वृद्धाश्रम: एक अभिशाप
वृद्ध-आश्रम का इंग्लिश नाम है “ओल्ड एज होम” या यूरोप में इन्हें “रिटायरिंग रिट्रीट” भी कहा जाता है; इस रिट्रीट में मानसिक, आर्थिक सुरक्षा दी जाती हैं। मेडिकल सुविधाएँ हैं, मनोरंजन के साधन हैं इत्यादि, बस एक संपूर्ण घरेलू वातावरण नहीं जो कि यूरोपियन या वहाँ की संस्कृति को ज़्यादा ज़रूरी नहीं होती है। उनके लिए या उन देशों के लिए वृद्ध आश्रम निश्चित ही एक सुविधाजनक वरदान है।
आइए अब बात भारत वर्ष की करते हैं इस पूरे विश्व के समस्त हिस्से में से एक भारत देश है, जिसके पास चरण स्पर्श अर्थात पैर छूने की परंपरा है अर्थात हम अपने दिल से बड़ों का सम्मान करना जानते हैं । सम्मान अर्थात अपने दिलों में रखना जानते हैं, हमारे यहाँ वृद्ध आश्रम निश्चित ही एक अभिशाप कहलायेगा। हाँ यहाँ भी हम इस विषय के ज़रूर दो हिस्से करना चाहेंगे कि ऐसे भारतीय बुज़ुर्ग जिनकी ज़िंदगी में परिस्थिति वष सब ठीक नहीं अर्थात जिनका कोई नहीं यहाँ-वहाँ भटकने की अपेक्षा वृद्ध आश्रम उनके लिए श्रेष्ठ और हितकारी है, लेकिन जिनके अपने बेटे बहू, नाती-पोते, बेटी और दामाद हैं और यदि ऐसे बुजुर्ग वृद्ध आश्रम का आश्रय लेते हैं तो यह हमारे लिए हर रूप से अत्यधिक मानवीय और राष्ट्रीय शर्म की बात है।
वैसे ही वैदिक युग में भी आयु के अनुसार अलग-अलग आश्रमों की व्यवस्था थी ब्रह्मचर्य, गृहस्थ और सन्यास। लेकिन यह सभी आश्रम सहज स्वीकार्य थे आज के भौतिकवादी युग की तरह नहीं जहाँ पर बुढ़ापा अवांछनीय शब्द बन गया है, इस शब्द का अर्थ तो और भी ज्यादा अवांछनीय ही हो गया है। वृद्ध आश्रम क्यों अभिशाप है इसके पक्ष में बहुत कुछ हैं ,फिर भी कुछ थोड़े शब्दों में आपको अपने बुज़ुर्गों के बारे में बताना चाहूँगी। हमें जन्म देकर और बड़ा करके अपना सब कुछ दिया हर मुकाम पर हमें संभालते रहे ,साथ रहे ,हमारी असफलताओं की घनघोर निराशा में मुस्कुराते रहे, हमारे दुखों को हमेशा बाँटा, केवल और केवल हमारे माता-पिता ही इतने अच्छे और कृपालु हो सकते हैं। उनका अधिकार है एक ख़ुशियों भरा घर, तनाव मुक्त जीवन। वह इस जीवन भर हस यहीं चाहते है। वृद्धाश्रम में वह खुश नहीं होते वह प्यार को तरसते हैं अपनत्व और भावना के रिश्ते तलाशते हैं, जो हमेशा के लिए उन से छूट गया और वह ईश्वर से इस अकेलेपन की मानसिक अवस्था से छुटकारा पाने के लिए प्रार्थना करते हैं।
कुछ तथाकथित बुद्धिवादी ,भौतिकवादी जाने क्या-क्या वादी जिनके आँखों के चश्मे पर मोटी- मोटी किताबों के मोटे-मोटे शब्द चिपके होते हैं। वह अक्सर इन वृद्ध आश्रम की वकालत करते हैं क्योंकि उनके मन की दीवारों पर इनके बुज़ुर्गों के प्यार का अर्थ कभी नहीं चिपकता। वह बस एक इतनी सी बात को समझने में अक्षम होते हैं कि वह घर ही क्या जिसमें माता पिता का साथ ना हो। दुनिया में शायद ही ऐसा कुछ होगा जो अपने माता पिता को दूर करने की प्रक्रिया के तुलना में अधिक पीड़ादायक, पाप पूर्ण और बुरा हो माता-पिता बड़े बुज़ुर्ग यदि है तो हमारा अस्तित्व सदा सुरक्षित है। और यदि जिस दिन हम इन्हें खुद से दूर कर दे तो उस दिन समझ जाइए कि हम खत्म हो गए हैं।
लेखिका:
वैदेही शर्मा