तबलीग़ी पर मौलाना ज्ञान क्यों हावी ?

तबलीग़ी‘, यह शब्द बेहद सुन्दर है। तबलीग़ी का अर्थ होता है ‘अल्लाह‘ की बतायी बातों को लोगों तक पहुँचाना। अर्थात, जो बातें अल्लाह ने कही हैं उनकी बातों को लोगों तक जाकर प्रचारित करना और उन्हें धर्म ज्ञान देना। आप इसे सीधे शब्दों में कह सकते हैं अल्लाह के बतलाये ज्ञान को लोगों में फैलाना तबलीग़ी कहलाता है।

ज़मात से तो सभी वाकिफ़ हैं; इसका अर्थ है समुदाय या लोगों का ग्रुप।

अब बारी आती है ‘मर्कज़‘ की। आखिर मर्कज़ का क्या अर्थ हुआ ?
मर्कज़ का अर्थ है केंद्र, आप इंग्लिश में इसे सेंटर कह सकते हैं। दिल्ली के निज़ाम्मुद्दीन में तबलीग़ी ज़मात का जो सेंटर है उसे उर्दू में मर्कज़ कहते हैं। तबलीग़ी ज़मात का मर्कज़ केवल भारत में ही नहीं बल्की विश्व के 200 से ज्यादा मुल्कों में है। हां यह सच है की निजाम्मुद्दीन वाला मर्कज़, तबलीग़ी ज़मात का हेड क्वाटर है। यहाँ हर साल 200 से ज्यादा देशों के मुस्लिम आते हैं, भारत के विभिन्न राज्यों के भी मुस्लिम यहाँ आते हैं और सभी ‘अल्लाह’ की कही बातों को, उनके ज्ञान को सुनते हैं पढ़ते हैं। इसमें कोई बुराई भी नहीं, ईश्वर में यक़ीन करना उनके ज्ञान को लोगों तक बाँटना अच्छा कार्य है।

यहाँ एक बात जान लेना ज़रूरी है कि, निज़ाम्मुद्दीन में जो ‘औलिया दरग़ाह‘ है उसका तबलीग़ी ज़मात से कोई लेना देना नहीं है।
तबलीग़ी ज़मात के लोग औलिया दरग़ाह में यक़ीन नहीं रखते। औलिया दरग़ाह का झुकाव ‘सूफ़ीज़्म‘ की तरफ ज्यादा है। इसलिए तबलीग़ी समुदाय इससे दूरी बनाकर ही रहता है। हालांकि औलिया दरग़ाह में किसी के जाने पर कोई पाबंदी नहीं है, वहां किसी भी धर्म का व्यक्ति जा सकता है।

भारत में जब अंग्रेज़ों की हुकूमत थी तब उस दौर में अंग्रेज़ भारतीय मुसलमानों को ईसाई बनाने में लगे थे।
यह बात जब ‘मोहम्मद इलियास‘ को पता चली तो उनको लगा की मुसलमानों को शायद इस्लाम का इल्म नहीं है, इस वजह वे तेज़ी से ईसाई बनते जा रहे हैं। यहीं से शुरुआत होती है तबलीग़ी की, मोहम्मद इलियास तबलीग़ी ज़मात के संस्थापक कहलाते हैं। मैं मोहम्मद इलियास के बारे में ज्यादा न बताकर आगे बढ़ता हूँ मूल विषय पर।

अब आते हैं असल मुद्दे पर।

कभी-कभी किसी अच्छी सोच से किया गया काम भी गलत लोगों के आने से बेकार बनकर रह जाता है।
मोहम्मद इलियास चाहते थे कि मुस्लमान अल्लाह की फ़रमाई बातों को जानें, समझें और उनका अनुसरण करें। तबलीग़ी ज़मात उस ज़माने में गलत कामों में लीन मुस्लिम युवाओं, बेकार घूमते मुस्लिम युवकों को अपने साथ ले जाते और उन्हें धर्म ज्ञान देते, सही रास्ते पर चलने की बात कहते।

फिर समय बदलता है, दौर बदलता है; न अंग्रेजी हुकूमत रह जाती है और न शायद तबलीग़ी ज़मात के असल लोग।
इसे झुठलाया नहीं जा सकता की आज तबलीग़ी ज़मात पर केवल मुल्ला और मौलानाओं का ही कब्ज़ा हो गया है। मैं ये तो नहीं कह सकता कि वे अल्लाह की बातों को नहीं मानते होंगे, मगर फिर भी उनकी हरकतें संदेह पैदा करती हैं।

कोरोना वायरस की इस महामारी के बीच जिस तरह तबलीग़ी ज़मात के लोगों ने मर्कज़ में व्यवहार किया उसे उचित नहीं ठहराया जा सकता। खासकर तब, जब आप तबलीग़ी को मानते हैं। इस मामले में दिल्ली पुलिस और एफआरआरओ के अधिकारीयों को भी बक्शा नहीं जा सकता क्योंकि इनके पास पूरी जानकारी थी की मर्कज़ में कुल कितने लोग ठहरे हैं। अतः इन्हें मर्कज़ को समय रहते ही खाली करा लेना चाहिए था।

वहीं तबलीग़ी ज़मात के लोगों पर भी ये सवाल उठता है की आप लोग यूँ तो अल्लाह की बातों को मानते हैं, लोगों को धर्म ज्ञान देते हैं मगर कोरोना जैसी महामारी के बीच आप अधर्मी की तरह व्यव्हार क्यों कर रहे हैं। 22 मार्च के बाद, मर्कज़ के प्रमुख ‘मौलाना साद’ पुलिस के बार-बार आग्रह करने पर भी मर्कज़ खाली करने को राजी नहीं हुए। जब बात हद से बढ़ गयी, मौलाना साद ढ़ीठ व्यव्हार करने लगे तब रात को 2 बजे NSA Chief अजीत डोभाल जी को जाना पड़ा।

कुछ दिन गायब रहने के बाद मौलाना साद के वकील ने एक ऑडियो जारी किया; जिसमें मौलाना साद जी कह रहे हैं की तबलीग़ी व मुस्लिम ज़मात के सभी लोग सरकार की बात मानें और खुद को कोरोना के अज़ाब से बचायें।

मौलाना जी, आपको इतनी साधारण बात केस रजिस्टर होने बाद क्यों समझ आई ?
..उन मुस्लिम बुज़ुर्गों का क्या होगा जो आपकी वजह से कोरोना पॉजिटिव हुए और उनके परिवार के लोग भी हो गए ?
..उन मुस्लिम नौजवानों का क्या होगा जो मर्कज़ में रहते हुए कोरोना की चपेट में आ गए ?
कुछ लोग मर्कज़ से भागकर उन राज्यों में चले गए जहाँ से वे आये थे। सबसे पहले तो वे अपने परिवार को ही कोरोना की बीमारी देंगे उसका क्या ?

पूरे विश्व में मौलानाओं ने इस्लाम बनाम इस्लाम का माहौल बना रखा है। ‘अल्लाह’ की फ़रमाई बातों को मानने वाले लोगों के अलावा केवल मौलानाओं की फ़रमाई बातों को मानने वाले लोग बढ़ते जा रहे हैं। इन मौलानाओं ने इस्लाम की अपनी एक निजी व्याख्या बना ली है और अपनी निजी व्याख्या के दम पर ये मोहम्मद साहब की असल बातों को झुठलाकर स्वयं के विचार थोपते जा रहे हैं।

इसे आप ऐसे ही समझें जैसे सनातन धर्म की आड़ में आसाराम बापू, राम रहीम, नित्यानंद एवं रामपाल नाम के पाखंडी धर्मगुरु, हिन्दू समाज को बरगलाकर अईयाशी कर रहे थे। जाने कितने अधर्मी, कुकर्मी एवं लंपट हिन्दू बाबाओं का पकड़ा जाना अभी बाकी है।

इस्लाम में भी मौलानाओं ने बड़ी तेज़ी से अपना विस्तार कर लिया है।
अब ये केवल मर्कज़ में नहीं हैं, बल्की मुस्लिम यूनिवर्सिटी, मदरसे, मजार, दरगाह, मस्जिदों के अलावा आम घरों में भी घुस गए हैं। तबलीग़ी की बात से अब इनका कोई वास्ता नहीं रहा, अब ये ‘अल्लाह’ की भी नहीं सुनते..इनका कहना है की हम जो कह रहे हैं वही मुस्लिम करे नहीं तो वो काफ़िर है। काफ़िर के मायने भी इन मौलानाओं ने अपने अनुसार बदल दिए हैं। खैर मैं उसमें नहीं जाना चाहता…

कर्नाकट में मुज़ीब मोहम्मद नाम के एक मुस्लिम युवक की गिरफ़्तारी हुई।
भाईसाब ने ट्विटर पर लिखा –
“यदि आप कोरोना पॉजिटिव हैं तो अपने घर से निकलें थूकें, खाँसें और छींकें”

ट्विटर पर यह पोस्ट देखकर कर्नाटक पुलिस ने मुज़ीब को गिरफ्तार कर लिया। आपको जानकर हैरानी होगी ये भाईसाब Infosys जैसी बड़ी IT कंपनी में सीनियर टेक्नोलॉजी आर्किटेक्ट थे। इनके इस व्यव्हार को देखते हुए इंफोसिस ने इनको तत्काल नौकरी से निकाल दिया।

मैं सोच रहा था मुज़ीब को आखिर मिला क्या ?
नौकरी गयी, पैसा गया, पुलिस केस रजिस्टर हुआ, पुलिस की लाठी पड़ी, कोई एमएनसी आगे नौकरी भी नहीं देगी और सबसे बड़ी बात कि गैर मुस्लिम समाज के अलावा मुस्लिम समाज के लोगों सामने भी इनको शर्मिंदगी उठानी पड़ी। …भाईसाब ने अपने माँ बाप का नाम भी डुबा दिया। मेरे भाई, आपको छींकना, खाँसना, थूकना ही था तो उसका बखान ट्विटर पर क्यों कर दिया…आप जाते बाहर और थूक आते…!

ये बातें सामान्य नहीं हैं !
इन्हें कोई भी सामान्य ना समझे, क्योंकि यह केवल मुज़ीब की बात नहीं। AMU और Millia Islamia जैसी बेहद प्रसिद्ध संस्थानें भी इन्हीं कवायदों में फंसती जा रहीं हैं। अगर ‘अल्लाह मियां’ के इस्लाम पर मुल्ला जी का इस्लाम काबिज़ होगा तो पूरा मुस्लिम समाज प्रदूषित होगा।

जरूरत है इसे रोकने की।
अतः जैसे मोहम्मद इलियास ने बेकार, नकारा मुस्लिम युवकों को सुधारने का बीड़ा उठाया; ठीक वैसे ही सुलझे हुए मुस्लिम लोग बाहर निकलें और समाज में फैलते मुल्ला तंत्र की ख़िलाफ़त करें। नहीं तो…आपके बच्चों को भी एक दिन इन्हीं मौलानाओं की संगत में बैठना पड़ेगा।

डॉक्टर, नर्स पर हमला क्यों ?

मैं अपने जीवन में ये पहली बार देख रहा हूँ की डॉक्टर पर भी कोई अकारण हमला कर सकता है, उनपर थूक सकता है।
इंदौर में घटी ये घटना…इस्लाम का नहीं बल्की बढ़ते मुल्ला तंत्र से प्रभावित लोगों का चेहरा दिखाती है। लेडी डॉक्टर, पुरुष डॉक्टर एवं नर्स स्टॉफ को पत्थर मारकर, उनके चेहरे पर थूक कर, उनको गाली देकर क्या जताना चाह रहे हो..?
जिनपर थूका है तुमने क्या जीवन में कभी उनकी सेवा लेने नहीं जाओगे ? जब जाओगे और उस समय अगर डॉक्टर ही तुमपर थूक दे तो कैसा लगेगा ! ईलाज करने की बजाय तुमको ज़न्नत का रास्ता ही दिखा दे तब क्या होगा ! अगर डॉक्टर बदला लेने पर आ जाय तो वो ले ही लेगा, जब तुम जिस दिन उसके दरबार में अपना मर्ज लेकर जाओगे।

मौलाना साद, इतना अच्छा धर्म ज्ञान देते हैं की जब दिल्ली के डॉक्टर तबलीग़ी ज़मात के लोगों का कोरोना टेस्ट ले रहे थे तब वे लोग उनपर थूकना शुरू कर दिए। मौलाना की फ़रमाई बातों का बड़ा अच्छा असर हो रहा है इनपे। ..इन मौलानाओं ने सब कुछ नाश के रख दिया। अरे मौलाना बेहद साफ़ सफाई से रहता है घर में थूक-थाक नहीं करता..। कहीं ऐसा न हो जब कोरोना की ज़द में वेंटिलेटर पर तुम लेटो तब डॉक्टर ही तुमपर थूक दे। ..डॉक्टर से पंगा बिल्कुल नहीं, क्योंकि उनके दरबार में सभी धर्म के लोग हाज़िर होते हैं, उनके अंदर बदला लेने की भावना अल्लाह न करे पैदा हो।

केस रजिस्टर होने के बाद मौलाना ‘साद’ फरार हो गए।
वे खुद भी कोरोना पॉजिटिव पाये गये..और गिरफ़्तारी से घबराकर ऑडियो जारी करके अब वही बात कह रहे हैं जो दिल्ली पुलिस उनको 22 मार्च से समझा रही थी। हम तो डूबे सनम तुमको भी ले डूबे…वो मुस्लिम भी नपे जो उनके साथ मर्कज़ में थे।

साद जी, ये बेतुका काम करके पूरे मुसलमानों की बेईज़ती करा के आपको मिला क्या ?
यदि मौलाना में अदब, सलीक़ा, ईमान ही नहीं…तो भला उसे मौलाना कहलाने का अधिकार कैसा !

मैं जानता हूँ, हर इंसान एक जैसा नहीं है।
पर मैंने वही तो कहा कि सुलझे हुए लोग सामने आयें।
अगर आप इन बे-अदब मौलानाओं की ढ़ाल बनेंगे तो आपका और आपके बच्चों का भविष्य भी यही तय करेंगे, आप नहीं।
गलत को गलत और सही को सही बोलना सीखिए, वरना इन मौलानाओं ने मुस्लिम देशों को केवल धर्म और जिहाद की ज़द में जकड़ रखा है।

वेटिकन सिटी, यूरोप के जगमगाते गिरज़ाघर आज हवा महल की तरह खाली अंदर और बाहर से हवा पास कर रहे हैं।
जिन अंग्रेजों ने पूरी दुनियां में अपने ईसाई धर्म का डंका बजाया। लोगों को पैसे देकर ईसाई बनाया, जो कि आज भी दक्षिण भारत में जारी है; पर विधान देखो यूरोप के चर्च में अब जाने वाला कोई नहीं। फ़र्ज़ी पोप और लंपट पादरियों की बदौलत ईसाई लोग चर्च से दूरी बना चुके हैं। हालात ऐसे बन पड़े हैं की चर्च को अब ऑनलाइन बेचा जाने लगा है। जरा आप गूगल तो करें Church for Sale, अनेकों चर्च आपको बिकते दिखाई देंगे। ईसाई चर्च को हिन्दू मंदिर के ट्रस्ट खरीद रहे हैं एवं वहां की प्राइवेट कंपनियां अपना शोरूम, स्टॉल, वेयरहाउस, सर्विस सेंटर आदि बना रही हैं।

जब भगवान के धर्म ज्ञान पर इंसान का धर्म ज्ञान हावी होता है तो ऐसी ही स्थिति उत्पन्न होती है। मगर अभी भी भारतीय ईसाई ‘हाले लुईया..हाले लुईया’ करते हुए ढ़ोंगी पादरियों के आगे नाच रहे हैं।

इस्लाम का कुछ ऐसा ही हाल…लंपट मौलानाओं ने कर रखा है।
निज़ाम्मुद्दीन के मर्कज़ में तबलीग़ी ज़मात के लोग कैसे हैं ये आज पूरे देश को पता चल ही गया।
शुक्रिया ये सब दिखाने और बताने के लिए।

अंत में यही कहूंगा,

देखिये जब उपद्रवी मौलानाओं के विचार आम मुस्लिम लोगों द्वारा पोषित किये जाने लगते हैं तब अंकुर फूटता है ‘आतंक’ का। दुनियां में तमाम मुलिम देश आतंक की ज़द में आकर अपने लोगों का जीवन तबाह कर चुके हैं। पाकिस्तान, कज़ाकिस्तान, सूडान, इराक़, अफ़ग़ानिस्तान, सीरिया, सोमालिया, यमन जैसे मुस्लिम देश आज देश कहलाने लायक नहीं रह गए।

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा