प्रतिवर्ष कार्तिक पूर्णिमा के स्नान के बाद, भारत देश के कई राज्यों में मेले का आयोजन होता आया है। अधिकांशतः ये मेले दूर दराज गांव में लगते देखे जाते हैं। चूँकि मेलों का आयोजन ग्रामीण व छोटे शहरी इलाकों में ही होता है अतः उसमें विचरण करने वाले लोगों की संख्या ज्यादातर ग्रामीणों की
मनोज रसिया Studio में News पढ़ने को तैयार हैं। मनोज रसिया (समाचार पढ़ते हुए) – नमस्कार आज के बेमतलब समाचार इस प्रकार हैं ! 1) कपड़ा मंत्री पर विपक्षी पार्टियों ने कपड़ा चोरी करने का संगीन आरोप लगाया है। विपक्ष के मंत्रियों का कहना है की, मंत्री जी ने ग़रीबों में बाँटने को आये
15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ। शायद ये बात आपको पहले से पता न हो इसलिए बता दिया !! आज़ादी का जश्न तो शायद हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को नसीब न हुआ हो, पर हम प्रतिवर्ष आज़ादी का जश्न मनाकर एक डेढ़ किलो लड्डू तो डकार ही जाते हैं। भारत की आज़ादी का अगर
का चौबे जी, ई रोज रोज बाल काहे रंगवाते हैं ? गांव का मुंशी मज़ाकिया लहजे से बोला। चुपकर….बार बार बाल काहे रंगवाते हैं ! अबे तेरा क्या जाता है, सजना संवारना मर्दों को भी भाता है; ग्राम प्रधान चौबे जी नें भी मज़ाकिया लहजे से उत्तर दे मारा मुंशी के मुँह पर। मुंशी
अपने गांव में भूषण सिंह का अलग ही रुतबा था, एक दम चोकस राजपूताना ठाट-बाट। धन संपदा का आलम तो ऐसा था की आँख उठाकर देखते जाईये, गारंटी है की आपकी आँख की पुतली बाहर आ जाएगी मगर आप उनकी ज़मीन का छोर नहीं देख पायेंगे। खेत बाड़ी बागीचा के अलावा भूषण सिंह अपना
‘प्रभाकर तिवारी’ गांव के जाने माने पंडित के पुत्र हैं, अपनी युवास्था में ही वे पूजा पाठ के कार्यों में लग गए…ऊ का है कि, उनके दादा और पिता भी बड़े पंडितों की गिनती में आते थे । खैर दादा ‘राजाराम तिवारी’ तो दुनियां में रहे नहीं परन्तु पिता ‘परशुराम तिवारी’ अभी जीवित हैं
सुनो मैं मायके जा रही हूँ… अच्छा ही है मैंने दबे स्वर में कहा ! मगर भाग्यवान के कान बड़े तेज़ हैं सुन ही लिया ; क्या कहे .. अच्छा ही है ? मैंने भी ताव दिखाते हुए कहा – हाँ अच्छा ही है चली जाओ कुछ दिन मुझे भी चैन मिले ! मेरे इतना
ICC Champions Trophy 2017 अब अपने अंतिम पड़ाव पर पहुँच गई है जो कि बस एक मैच ही दूर है और वह भी फाइनल मैच। इस पूरे Tournament में अगर किसी ने सबसे अच्छा प्रदर्शन किया तो वो है बारिश जिसने लगभग हर मैच में कभी धीमी – कभी तेज़ गती से रन बनाये
धूमन : मंगरु के पिता मंगरु : धूमन जी का बेटा मैं : केवट लाल, कई दिन हो गए सोचा धूमन जी से मिल आऊं पिछली बार मिला था तो कह रहे थे कि मंगरु की शादी करनी है। घूमते घामते पहुंचा उनके घर, राम राम धूमन जी … मैंने कहा ! धूमन जी
हास्य व्यंग : क्या मोटापा सच में एक बड़ी परेशानी है ? आईये मिलते हैं शर्मा जी से 🙂 🙂 🙂 🙂 🙂 खाने का शौक और आलस इन्सान को क्या से क्या बना देता है ! अब हमारे शर्मा जी को ही ले लीजिये कभी बड़ा सुडौल और छहरीला बदन था इनका, मगर