Travel Ban on 7 Muslim countries – Is This Right Decision

अमेरिका विश्व का सबसे शक्तिशाली देश है जो कि विगत कुछ महीनों से चर्चा का विषय बना हुआ है जिसका कारण है वहाँ कि सरकार।  हम बात कर रहे हैं अमेरिकी राष्ट्रपति “डॉनल्ड ट्रम्प” की जिन्होंने नें सत्ता में आते ही अपने लिए गये फैसलों से पूरी दुनिया को हैरत में डाल दिया है। उनके द्वारा लिए गये फैसलों से जहाँ कुछ देश अचरज में हैं वहीं कुछ खासे परेशान नजर आ रहे हैं जिसकी वजह है उनपे लगाया गया प्रतिबन्ध।

“डॉनल्ड ट्रम्प” नें 7 मुस्लिम देशों – ईरान, इराक, लीबिया, सोमालिया, सूडान, सीरिया और यमन के लोगों को अमेरिका में दाखिल होनें पे प्रतिबंधित कर दिया है। अमेरिका के इस लगाये गये प्रतिबन्ध का विरोध भी हो रहा है और इसे मानव अधिकार के खिलाफ भी बताया जा रहा है, पर क्या ये फैसला सही है ?

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मैं इस प्रतिबन्ध को एक अलग नजरिये से देखता हूँ – असल में अब मुस्लिम राष्ट्र जिन्हें चिंतन करने का वक़्त आ गया है कि आखिर दुनिया उनके खिलाफ क्यों जा रही है। ऐसे कौन से बिंदु हैं जिनकी बदौलत मुसलमान को हेय कि दृष्टि से देखा जाने लगा है। सम्पूर्ण विश्व में मुस्लिम आबादी दूसरे नंबर पे है , मुस्लिम राष्ट्रों कि संख्या भी दूसरे नंबर पे है और पर्याप्त धन -संसाधनों के होने के बावजूद आखिर मुस्लिम समाज को अन्य गैर मुस्लिम राष्ट्रों की शरण में क्यों जाना पड़ रहा है।

ईरान, इराक, लीबिया, सोमालिया, सूडान, सीरिया और यमन कि दुर्दशा किसी से नहीं छुपी है परंतु उनकी ये दुर्दशा बनाई किसने है; हक़ीक़त तो ये है कि उनकी ये दुर्दशा करने वाले भी खुद मुस्लिम समुदाय के लोग हैं जिन्होनें सम्पूर्ण मुस्लिम समाज को बदनाम कर रखा है। सवाल ये है कि मुसलमान अपनों से रूबरू क्यों नहीं होना चाहते , स्वयं के द्वारा हो रहे अत्याचार से लड़ना क्यों नहीं चाहते। विश्व में बन रही मुस्लिम समाज की गलत छवी ऐसे प्रतिबंधों के लिये बाध्य करती है जिसका ताजा उदहारण डॉनल्ड ट्रम्प नें प्रस्तुत किया है कल कोई और भी कर सकता है।

इससे पहले कि हालात कुछ और बिगड़ जायें मुस्लिम बुद्धिजीविओं को आगे आना होगा और दुनिया को ये भरोसा दिलाना होगा कि वो आतंक और जुल्म के खिलाफ हैं। विगत कुछ वर्षो से यूरोपियन देशों ने जो आतंक झेला है वो कहीं न कहीं चंद हिंसावादी मुसलमानों से ही जुड़ा था ऐसे में उनकी विचारधारा में बदलाव आना लाजमी है।

अगर हम आगे बात करें अमेरिकी प्रतिबन्ध कि तो ये उनको तब सोचना चाहिए था जब वो खुद अन्य देशों में आतंक का बीज बो रहे थे। आज जब उनकी अपने पे बन आयी है तो वो दुनिया को दिग्भ्रमित करने के लिये प्रतिबन्ध का सहारा ले रहे हैं। ये सारा संसार जानता है कि विश्व में आतंक का बीज बोन वाला अमेरिका ही है। दुनिया के तमाम बड़े शक्तिशाली आतंकी संगठन अमेरिका के पाले हुए ही हैं जो उसने अन्य मुल्कों में अशांति फ़ैलाने के मद्देनजर बनाये थे पर वो भूल गये कि साँप पालने वाला उसी के दंश से मरता है।

विश्व में अशांति का प्रतीक अमेरिका ही है जिसने अपनी सैन्य सामग्री , हथियार को बेचने के लिये आतंक का सहारा लिया और आज भी ले रहा है। जिन सात देशों को आज प्रतिबंधित किया है उन देशों कि दुर्दशा भी अमेरिका ने ही की है। विश्व पर वर्चस्व हासिल करने के लिए , तेल के भंडारों पे कब्ज़ा ज़माने के लिये अमेरिका नें मुस्लिम अफ़्रीकी देशों को तबाह कर दिया।

” बोए पेड़ बबूल का तो आम कहां से होए ” अब अमेरिका अपने द्वारा बोए हुये बबूल के कांटों में उलझ गया है और अपने को पाक – साफ़ करने के लिए मुस्लिम प्रतिबन्ध का सहारा ले रहा है।

परंतु ये भी दुर्भाग्यपूर्ण रहा कि मुस्लिम राष्ट्र अमेरिका की चाल को भांप नहीं पाये और धीरे – धीरे अंदर से खोखले होते गये। भारत जैसा देश जिसनें आतंक की चोट को सबसे ज्यादा झेला और लगातार आतंकवाद का विरोध करता रहा पर यही अमेरिका जिसने भारत जैसे देश को नजरअंदाज कर दिया ताकि भारत का अपने पड़ोसी मुल्कों से टकराव जारी रह सके। अब काफी वक़्त बीत गया है बहुत कुछ अब अमेरिका के हाथ से भी बाहर हो गया है ऐसे में वो भारत का हिमायती बनना चाहता है पर असल बात ये है कि अब उसे भारत की जरूरत है।

खैर, जरूरत है अग्रणी मुस्लिम राष्ट्रों के एकजुट होनें की और मौजूदा परिस्थिति से निपटनें की जो कि आतंकवाद है। हालात बिगड़े जरूर हैं पर संभाले जा सकते हैं मुस्लिम को आतंकवाद कि छवि जिसने भी बनाई हो वो बात अब पुरानी हो चली फिलहाल इस आतंकवाद से मजबूती से निपटना ही मात्र एक उद्देश्य होना चाहिए। मेरा मानना है कि जो आतंकवाद फैलाये वो मुसलमान है ही नहीं तो फिर उसके समूल विनाश में तनिक देर नहीं लगानी चाहिए। मुस्लिम राष्ट्र इन आतंकियों को ना पालें जैसा अमेरिका ने किया क्योंकि ये एक ऐसा जहर है जो अमेरिका को तो कम बल्कि मुस्लिम राष्ट्रों को ज्यादा नुकसान पहूँचायेगा।

अगर मुस्लिम राष्ट्र आतंकियों को अपना मजहबी मान कर संरछण देंगे तो स्थिति और भी भयावह हो जायेगी क्योंकि आतंक मजहब नहीं पहचानता। Tehrik-e Taliban, Lashkar-e-Tayyiba, Al-Shabaab, Boko Haram, Taliban, Al-Qaeda, ISIS जैसे ये घातक संस्थाने जिन्होंने अत्यधिक अपने लोगों को ही नुक्सान पहुँचाया जिसकी वजह से धीरे – धीरे वो मुल्क खुद ही कमजोर पड़ता गया। आज स्थिति ये है कि इन आतंकी संस्थानों नें जिन देशों में ये व्याप्त हैं वहाँ की सरकारों पे भी अपना अधिपत्य जमा लिया है जिसकी वहज से बेगुनाह और कमजोर लोग पलायन करनें पर मजबूर हैं।

क्या अमेरिका को इन प्रवासियों को अपना लेना चाहिए ? या फिर प्रतिबंधित करना चाहिए ? ये एक ऐसा सवाल है जिसका कोई सीधा जवाब नहीं हो सकता। जरूरत है आतंकी संगठनों पे प्रतिबन्ध लगाने की ना की बेगुनाह लोगों पे।