देहाती दुल्हन – हास्य व्यंग हिंदी कथा

अपने गांव में भूषण सिंह का अलग ही रुतबा था, एक दम चोकस राजपूताना ठाट-बाट। धन संपदा का आलम तो ऐसा था की आँख उठाकर देखते जाईये, गारंटी है की आपकी आँख की पुतली बाहर आ जाएगी मगर आप उनकी ज़मीन का छोर नहीं देख पायेंगे। खेत बाड़ी बागीचा के अलावा भूषण सिंह अपना व्यापार भी करते थे। वो कहते हैं न कि जब ऊपर वाला देता है तो छप्पर फाड़ के देता है, यह कहावत भूषण सिंह पर एकदम सार्थक होती थी। गांव में उनके घर को लोग हवेली बोलते थे, बिगहा भर में फैली उनकी हवेली ऐसी थी की पहली बार अंदर प्रवेश करने वाला आदमी अपने साथ गाइड लेकर जाय तो अच्छा। द्वार पर प्रतिदिन छोटे-बड़े लोगों का जमवाड़ा लगा ही रहता है।

दिन था मंगलवार, हमेशा की तरह आज भी भूषण सिंह के द्वार पर 50 लोग बैठे थे, मगर आज बैठे लोग थोड़े भिन्न जान पड़ते थे। घूरा तेली द्वार पर देखकर वहां उपस्थित एक शख्स से पूछता है। आज बड़ा खातिरदारी कर रहे हैं साहेब .. का बात है बेटवा का भाव लग गया का ? उत्तर देने वाला कोई और नहीं बल्कि लल्लन नाई था, अब नाई तो घर-घर घूमता ही है; उसका तो काम ही हैं फलाना की बात डिमका को बताना और डिमका की बात फलाना को बताना। लल्लन नाई बोला – अरे घूरा, तोका बता रहे हैं पर केहू और व्यक्ति से कहेगा नहीं; समझा रे, अगर कहीं कहा तो दो-चार लात हूर देंगे। बेचारा घूरा तेली बोलै – ना जी, अब हम बड़का साहेब का बात काहे कहेंगे केहू से। हम्म्म्म…तो सुन – यह जो 50 आदमी देख रहा है, ई पार्टी आई है दूर के गांव से। बड़का बाबू (भूषण सिंह) के बेतवा का बियाह (शादी) तय हो रहा है।

अरे…विक्की बबुआ का !! अबे तू विक्की काहे बोलता है, तू छोटा साहेब बोला कर। वैसे बबुआ का नाम विक्की सिंह है पर तू अगर दुबारा नाम से बोला त जानता है न….हां हां लल्लन भाई जान गए। अरे ओ…लल्लनवा !! भूषण सिंह नें आवाज़ लगाते हुए लल्लन नाई को बुलाया। इधर लल्लन नाई, घूरा तेली को डाँटते हुए बोला – अब चल घसक इहाँ से। जी मालिक आया…!!!! अच्छा सुनो लल्लन, पंडित जी सब ओके कर दिए हैं हमार बबुआ का बियाह एही साल जेठ के महीना में हो जायेगा। लल्लन नाई बीच में टोकते हुए बोला – बड़े मालिक तनिक विक्की बबुआ से पूछ लेते उनका का विचार है। भूषण गुस्से से – नाई राम, ज्ञान फेकोंगे तो अभी धइके कपरा छील देंगे। ओसे का पूछे बे … हम ओहकर बाप हैं कि उ हमार बाप है ???? बोल !! जी मालिक आप हैं नाई उत्तर देते हुए बोला। चल अब पूरा काम काज में लग जा खाली तीन महीना बाकी है, नाई जात फिर टोककर बोला – साहेब लड़की का…नाम…बता देते तsssss; तू साला नाई नहीं सुधरेगा। तब तक पंडित तेजा मीसिर (मिश्रा) बोल दिए – बता दीजिये भूषण जी इसको सब। शादी का कार्ड तो यही छपवायेगा, ठीक कह रहे हैं तेजा जी, भूषण जी नें झटपट एक काग़ज़ पर लड़की का नाम, उसके पिता का नाम व् परिवार के अन्य सदस्य का नाम लिखकर लल्लन नाई को दे दिया और कहा शादी का कार्ड ऐसा छपवाना की पूरा गांव सिर्फ कार्ड देखकर मेरा औकात समझ जाए।

इधर भूषण सिंह शादी की तैयारी धूम-धाम से कर रहे थे उधर विक्की सिंह इस बात से बेखबर बंबई (मुंबई) के कॉलेज में मस्ती काट रहे थे। भूषण सिंह का बेटा विक्की पढ़ने में होनहार था, वो बी.टेक के पश्चात् म.टेक कर रहा था। घर में किसी धन की कमी न होने के कारण विक्की अपने सारे शौक पूरे करता और पूर्णतः शहरी लड़का था। अब विक्की को का पता की उनकी शामत आने वाली है। भूषण सिंह नें फ़ोन कर विक्की को यह साफ़ कह दिया की तुमको तीन महीने बाद घर आना है वो भी कम से कम 20 दिन का छुटटी लेके। अब शहरी बेटा का समझे देहाती चाल, सोचा की क्या फर्क पड़ता है गर्मी का दिन रहेगा गांव से घूम आऊंगा।

दिन सरकते देरी कहाँ लगती है वो भी शादी ब्याह के दिन। पलक झपकते ही दिन निकल गए, इधर विक्की सिंह भी गांव जाने के लिए बंबई से प्रस्थान कर दिए। विक्की की प्रतीक्षा में चंद चाटुकार पहले से ही रेलवे स्टेशन पर पहुंचे हुए थे जिनको भूषण सिंह नें ही भेजा था। विक्की बाबू जैसे ही ट्रेन से उतर बहार निकले फूल माला बैंड बाज़ा से उनका स्वागत हुआ; नजारा देख ऐसा प्रतीत होता था की कारगिल वार फतह करके आ रहे हों। अपने स्वागत से स्वयं विक्की बबुआ भी अचंभित थे, पर स्टेशन पर पहुंचे हुड़दंग दल के साथ वे रवाना हुए अपनी हवेली की ओर।

हवेली के द्वार पर आते ही भूषण सिंह की मेहरारू यानि विक्की बाबू की माताश्री नें आरती से उनकी नजर उतारी। यह तमाशा देखकर विक्की भी सोच में पड़ गया की आखिर हो क्या रहा है पहले तो मेरे आने पर ऐसा कभी हुआ नहीं। कमरे में जाते जाते आखिर वो अपनी माँ से पूछ पड़ा, मॉम ये सब क्या है ? पूरा घर तो ऐसे सजा रखा है जैसे किसी की शादी का मंडप, बेटे की बात सुन माँ हंस पड़ी बोली – तू ऐसा ही समझ। क्या ऐसा ही समझू ? अरे चल पहले नहा धो ले फिर सारी बातें करना। विक्की थकानवश स्नान करने और भोजन के पश्चात गहरी नींद में सो गया। इधर भूषण सिंह अपने चेले चपाटों के साथ विवाह कार्यक्रम, रखरखाव और आवश्यक सामग्री को जुटाने हेतु काफी व्यस्त थे।

इधर जब विक्की बबुआ की नींद खुली तो वो निकले जरा गांव की सैर पर जहाँ एक नुक्कड़ पर सभी पुराने यार एकत्रित होते थे। नुक्कड़ पर जाने की देरी भर थी कि वहां पहले से मौजूद मंटुआ बोल पड़ा – का हाल है विक्की, अब तो बैंड बजेगा लौंडा घोड़ी चढ़ेगा। अबे कौन लौंडा और कौन घोड़ी, देसी मार लिया है क्या ? लो जी लड़का पूछ रहा है कौन घोड़ी – यह बात मंटुआ विक्की की तरफ इशारा करते हुए बोला। अबे – तुमको पता नहीं अगले हफ्ते शादी है तुम्हारा। मेरा शादी विक्की अचंभे से बोला; हां भाई, तुम्हार बाप फिट कई दिए शादी….हाहाहाहाहाहा, वहां मौजूद विक्की के सभी दोस्त यार हंस पड़े। अब क्या था विक्की सोच में पड़ गया की डैडी नें इतनी बड़ी बात बतायी नहीं। किसी तरह वहां से जान बचा आये अपने घर और अपने डैडी भूषण सिंह से पूछे – ये आपने क्या कर दिया ? मुझे गांव की लड़की से शादी नहीं करनी डैड।

बेटे की बात सुन भूषण सिंह बोले – देखो बेटा जी, शादी तो होगी ही। और ये ख़यालात निकालो दिमाग से की गांव की लड़की शहर की लड़की वगैरा ; समझे ! लड़की सुंदर है, तंदरुस्त है, सिलाई कढ़ाई भी जानती है, बी.ए पास है; सबसे बड़ी बात की अपने बाप की एक बेटी है। अरे वहां शादी करोगे तो कल को राज करोगे बेटा। डैडी की बात सुन विक्की क्या करता चुपचाप अपने कमरे में चला गया। हफ्ता शादी ब्याह के कामकाज में निकल गया और आ गया वो दिन जब विक्की को दूल्हा बनना था।

गांव की बारात हुड़दंग की बारात होती है, इधर विक्की बाबू दूल्हा बन अपनी गाड़ी में कुछ दूर स्थित गेस्ट हाउस की ओर रवाना हुए जहाँ से घोड़ी चढ़कर उनको दुल्हन के दरवाज़े पर जाना था। इधर घर, गांव, मोहल्ला के सभी बच्चा, महिला, लड़की, लड़का, जवां और बुजुर्ग भी रवानगी किये विक्की की गाड़ी के पीछे। गांव की शादी में नाच की भी खास अहमियत होती है, भूषण सिंह नें अपने समधी को बिजली का नाच करवाने के लिए कह दिया था और यहाँ अपने साथ लौंडा नाच लेकर गए थे। गेस्ट हाउस से घोड़ी पर बैठे विक्की उसी वक्त आर्केस्टा ने आरंभ किया बाज़ा – 1 2 3 …. 1 2 3 ये देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारा क्या कहना आ…आ…आ…आ…आ…!!! जिम्मी जिम्मी जिम्मी आजा आजा आजा….!!! हज़ार मर्तवे यही गाने की लाइने सुन फूफा मनसुख सिंह गुस्सा हो गए। आर्केस्टा वाले से बोले – साले, यही गाने का लिया 30 हज़ार ??? देश है वीर जवानों का और जिम्मी जिम्मी जिम्मी आजा आजा आजा ?? अबहिन उठा के पटक देंगे नहीं तो कुछ और गा जल्दी से। आर्केस्टा वाला बोला – का गाएं फूफा ? जब बाज़ा के आगे लोग नाचते हैं तो मैं “देश है वीर जवानों” की धुन बजाता हूँ और जब रास्ता ख़ाली होता है तो “जिम्मी जिम्मी जिम्मी आजा आजा आजा” बजाता हूँ , जानते हैं काहे ?? काहे रे, फूफा नें पूछा; वो बोला – बात ऐसा है की जिम्मी जिम्मी आज़ा आज़ा मतलब घोड़ी को आगे बढ़ाओ रास्ता खाली है और देश है वीर जवानों का मतलब रुको अभी रास्ते पर लोग नाच रहे हैं।

फूफा बोले – पढ़ायेगा हमको अंग्रेजी !! जब रास्ते पर लोग नाच रहे हैं तो यह वाला गाना गा – “जब लगावे लू तू लिपस्टिक”, आर्केस्टा वाला समझ गया की फूफा रंगीन मिज़ाज़ी हैं ई थोड़ा तड़क भड़क वाला आइटम सुनना चाहते हैं। आर्केस्टा चालू हुआ – “राजा राजा राजा करेजा में समा जा”। शोर शराबे हुल्लड़ के बीच बारात पहुँची दुल्हन के घर; तभी किसी नें फूफा जी से पूछा अरे उ जीजा कहाँ है ? जीजा जीजा जीजा ? अरे मुन्ना जीजा तो देसी मार लिए थे रास्ते पर गाड़ी लेकर गिर पड़े, तुम आगे का काम देखो हम ला रहे हैं जीजा को।

विक्की घोड़ी से उतर पहुंचे दुल्हन के द्वार पर कुछ ही देर में जयमाल के स्टेज पर दुल्हन को लाया गया और फिर विक्की बाबू भी जयमाल स्टेज पर पहुंचे। यह पहला मौका था जब विक्की नें अपनी पत्नी का चेहरा देखा। विक्की को दुल्हन पसंद आ गयी और मुस्कुराते हुए दुल्हन द्वारा डाली गयी जयमाला विक्की नें अपने गले में पहनी। धक्का मुक्की हल्ला गुल्ला हंसी ठिठोली के बाद थोड़ा रोना धोना भी हुआ और अगली सुबह दुल्हन विदा हुई भूषण सिंह के घर की ओर।

देहाती दुल्हन - हास्य व्यंग हिंदी कथा

गर्मी की रात दूल्हा और दुल्हन अपने कमरे में, शहरी विक्की यह सोच रहा था की क्या बोलूं क्या कहूं ! कुछ न सूझता देख विक्की नें पूछा डार्लिंग व्हाट्स योर नेम ? दुल्हन बोली माई नेम इज शीला !! शीला शब्द से विक्की को शीला की जवानी का गीत याद आ गया वो हँसते हुए बोला – शीला कितना प्यारा नाम है। एह में प्यारा का है जी ? शादी के कारड पर तो लिखा था फिर ई आप दोहरा के काहें पूछे ? ओह हो शीला – अब तुम ये देहाती शब्दों का इस्तेमाल बंद कर दो तुमको हमारे साथ बंबई चलना है, ओह्कर नाम त मुंबई है फिर आप बंबई काहे बोले ! अच्छा बाबा मुंबई चलना है विक्की नें जवाब दिया। एतना जल्दी का है मुंबई जायेके अभी आप हमरे घर चलना वहां भैंसिया बियाई है थोड़ा दूध दही खाके देह बना लीं, शहरी लड़का इतना सूखा कहते होत हैं !! अंग्रेजी बाबू देसी मेम की यह जोड़ी सेज पर लेटी-लेटी यूँ ही देहाती और शहरी भाषा में बात करती रही। विक्की सुंदर किन्तु पूर्ण रूप से देहाती दुल्हन के पतिदेव बन चुके थे जिसे सच में शहरी बनाना मुश्किल था।

 

लेखक:
रवि प्रकाश शर्मा