबंधन उनको प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में भी देख रहा हो। नितीश ऐसे भी व्यक्ति नहीं हैं कि उन्हें पैसों से ख़रीदा जा सके फिर भला बीजेपी और नितीश में किस बात को लेकर रजामंदी बनी ?
BJP के साथ मिलकर नितीश शायद हल्का महसूस कर रहे होंगे पर आगे का रास्ता उनके लिए भारी है। बिहार का विकास, उन्नति व् तरक्की का बोझ अब उनपर कई गुना बढ़ गया है। नितीश का यह कहना “बीजेपी में जाने का फैसला मैंने राज्यहित में लिया है” उनके ऊपर एक अतिरिक्त बोझ डालता है वह है केवल विकास पहले से और ज्यादा करने का। अब BJP राज्य और केंद्र दोनों में उनके साथ है देखना होगा नितीश राज्यहित को क्या मुकाम देते हैं।
भारतीय जनता पार्टी:
अमित शाह का ये कहना कि मैं देश के हर राज्य में भाजपा की सरकार बनाऊंगा सिद्ध करता है कि BJP पूरे देश पर अपना राजनीतिक वर्चस्व चाहती है। साम, दाम, दंड, भेद के पथ पर अग्रसर भाजपा राज्यों में बनी हुई सरकारों को तोड़कर ,विधायकों को खरीदकर सिर्फ अपने राजनीतिक उम्माद को पूरा करने में लगी है। यह कहना गलत नहीं होगा की कांग्रेस का इतिहास भी कुछ ऐसा ही रहा है पर आज कांग्रेस लोकतंत्र की दुहाई दे रही है जिसने खुद कभी लोकतंत्र को माना ही नहीं।
बिहार का ताजा घटनाक्रम, राज्य में BJP की छवि को पुनःस्थापित करता है जो विधानसभा चुनाव के बाद कहीं खो सी गई थी। अमित शाह 2019 को ध्यान में रख अपना हर काम कर रहे हैं ऐसे में भला उनसे बिहार कैसे छूटता। महागठबंधन में फूट डालने में बीजेपी का हाथ ही है क्योंकि बिहार की राजनीति में भाजपा का सक्रीय न रहना उसको हिंदी भाषी क्षेत्रों में कमजोर बनाता है; वजह यह भी है कि कैसे भी करके महागठबंधन बनने से रोका जाए नहीं तो अगली लोकसभा की राह कठिन हो जाएगी। नितीश को अपने खेमे में लेने की एक और वजह है ‘प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार’; केवल नितीश ही ऐसा चेहरा हैं जो नरेंद्र मोदी के सामने प्रधानमंत्री पद के लिए खड़े हो सकते हैं जिनका समर्थन भी हर राजनीतिक दल करेगा। एक बात यह भी है कि बिहार का कायापलट जो पिछले वर्षों में नितीश जी नें किया उसमें बीजेपी भी उनके साथ खड़ी रही। नितीश कुमार का फिर BJP में वापसी करना यह बताता है की वे RJD के बजाय बीजेपी के साथ चलने में वे ज्यादा सहज हैं जिसका उन्हें पूर्व अनुभव भी है।
नितीश की विवशता:
नितीश कुमार एक साफ़ सुथरी छवि के नेता माने जाते हैं उनकी हर संभव यह कोशिश रही है कि उनके ऊपर कोई भ्रष्टाचार का दाग न लगे। महागठबंधन में वे बिहार के मुख्यमंत्री पद पर थे और उनके साथ उपमुख्यमंत्री पद का जिम्मा RJD के तेजस्वी यादव को सौंपा गया था। तेजस्वी यादव पर बेनामी संपत्ति कानून के तहत FIR दर्ज की गयी थी। नितीश कुमार जो यह नहीं चाहते थे कि वे एक आपराधिक व्यक्ति के साथ अपनी कुर्सी साझा करें। तेजस्वी की ओर कसता हुआ CBI का शिकंजा नितीश के दामन को भी गंदा कर रहा था जो सुशासन बाबू को गवारा न था। नितीश कुमार को यह बात भी सता रही थी कि कहीं RJD उनको भी इस मामले में न घसीटे। सहायक दल होने के नाते राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू यादव नितीश कुमार से अपने बेटे के बचाव की आस लगाए बैठे थे जिसके चक्कर में नितीश पड़ना नहीं चाहते थे। नितीश कुमार के बार-बार आग्रह करने पर भी तेजस्वी यादव नें अपने ऊपर लगे आरोपों की कोई व्याख्या नहीं दी। लालू यादव पुत्र मोह में अपने बेटे पर लगे बेनामी संपत्तियों का अधिग्रहण मामले को दबाना चाहते थे जबकि वे चाहते तो तेजस्वी से इस्तीफे की मांग कर सकते थे। जब लालू यादव की तरफ से नितीश को कोई आस न दिखी तब वे Congress की शरण में गये मगर कांग्रेस महागठबंधन का साथी होते हुए भी तेजस्वी या लालू यादव पर कोई दबाव नहीं बना सकी। जब नितीश को लालू और सोनिया दोनों से निराशा हाथ लगी तब उन्होनें भाजपा का दामन थामना ही बेहतर समझा। पूरे मामले पर गौर किया जाय तो RJD और Congress तेजस्वी पर चुप रहे किसी नें नितीश के व्यक्तित्व की परवाह नहीं की जिससे नितीश कुमार दुःखी नजर आये। अपनी और अपनी पार्टी की छवि बिगड़ती देख नितीश के पास BJP में जाने के अलावा अन्य कोई उपाय न बचा था।
आगे की राह:
नैतिक कहें या अनैतिक फैसला हो चुका महागठबंधन टूट चुका। नए रिश्ते में एकबार फिर BJP और JDU साथ-साथ हैं नई चुनौतयों के साथ लोगों की बहुत सारी आकांक्षाओं के साथ। केंद्र और राज्य दोनों जगह BJP का होना बिहार को क्या फायदा देता है यह तो आने वाले वर्षों में ही ज्ञात होगा। पर इतना भी है की JDU और BJP दोनों के पास अब बहाना बनाने का कोई रास्ता नहीं है।
राजनीति में दो शब्द समाहित होते हैं “राज+नीति” जिसका अर्थ है राज करने की नीति। मोहब्बत और जंग में सबकुछ जायज है अब यह मुहावरा राजनीति के लिए भी उपयुक्त जान पड़ता है; तभी तो राज्य हासिल करने के लिए राजनीतिक दल कोई भी नीति लगाने से नहीं चूकते। अंत में बस इतना ही कहूंगा की अगर बिहार को सच में कोई विकास मार्ग पर ले जा सकता है तो वो हैं केवल नितीश कुमार।