हास्य व्यंग – बुरा ना मानों होली है, Bura Na Mano Holi Hai, Funny Hindi Story
आई गयी होली …… सबेरे-सबेरे हमरे पाजामें पे एक बच्चा पानी भरा गुब्बारा फेक दिया और दौड़ के भागा अपनें घर में, ‘पाण्डेय जी’ जान गये कि होली आये वाली है अब जरा कुरता पजामा बचा के चलना पड़ेगा। ससुरा ई अजीब त्यौहार है – दुनियाँ का सारा कुकर्म कर देते हैं औऱ कहते हैं कि बुरा ना मानों ! काहे बुरा ना मानें भाई ? हमरे नए-नए कपड़े पे रंग फेंकोगे त हमको बुरा ना त अच्छा लगेगा .. क्यों बताईये !!!! ई गली मोहल्ला के लड़का बच्चा लोग का कौनो समझ नहीं है , कपड़ा का तो नाश करता ही है सब ऊपर से दांत निकाल कर खिखियानें भी लगता है। ना जानें कईसा माई बाप है इनके, कुछ बोलता भी नहीं है इन सबको।
पिछला होली में तो हद हो गया था …… माथा एकदम तिलमिला दिया था ई सब, बस पीटे भर नहीं इनसबको – लोग कहने लगे बुरा मत मानिये होली है। जानते हैं काहें दिमाग गरमाया था ? उ बात था कि हम जा रहे थे ससुरारी (होली से एक दिन पहले) , सोचा ऐ साल होली अपना ससुराल में मनाएंगे! धरम पत्नी भी वहीँ विराजमान थीं तो उनको लाना भी था। अब भई ससुराल जा रहे थे तो तन पे कपड़ा भी तो ठीक-ठाक ही पहन के जाते न ! … ना पहिर के जाते अच्छा कपड़ा तो वहाँ बैठी भाग्यवान जी अलग बात सुनानें लगतीं; रिश्तेदारी में थोड़ा बन-ठन के त रहना ही पड़ता है और फिर साली लोग भी त है का सोचती सब। !
15 मार्च का दिन था हम अपने सरकारी निवास स्थान गोरखपुर railway society से निकल रहे थे ; सबेरे 10:15 की train थी हमारी Grakhpur Junction से। चूँकि हम ससुराल काफी दिनों के बाद जा रहे थे जिसके वजस से हमनें अपना शादी वाला कोट-पैन्ट ही पहन लिया था ….. उ का है कि, कोट-पैन्ट में आदमी थोड़ा रौबदार लगता है। रौबदार बनकर जायेंगे तो खातिरदारी और मान-जान ज्यादा होगा 🙂 फिर सालीयों के ऊपर भी तो भाव जमाना है !
तो हम कह रहे थे – कि जैसे ही हम अपना ‘cream colour’ का रौबदार कोट-पैन्ट पहनकर building के दूसरे माले से निचे उतरे हमारी पीठ पर कुछ आके गिरा पाचक से कुछ सोचते कि तब तक एक और लगा पाचक से, सिर उठाकर देखे तो बालकनी में खड़े कुछ लोग हमको देखकर मुस्कुरा रहे थे मानो कि हम कोई आदमी नहीं लंगूर हों। सवा दस बजे का train था हमको जल्द रेलवे स्टेशन पहुँचना था, ऐसे में अब किसी से क्या बोले और क्या सुनें ! तुरंत रिक्शे वाले को हाथ दिए … वो हमको देखकर बोला भाई साहब आपका तो कोट-पैन्ट ख़राब हो गया , हम जानते हुए पूछे क्यों क्या हुआ ?? वह बोला साहेब एकदम चटकार हरियरका (dark green) रंग किसी ने फेक दिया है – ई जो cream colour का सूट है पीछे से आधा green हो चुका है। अंदर तो हम गुस्से से भरे थे 🙁 खीजकर बोले चलो ना तुम अपना काम करो – रिक्शे वाला भी बोल पड़ा बुरा न मानीये होली है !
जैसे-तैसे बड़बड़ाते हुए हम जा पहुँचे Gorakhpur Junction, Railway Station और फिर खोजते हुए अपनी पसंदीदा सीट Lower Birth पे आ बैठे , ट्रेन यात्रा में अगर Lower Birth मिल जाये तो सफर का आनंद दोगुना हो जाता है; अभी यही सोच रहे थे की अचानक ध्यान आया कोट का ? फ़ौरन हमने उसे उतारा और जैसा रिक्शे वाले नें कहा था वो ठीक वैसा ही पीछे से आधा cream और आधा green हो चुका था। कोट की दुर्दशा देख हम यही बुदबुदा रहे थे मन में ….. अरे गुब्बारा मारना ही था तो पानी वाला मरता देता या कोई हल्का रंग वाला मार देता … ई साला गाढ़ा हरा रंग क्यों फेक दिया हमरे सुन्दर कोट पर, उन नालायकों को क्या पता कि कितनी यादें ज़ुडीं हैं इस कोट से ???? अरे ई कोट हमारी जवानी का प्रतीक है और फिर हम अपनी धर्म पत्नी को पहली बार इसी पोशाक में तो लाये थे अपने घर !
सारा मूड ख़राब कर दिया सब, का सोच के निकले और का हो गया (बर्थ पर लेटकर यही सोच रहे थे) . . तब तक चाय-चाय। .. ओह्ह आँख लग गई थी ! हमको ज्यादा दूर नहीं जाना था बस ‘देवरिया सदर’ उतारना था। … हमनें रोका चाय वाले को – एक चाय दो; बस चाय ख़तम ही हुआ तब तक हमारा गन्तव्य स्थान ‘देवरिया सदर’ (हमारी ससुराल) आ गया !! कोट-पैन्ट के बारे में सोचते सोचते आँख लग गयी …. भला जाग गये वरना कहीं और पहुँच जाते !! अब कोट का पहिरते उसको अपनें हाथ में ले लिए और निकल आये रेलवे स्टेशन के बाहर ; ससुराल का मामला था तो खाली हाथ कइसे जाते। सोचा कुछ मिठाई इत्यादि ले लिया जाय।
दुकानदार से – सुनो 1 किलो छेना और 1 किलो बर्फी पैक कर दो …. बस काफी था ! निकले वहाँ से गाँव थोड़ा अंदर था तो फिर रिक्शा किये ; …. बहुत कुछ बदल गया था पहले उबड़-खाबड़ रास्ता था और अब तो पूरा चका-चक रोड बन गया था ; रिक्शा वाला भी एकदम सरसराते ले जा रहा था। शायद वो भी कुछ मन में सोच ही रहा था।
अचानक पूछ पड़ा हमसे – का बाबूजी ई कोटवा हाथ में काहें लटकायें हैं पहिर लीजिये ; उसकी बात सुन फिर कोट का कहानी याद आ गया अब उसको क्या समझाते बोल दिये .. भाई गर्मी लग रही है सो लटका लिए हाथ में , तुम अपना रिक्शा चलाओ का दिक्कत है तुमको ! आ हा …वाह .. गाँव का प्राकृतिक हवा कितना सुन्दर होता है मन एकदम फ्रेश हो जाता है। राम … राम पाण्डेय जी – लो ई कौन हमको बोल पड़ा खैर होगा कोई जानता होगा , तुम चलते रहो भाई होंगे कौनो साहब हम तो नहीं पहचानते।
कुछ ही देर में – बस बस ….रोको रोको आ रहे हैं हमारे साले साहब। जीजाजी प्रणाम .. कुश रहो, लाईये झोरा ले लें बड़ा देर कर दिए आनें में सब लोग बेसब्री से आपेका इंतज़ार कर रहे थे। आ ई कोटवा हाथ में काहे टांग लिए हैं … लाईये दीजिये हमको – आरे रहे दो। .. ना ना दीजिये (कहते कहते चीन लिया हमारे हाथ से) … बस मिल गया साले को मजाक करने का बहाना । जोर से हँसते हुए – ही ही .. का जीजा ई पूरा हरियाली पीठ पे लेकर कहाँ से आ रहे हैं हा हा अब समझे तबे कोट हाथ में लटकाये थे पूरा महूरत बना के निकले हैं।
टोकते हुए अरे साले – चुप हो जा कम से कम दुनिया के सामने त मत बोल बेज़्ज़ती करवायेगा का हमारा ! पूरा हिहियाते पहुँचा घर – तभी मैं निचे झुकते हुए (ससुर जी से ) पाइ लागूं पिताजी – कुश रहो बेटा , हमतो कब से राह ताक रहे थे कि जमाईजी कहाँ इतना देर कर दिये ! पीछे से साला तपाक से बोल पड़ा – जानते हैं बाऊजी जीजा पूरा रास्ता होली खेलते आये हैं एही से देर हुआ . .. जरा कोट का हालात देखिये ना, जी भर के रंग छपवायें हैं …हा हा साली जोर से बोल पड़ी जाने दीजिये जीजा जी – बुरा ना मानों होली है।
माता जी सामने आई – प्रणाम माताजी , अब कैसा है तबीयत। . . दबी आवाज़ में ठीक है बेटा अब भगवान के भरोसे ही है ज़िन्दगी ! डाँटते हुए अरे जमाई बाबू को कुछ नाश्ता पानी कराओ खाली हा हा ही ही में लगे हो सब लोग। इतने में छोटी साली मेरा कोट लेकर चली गयी भाग्यवान को दिखाने ; अंदर की आवाज़ें साफ़ सुनाई दे रहीं थी खिल्ली उड़ा रही थी सब हमारा ।
देखते देखते शाम हो गया , रात्रि भोजन हुआ और फिर जैसे ही बिस्तर पर लेटे ऐसा लगा जैसे की खेत में हल चला कर आयें हों ! गहरी नींद से जागे सबेरे होली का दिन था … उठते ही पहले एक बाल्टी रंग डाल दिया हमारी सालीयों नें – बुरा ना मानों होली है … होली है भाई होली है !! 🙂 🙂 🙂 🙂 🙂