“वेंकैया नायडू” बने 13वें उपराष्ट्रपति – एक प्रचारक से उपराष्ट्रपति बनने तक का सफर
वेंकैया नायडू को देश का 13वां उपराष्ट्रपति चुन लिया गया है । प्राप्त जानकारी के अनुसार वेंकैया नायडू को गोपालकृष्ण गाँधी के मुकाबले दोगुने वोट मिले। कुल 771 वोटों में से 516 वोट वेंकैया नायडू के खाते में गए तो वहीं UPA कैंडिडेट गोपालकृष्ण गाँधी को कुल 244 वोट ही मिल पाये। जीत के बाद दोनों ही नेताओं नें लोकतांत्रिक ढंग से एक दूसरे को बधाई दी । बड़ी जीत के बाद वेंकैया नायडू नें देशवासियों का, नरेंद्र मोदी का, अमित शाह का और जिन लोगों नें उन्हें वोट किया सबका आभार व्यक्त करते हुए कहा कि एक किसान का बेटा देश के दूसरे सबसे बड़े पद पर विराजमान होने जा रहा है मैं सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ। उन्होनें कहा कि मैं अब किसी पार्टी का नहीं रहा सबको साथ लेकर चलने की पूरी कोशिश करूँगा।
वेंकैया नायडू के सफर का संछिप्त विवरण:
वेंकैया नायडू जी का जन्म : 1 जुलाई, वर्ष 1949 आंध्र प्रदेश के नेल्लोर जिले में हुआ था। उनके पिता का नाम रंगैया नायडू था जो एक साधारण किसान थे।
वेंकैया नायडू जी की शिक्षा : आंध्र प्रदेश के नेल्लोर से स्कूली पढ़ाई पूरी की और फिर बाद में वहीं से राजनीति और कूटनीति में स्नातक की डिग्री हासिल की। इसके अलावा विशाखापत्तनम के लॉ कालेज से अंतरराष्ट्रीय कानून में डिग्री भी प्राप्त की।
वेंकैया नायडू जी का विवाह : 14 अप्रैल, सन 1971 में उषा से शादी रचाई, जिनसे दो संतानें भी हुयीं एक बेटा और एक बेटी।
वेंकैया नायडू जी चार बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं; वर्तमान में वे राजस्थान से सांसद हैं। नायडू पहली बार राज्यसभा के लिए वर्ष 1998 में वे पहली बार राजयसभा के लिए चुने गए थे; 2004 , 2010 और 2016 में वह राज्यसभा के सांसद बने।
वेंकैया नायडू की इस जीत से उनके परिवार के लोग और उनके गांव के लोग काफी उत्साहित हैं। ऐसा देखने में आता रहा है कि वेंकैया नायडू अक्सर अपने गांव जाते रहे हैं जहाँ उनके चाचा-चाची रहते हैं। पिता की बचपन में ही मौत हो जाने के कारण वेंकैया नायडू का पालन पोषण उनके चाचा-चाची नें ही की।
अपने शुरुआती दिनों में वेंकैया नायडू अटल बिहारी और लाल कृष्ण आडवानी जैसे बड़े नेताओं के पोस्टर चिपकाया करते थे। बीजेपी दक्षिणी भारत में काफी कमजोर थी ऐसे में वेंकैया नायडू नें बीजेपी की पहचान दक्षिण भारत में बनाई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से उन्होंने अपनी शुरुआत की उसके उपरांत वे फिर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में भी सक्रीय रहे और कॉलेज यूनियन के अध्यक्ष चुने गए। वेंकैया नायडू को पहली पहचान मिली वर्ष 1971 जिसमें वे आंध्र आंदोलन से एक मजबूत नेता के रूप में निकल कर सामने आये। मात्र अपनी 29 वर्ष की आयु में 1978 में वे पहली बार विधायक बने और वर्ष 1983 में भी विधानसभा पहुँचने में कामयाब रहे। वेंकैया नायडू का राजनीतिक सफर यूँ ही धीरे धीरे बढ़ता रहा और उनके साथ बीजेपी भी अपना जन आधार बढाती रही। सन 1975 में इमरजेंसी के दौरान जेल जाने से लेकर 2002 में उनका बीजेपी का राष्ट्रिय अध्यक्ष बनने तक का सफर काफी दिलचस्प रहा; अटल बिहारी और लालकृष्ण आडवानी की अगुआई में वेंकैया सफलता की सीढियाँ चढ़ते गए। वेंकैया जी का प्रभाव पार्टी में कभी कम नहीं हुआ वे हर दौर के नेता के साथ अच्छे संबंध स्थापित करने में कामयाब रहे; अटल युग से नरेंद्र मोदी तक आते-आते नायडू जी नें भिन्न प्रकार के पदभार संभाले, मंत्रालय संभाले जिसका परिणाम ये रहा की आज वो देश के दूसरे सर्वोच्च पद पर काबिज हो बैठे।
वैंकया नायडू को बीजेपी का संकट मोचन भी कहते हैं कारण सिर्फ एक मात्र की वे बहुत ही सामाजिक व्यक्ति हैं। वेंकैया नायडू जी व्यक्तिगत संबंध सभी राजनीतिक दल के नेताओं के साथ अच्छे बने रहे यही कारण था कि जब भी दूसरी पार्टी के सदस्यों को मनाना रहता था बीजेपी को वेंकैया नायडू नाम के सिवाय और कुछ न सूझता। अपने इसी गुण के कारन वेंकैया नायडू जी को भाजपा का संकट मोचन कहा जाने लगा।
वेंकैया नायडू के उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद भाजपा नें भी एक कीर्तिमान स्थापित कर लिया है वो यह कि देश के 3 सर्वोच्च पदों पर बीजेपी के नेता ही काबिज हैं जो कभी आर.एस.एस के सदस्य भी थे। वेंकैया नायडू को भारतवर्ष का 13वां उपराष्ट्रपति पद ग्रहण करने की बधाई देने के साथ ही मैं भारतवर्ष के अच्छे भविष्य की कामना करता हूँ ।