दुल्हन ही दहेज़ है Dulhan Hi Dahej – मंगरु की शादी और धूमन का दहेज़ लालच, हास्य व्यंग के साथ जरूरी बात

धूमन : मंगरु के पिता
मंगरु : धूमन जी का बेटा

मैं : केवट लाल, कई दिन हो गए सोचा धूमन जी से मिल आऊं पिछली बार मिला था तो कह रहे थे कि मंगरु की शादी करनी है। घूमते घामते पहुंचा उनके घर, राम राम धूमन जी … मैंने कहा ! धूमन जी … ओह्ह केवट लाल जी आज कैसे आना हुआ अचानक आप तो रास्ता ही भूल गए हमारे घर का। ही ही .. ना जी ऐसी बात नहीं है (मैंने जवाब दिया) 🙂

ठंड की हल्की धूप थी सो बैठ गए हम दोनों दुआर पर खटिया डाल कर। मैंने पूछा, और सुनाइये कहा तक बात बढ़ी मंगरु की शादी की ? कोई लड़की वाले आ रहे हैं कि नहीं। आपसे क्या बोलें केवट जी , ये मंगरु कुछ करता है नहीं .. ससुरा जो भी आता है यही पूछता है कि लड़का क्या काम करता है ; अब हमरा तो जमाना रहा नहीं कि घर बैठे शादी हो जाये , अब दुनियां बदल गई है बेटी वाले भी देखते हैं की लड़का क्या कमाता है। एक बेटा था सोचा की अच्छे से पढ़ा लिखा देंगे इसको पर नालायक निकल गया (अफ़सोस से बोले).

मैंने कहा, धूमन जी आपकी तो काफी जान पहचान है शहर में कही सेट करवा दीजिये मंगरु को। खीजते हुए बोले, …. का सेट करवा दें थोथ दिमाग का है ; बकलोल है पूरा ई … इस बैल को कौनो काम नहीं देगा केवट जी ! ई बस हमरा छाती पर बैठने के लिए पैदा हुआ है। गुस्सा काहे कर रहें है मैंने कहा , धीरे धीरे समझ जायेगा ! वो तपाक से बोल पड़े – समझ जायेगा … जानते हैं कितना उमर हो गया उसका ? 34 साल का हो चुका ; पर गधा का गधा है !! अरे हम तो लड़का वाला होकर दान दहेज़ देने के लिए तैयार हैं। 🙂

ये लो मंगरु भी आ आया , इससे पहले की मैं कुछ पूछता ! धूमन जी बोल पड़े – का रे .. आ गया नाच के ? लाज शरम है कि नहीं , सुबह का गया था तू दोपहर में आ रहा है। मंगरु मुँह छिपा कर अंदर गया। मैं बोला धूमन जी , मंगरु बस काम नहीं करता बाकि देखने में तो हट्टा कट्टा है, सुन्दर है आप धीरज रखिये कहीं ना कहीं बात बन जायेगी। फिर मैं बोला, मैं अब चलता हूँ धूमन जी – एक काम कीजिये कल मंगरु को मेरे यहाँ भेज दीजियेगा जरा मैं उससे बात करूँगा; इतना कह मैं चल दिया वहाँ से।

अगले दिन, मंगरु से मिला : क्यों मंगरु कहे परेशां किये हो अपने बापू को .. अरे कर लो काम कुछ दिन शहर जाकर फिर शादी के बाद लौट आना। तुमको कमाता धमाता देख कोई अच्छी लड़की शादी के लिये तैयार भी हो जायेगी। चाचा आप भी (मंगरु बोला) : जानते है का बात है , पिताजी दहेज़ के फेर में हैं ऐसा थोड़ी है कि हमको कोई पसंद नहीं किया। दो महीना पहले एक अच्छा रिश्ता आया था राजी भी थे शादी को लड़की वाले .. मगर ई जो बापू हैं हमार डिमांग ज्यादा कर दिए , वैसे लड़की का फोटो हम देखे हमको वो बहुत अच्छी लगी। असली बात तो वो आपसे बता नहीं रहे हैं और सारा इल्जाम हमपर थोप दे रहे हैं। एक बात बोलें आप से उ लड़की से हम बात भी करते हैं और शादी भी उसी से करेंगे ! पर हमारे बाप लड़की नहीं रूपया खोज रहे हैं।

मैं बोला : अच्छा ई बात!! धूमन जी बड़ा सरीफ बनते हैं पर ये तो ‘मुख में राम बगल में छुरी’ वाली बात हो गयी । देखो मंगरु हम तो दहेज़ के विरूद्ध हैं पर तुमरे बाप का कइसे समझाएं। खैर का नाम है लड़की का ? मंगरु मुस्काकर 🙂 जी चाचा ‘सुधा’ ! कब से बात कर रहे हो छैला बाबू ?? 🙂 हो गया चाचा 30 दिन होने वाला है …. ही ही 🙂 .. दोनों हंस पड़े। तो ये बात बनेगी कैसे , एक तरफ दहेज़ और दूसरी तरफ तुम्हारे बाप धूमन !! मैंने कहा मंगरु से जाओ अब हमें कुछ जुगाड़ करने दो।

अगले दिन हम फिर जा धमके धूमन जी के घर ये जाँचने कि दहेज़ के प्रति का विचार हैं उनका 🙂 राम राम धूमन जी !! लो हम फिर आ गए तंग करने तुमको .. धूमन जी बोले उदार भाव में – नहीं नहीं ऐसा क्यों कह रहे हैं केवट जी , ये आपका ही घर है जब मर्जी तब आईये 🙂 अच्छा सुनो एक रिश्ता है लड़की का मेरे पास, जानते हो बाप की एकलौती लड़की है बड़ा पैसा वाला परिवार है हमनें अगर उनको कह दिया तो बात पक्की समझो। धूमन जी – लार टपकाते हुए … ऐसा का ; तब सोच क्या रहें हैं केवट जी बात आगे बढाईये। वैसे केवट एक बात बताओ कल तुम मंगरु से मिले वो का बोल रहा था ? गदहा को कुछ समझाए आप काम धाम करने के लिए। हां धूमन (मैंने उत्तर दिया) – तुम्हारा बेटा बड़ा समझदार है बोला काम क्या करना शहर जाकर यहां गांव में ही हाथ बंटाऊंगा पिताजी का।

धूमन जी तपाक से बोले: अरे छोड़ो काम धाम का , ई शादी वाला मामला सेट करो केवट ; मालदार पार्टी है कुछ हाथ लग जाये तो अच्छा है 🙂 ! मंगरु आज घर में ही था – धूमन जी बोले , एक दम निकम्मा हो गये हो का लाठ साहब थोड़ा घर के बहार निकलोगे या घर में ही मुह छुपाये रहोगे।

मंगरु – का बापू , घर में रहे तो निकम्मा और घर के बहार आवारा ? कहाँ जाएं हम।
मैं बोल पड़ा – देखो धूमन बार बार जवान लड़के को मत बोला करो।
…. तुम रहे दो केवट , पता ना तुम कौन सा पट्टी पढाये की आज ई बुरबक कहीं गया नहीं।

मैं बोला बेटा मंगरु थोड़ा घूम आओ , हम लोग थोड़ा काम की बात कर रहे हैं ! मंगरु बाहर चला गया; धूमन का ध्यान तो शादी और दहेज़ पर था।
कहा देखो केवट – हमारा एक ही लड़का है और तुम जानते हो सब कुछ उसी का है ; लेकिन बिना लेन देन शादी नहीं करूँगा !! जब तुम कह ही रहे हो तो बात आगे बढाओ आखिर मित्र काहे के हो ? मैं मन में मुस्कुराया 🙂 बोला धूमन – मंगरु तो बारह तक पढ़ा है ऊपर से काम भी नहीं करता ज्यादा डिमांड रखोगे तो कुछ नहीं मिलेगा। धूमन बोले – ए केवट लड़का निकम्मा हो तो भी बिकता है ऊपर से वो हमारा बेटा है, सस्ते में नहीं जाने देंगे देख लेना। अच्छा कल कुंडली मिलान कर ही लेते हैं जय हरी !! 🙂

उधर मंगरु से मैंने संपर्क किया – देख बाबू , प्रेम विवाह करना है तो सुधा का रिश्ता दुबारा भिजवा अपने बापू को और अबकी बार किसी और के हाथ भेजना वो भी पहले हमसे मिलवा के। ये सुन मंगरु सुधा से मिला और सारा किस्सा बताया। सुधा घर परिवार से कमजोर लड़की थी पर बड़ी सुशील और गुणवती थी। मैं सुधा के मामा जी से मिला सारा माजरा समझाया, वो भी जानते थे की सुधा मंगरु से बात करती है। अगले दिन मैं फिर जा धमका धूमन के घर जनम पत्री के साथ और मेरे साथ एक पंडित भी था। इस बार धूमन नहीं जनता था कि ये रिश्ता पहले भी आ चुका है क्योंकि मैंने धूमन को बताया की ये रिश्ता मेरी तरफ से आया था और वो काफी पैसे वाला है सुधा उसकी एकलौती बेटी है।

आ हां , लो धूमन आ गया कुण्डली और पंडित दोनों (पंडित मेरा आदमी था मैंने उसको सब पहले समझ दिया था), धूमन बोला – तब शुरू करें श्री हरी के नाम के साथ।

पंडित बोला लड़के का पैन कार्ड लाइये, आधार कार्ड लाईये .. धूमन तिलमिलाते हुये – का बे पंडित राशन कार्ड बनवाना है का हमें ? 🙂
पंडित बोला – जजमान कुंडली तो ठीक मिला देंगे हम पर उ का है की आजकल सब ऑनलाइन होना है तो लड़के का डाटा हम ऑनलाइन ही देखेंगे आधार कार्ड जरूरी है … ही ही 🙂 वाह वाह : का कुण्डली है (पंडित बोला जोर से)! जजमान आज पहली बार इतना धांसू कुंडली देखा हम जो मिलाने से पहले ही मिल गवा। ई कुंडली के हिसाब से लड़का लड़की का खूब पटेगा , शादी के बाद लड़का बाप का बात नहीं मानेगा , बीवी के बस में रहेगा …. क .. क ..क अबे चुप !! धूमन बोला – डरा रहा है का हमको लड़के वाला हूँ ई ध्यान रखना मुँह तोड़ देंगे तुमरा अभी। .. 🙂

काहें गरम हो रहे हो धूमन (मैं बोला) !
सब कुछ चका चक है पंडित बोला शादी का तैयारी करो। अरे काहे का तैयारी , पहले का दोगे का लोगे ये तो बताओ केवट। धूमन तुम बताओ का चाहिए तब हम आगे बात करें, देखो केवट हमको चार पहिया गाड़ी, 5 लाख नगद, बर्तन, गहना, घरेलु सामान, लड़के के लिए अंगूठी और चैन चाहिए। उसके बाद कम से कम 200 बारातियों का स्वागत और बढ़िया पकवान ; समझे ? मैंने भी बोल दिया -समझ गया धूमन !!! सब मिलेगा मगर शादी के बाद जब लड़की विदा होगी तब ! इतना बात करके मैंने सुधा के मामा जी को सब बता दिया .. और शादी पक्की करने के लिए मामा जी और सुधा के फूफा जी धूमन के यहाँ पहुच गए। (चुकीं सुधा के पिता जी पहले एक बार रिश्ता लेकर आये थे धूमन के यहाँ इसलिए मैंने ये कहवा दिया की लड़की के पिता नहीं है , सबकुछ मामा जी ही देख रहे हैं).

धूमन नें सबका जोरदार स्वागत किया … रिश्ता पक्का करने गए सभी मेहमानों को बढ़िया पकवान खिलाया गया। पकवान सामने हो और पंडित ना ललचाये ऐसा हो ही नहीं सकता। मैं बोला – का हो पंडित मार गाबा गब लड्डू धकेले जा रहे हो थोड़ा सेहत का भी ध्यान रखो अभी शादी में भी मिलेगा। पंडित बोला – देखो जी खाने पर नजर मत लगाओ वो पंडित ही क्या जो भोजन पे न टूट पड़े 🙂 …. सुनो एक बात – हमारे पाँच बच्चे और मेहरारू के लिए खाना बँधवादो , हम तो खीच लिए पर का हमारा परिवार नहीं खायेगा ? जाओ जाओ मुँह ना ताको खाना बँधवाओ नहीं तो अभी सारा कुंडली बिगाड़ देंगे .. का समझे 🙂 ही ही।

सब कुछ हँसी ख़ुशी हो गया पर धूमन चिन्ता में था , मैंने पूछ लिया – धूमन बड़े चिंतित लग रहे हो ! का बतायें केवट बड़ा खर्चा हो गया ; ऊपर से उ खबोड़ पण्डित सारा खाना भी चट कर गया ! 🙂 मैंने दिलासा दिलाया , अरे यार शादी के बाद तो सारा धान वापस ही आ जायेगा … सोचो जब मोटा दहेज़ लोगे। चलो चलो अब शादी की तैयारी में लग जाओ। …. धीरे धीरे शादी के दिन नजदीक आ गये ! परसों शादी है सारी तैयारियां हो चुकीं थी। धूमन एक एक खर्च हुए पैसे का हिसाब रख रहा था।

तिलक समारोह का दिन था , मैंने तो आग पहले ही लगा दी थी 🙂 सुधा के परिवार वालों को ये कह दिया था की ज्यादा तादात में आना ताकि धूमन को पता चले की खर्च का क्या होता है। ….. सुबह से ही धकपेल मचा हुआ था घर में 🙂 !! धूमन चारो ओर बौराये घूम रहा था और चिल्ला रहा था – अबे यहाँ फूल कौन रख दिया है , ई ससुरा हलवाई अभी तक क्या बनाया है , अरे बाबूजी को अंदर ले जाओ यार उनका तबीयत ख़राब है … सुनो शुख़ीराम ये लौंडा लोगों को बोलो की बाजा थोड़ा धीरे बजाएं नहीं तो आकर मैं उनको बजा दूंगा !!! मैं आया दौड़ते अरे धूमन – मंगरु को तैयार करो आ गए हैं लड़की वाले सब !

करीब 100 से ज्यादा लोगों को देखकर धूमन गुस्से में बोला – का तमाशा है ये ? बारात है या तिलका ! इतना सारा आदमी भला कौन लेकर आता है तिलक करने , ई कहाँ हमारा शादी तय करवाये हो केवट ?? खूब दोस्ती निभा रहे हो। तभी पण्डित वहाँ आ धमका 🙂

वाह जजमान व्यवस्था तो बड़ा कंटास किये हो, अपनी कटु मुस्कान लिए बोला … ही ही थोड़ा जलपान हो जाता तो गला तर हो जाता 🙂 मन्त्र उच्चारण में गले का बहुत प्रयोग है स्वामी। धूमन बोला – क्यों पंडित तेरा गला लड़की वाले तर नहीं कराये ? तू तो लड़की वाले की तरफ से है ! पण्डित बोला – श्रीमान धूमन फिलहाल तो हम आपके मेहमान हैं और आपके यहाँ पधारे हैं तो फ़र्ज़ आपका भी बनता है … ही ही 🙂

मैंने तनाव देखते ही टोक दिया ! तैयारी हो चुकी चलें, सब लोग विराजमान हों एक जगह। मैं , धूमन , मंगरु , सुधा के पिता जी , मामा जी , फूफा जी और अन्य सारे लोग घेरा बनाकर बैठ गए – लड़की पक्छ का पंडित और लड़का पक्छ का पंडित शुरू कर दिए मन्त्रों का युद्ध। यहाँ अजब प्रतियेगिता देखने को मिली दोनों पंडितों के बीच … हर मन्त्र पे पैसे निकलवा कर जजमान को तो कंगाल ही कर दिया। खैर जैसे तैसे लड़ते झगड़ते बात बन ही गई और तिलक की रसम पूरी कर ली गयी। अब बस कुछ दिन ही बचे थे विवाह होने को – धूमन नें कमर कस ली थी की तिलक में जितना आदमी लेकर आये थे हम उनसे पांच गुना आदमी लेकर जायेंगे।

Shubh-Vivaah

आज मंगलवार है और आज बारात जानी है , धूमन के घर चारो तरफ बेचैनी है , भागम भाग है , आपा धापी है। मैं केवट धूमन के घर पहुंचकर – बोला , क्यों धूमन गाड़ी वाले को बोल दिए हो न ?…. बाराती 4 बजे शाम को तैयार रहेंगे मैंने सबको बोल दीया है। कम से कम पाँच बस और 4 जीप तो चाहिए ही और कुछ बाराती अपनी सुविधा से आयेंगे और हां मंगरु की कार सजवाने का काम चालू करा दो। .. मैं मंगरु की कार में ही बैठ कर जाऊंगा। मेरे इतना बोलते ही धूमन गरम हो गया —- गुससे से बोला तुम केवट दिमाग की दही मत करो ; कुछ काम में मदत करने की बजाय यहाँ आकर और हुकुम दे रहे हो देख नहीं रहे हो मैं कितना परेशान हूँ। कुछ समय के उपरांत, सारी तैयारियां पूरी हो चुकीं थीं बारात निकलने का समय हो चुका था। मैं, धूमन , मंगरु और कुछ परिवार के सदस्य एक कार में बैठ कर निकले। 2 घंटे लग गए जाने में बारात शाम 7 बजे पहुंची।

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धूमन नें सभी बारातियों को समझ दिया था की वहाँ पहुँचते ही खाने पर टूट पड़ना है लिहाजा सभी बाराती ऐसे जलपान कर रहे थे जैसे कि किसी भूखे शेर को 15 दिन बाद खाना मिला हो। मैंने सुधा के पिता को बोल दिया था कि खाना पूरा भरपूर होना चाहिए कमी नहीं रहनी चाहिए। सबने छक के नाश्ता किया फिर कुछ समय बाद द्वार पूजा हुयी लड़के की। पर हालात वहां बिगड़े जब कन्यादान का वक़्त आया – हुआ ये कि सुधा के पिता को आना था ; जैसे ही वो सामने आये धूमन नें उनको देखा उसका दिमाग सातवें आसमान पर जा पहुँचा …… कुछ देर के लिए वहाँ का सारा माहौल शांत हो गया सुधा के पिता और धूमन दोनों की आँखें एक दूसरे को टक टक देख रही थी। अंततः धूमन बोल पड़ा – तो ये बात है किशोर साहब (सुधा के पिता) हमसे छल किया आपने ? ये रिश्ता तो मैंने पहले ही ठुकरा दिया था मगर तुम्हारी ये जुर्रत की तुम धोखे से शादी करना चाहते थे। केवट (धूमन चिल्लाया) – तुम भी मेरे साथ विश्वाश्घात कर रहे थे; तुम तो मेरे पुराने मित्र हो आखिर तुमने ऐसा क्यों किया ?? बात निकल पड़ी थी तो अब मैं भी क्या छुपाता मैंने भी बोल दिया – धूमन तुम मेरे सच्चे मित्र हो और हमेशा रहोगे पर सुधा और मंगरु एक दुसरे को पसंद करते हैं।

Mangaru-Ki-Shadi-aur-Dhuman-ka-Dahej-Lalach

जब सुधा के पिता तुम्हारे यहाँ रिश्ता लेकर आये तो उन्होंने मगर को पसंद कर लिया था; पर धूमन तुम इस रिश्ते के लिए राजी नहीं थे। तुम तो सिर्फ पैसे के लालच में ही रह गए और मंगरु का दिल तो सुधा से लग गया। यह दोनों पिछले एक महीने से ज्यादा एक दूसरे से लगातार मिल रहे हैं जो किशोर साहब जानते भी हैं। वहीँ तुम मंगरु के रिश्ते के लिए भी परेशान हो , ऐसे में जब सुधा के पिता और मंगरु खुद राजी है विवाह के लिए तो तुम क्यों राजी नहीं हो ? धूमन तुम्हारे पास बहुत पैसा है और सुधा काफी पढ़ी लिखी लड़की है। तुम जानते हो कि मंगरु कुछ पढ़ लिख नहीं पाया ऐसे में वो अपनी संपत्ति की देखभाल कैसे कर पायेगा ? तुम दहेज़ के चक्कर में मूर्खता कर रहे हो धूमन। मेरी बातें सुन और वहाँ तमाम लोगों की बातें सुन धूमन को समझ आ गया कि सुधा उसके घर की बहु बनने लायक है जो उसके परिवार को आगे अच्छे से संभाल सकती है। कुछ देर के उपरांत धूमन नें सुधा के पिता किशोर को अपने गले से लगा लिया यह देख सबलोगों के चेहरे पुनः खिल उठे और फिर शुरू हुआ मंत्रोचारण का सिलसिला।

पर धूमन तो धूमन है – विदाई के समय फिर बोल पड़ा …. क्यों केवट , क्यों किशोर साहब मेरा दहेज़ का सामान किधर है ???? सामने से कन्या आकर खड़ी हो गई। धूमन बोला बस यह बेटी ही मेरा दहेज़ है। ये प्रसंग देख वहां अगर कोई सबसे ज्यादा खुश था तो वो मैं और किशोर साहब। धूमन लालची इंसान नहीं था बस अपने अबोध बालक मंगरु से परेशान था। उसकी उदारता देख सबके आँसू निकल पड़े और हम सुधा को लेकर अपने घर की ओर चल दिए। कहते हैं ना अंत भला तो सब भला जय हरी 🙂 🙂